शिमलाः प्राकृतिक सुंदरता और वादियों के लिए विश्व विख्यात हिमाचल जितना शांत है यहां की राजनीति की तस्वीर भी कमोबेश वैसी ही रही है, लेकिन इस बार पंडित सुखराम के दोबारा कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद यहां राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं.
शिमला, कांगड़ा, मंडी और हमीरपुर, मात्र चार संसदीय सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में आखिरी चरण के दौरान 19 मई को मतदान होना है. यहां मुकाबला एक बार फिर सीधे तौर पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच है.
बात की जाए ऐतिहासिक शिमला संसदीय सीट की तो भाजपा ने यहां से इस बार नए चेहरे सुरेश कश्यप को टिकट दिया है. वहीं, कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद धनीराम शांडिल को मैदान में उतारा गया है. शिमला प्रदेश की एकमात्र रिजर्व सीट है.
शिमला संसदीय सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. इस सीट पर कांग्रेस के कृष्णदत्त सुल्तानपुरी के नाम लगातार छह बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है. साल 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी बालकराम ने जीत हासिल की थी, लेकिन 1980 से 1998 तक सुल्तानपुरी ने इस सीट पर लगातार कांग्रेस को ही काबिज रखा.
वर्ष 1999 में हिमाचल विकास कांग्रेस के प्रत्याशी धनीराम शांडिल ने कांग्रेस के इस किले को भेदा और जीत का परचम लहराया. इसके बाद साल 2004 में धनीराम शांडिल कांग्रेस के टिकट पर फिर मैदान में उतरे और जीत हासिल की. इसके बाद भाजपा के वीरेंद्र कश्यप ने कांग्रेस प्रत्याशी को पटकनी देकर भाजपा को विजय दिलाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक बार फिर वीरेंद्र कश्यप पर विश्वास जताया और वीरेंद्र कश्यप भी भाजपा की सीट बचाने में कामयाब रहे.
शिमला सीट के लिए वो स्वर्णिम पल
यह सीट भारतीय लोकतंत्र के लिहाज से भी काफी अहम है. आजाद भारत के बाद जब पहली बार आम चुनाव हुए तो सबसे पहले मतदान अंबाला-शिमला सीट जो अब शिमला संसदीय क्षेत्र है पर हुआ. 25 अक्तूबर 1951 भारत के इतिहास में लोकतंत्र को स्थापित करने वाला दिन है, इस दिन भारत में पहली बार आम चुनाव हुए थे. ये पल इतिहास के पन्नों में हमेश-हमेशा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में कैद हो गया.
बर्फबारी होने की वजह से जनजातीय क्षेत्र किन्नौर, लाहौल स्पीति जैसे ट्राइबल एरिया में मतदान करवाया गया. और देश के लोकतंत्र नींव पहला वोट डालकर किन्नौर के श्याम सरन नेगी ने रखी. उन्हें देश का पहला मतदाता होने का गौरव हासिल है.
अगर बात करें बीते तीन लोकसभा चुनावों की तो वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में हिविकां से कांग्रेस में शामिल हुए धनी राम शांडिल ने यहां से पार्टी को जीत दिलाई. इसके बाद 2009 के आम चुनाव में इस सीट को भाजपा के वीरेंद्र कश्यप ने अपनी झोली में डाला. 2014 के आम चुनाव में वीरेंद्र कश्यप ने एक बार फिर यहां से जीत दर्ज की. उस वक्त पूरे देश में मोदी लहर के सहारे भाजपा पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने में कामयाब हुई.
शिमला सीट पर मौजूदा स्थिति
वहीं, अगर बात मौजूदा परिस्थितियों की करें तो एक बार फिर भाजपा मोदी लहर के सहारे लोकसभा चुनाव में चारों सीटें जीतने की सोच रही है. हालांकि 2014 कि से तुलना करें तो भाजपा के लिए परिस्थितियां इस बार अलग हैं. एक तरफ जनता मोदी सरकार के पांच साल का जवाब मांग रही है तो वहीं. दूसरी तरफ प्रदेश में भी भाजपा की ही सरकार है ऐसे में प्रदेश की जनता के प्रति भाजपा की दोहरी जवाबदेही बनती है.
शिमला संसदीय क्षेत्र की बात करें तो इस सीट में कुल 17 विधानसभा सीटें हैं. 17 सीटों में से कांग्रेस के पास 8 और भाजपा के भी 8 विधायक जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे हैं इसके अलावा एक सीपीआईएम के विधायक जीते हैं, लेकिन सूबे की राजधानी होने के कारण यहां सत्तारूढ़ दल का दबदबा देखने को जरूर मिलता है.
संसदीय क्षेत्र से जहां कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज और राजीव सैहजल कमान संभाले हुए हैं वहीं, विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल भी जिला सिरमौर और सोलन में खासे प्रभावशाली हैं. इस बार भाजपा प्रत्याशी भी सिरमौर से होने के कारण राजीव बिंदल की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिल सकती है.
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वहीं, अगर कांग्रेस की बात करें तो समूचे प्रदेश में कांग्रेस राहुल गांधी द्वारा जारी घोषणा पत्र को अपना प्रमुख हथियार बनाकर चुनावी रण में हैं, इसके लिए कांग्रेस धर्मशाला में उसी घोषणा पत्र में फिर से जारी करने जा रही है और प्रदेश कांग्रेस के सभी आला नेता इस मौके पर मौजूद रहने वाले हैं.
शिमला संसदीय सीट पर कांग्रेस का लंबे समय से दबदबा रहा है इस बार कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता और पूर्व में सांसद और वर्तमान विधायक धनी राम शांडिल को मैदान में उतारा है. धनी राम शांडिल प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर की पहली पसंद है.
कुलदीप राठौर भी इसी संसदीय क्षेत्र से हैं इसके अलावा शिमला जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, लेकिन कांग्रेस के लिए शिमला संसदीय सीट पर सबसे बड़ी परेशानी पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह माने जा रहे हैं, क्योंकि टिकट आवंट में वीरभद्र सिंह को पूरी तरह से नजर अंदाज किया गया है वीरभद्र सिंह चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष हैं सूबे में चुनाव प्रचार की कमान उनके ही हाथों में है इसलिए वीरभद्र सिंह आने वाले दिनों में क्या रुख अपनाते हैं यह देखने वाली बात होगी.
बीते तीन लोकसभा चुनावों में जीत-हार का अंतर
- वर्ष उम्मीदवार कांग्रेस भाजपा
- 2004 धनीराम शांडिल/हीरानंद कश्यप 3,11,182 2,03,002
- 2009 धनीराम शांडिल/वीरेंद्र कश्यप 2,83,619 3,10,946
- 2014 वीरेंद्र कश्यप/मोहन लाल बराक्टा 3,01,786 3,85,973
शिमला सीट पर अब तक हुए चुनाव
- 1952 टेक चंद, कांग्रेस (अंबाला-शिमला)
- 1957 एसएन रमौल, कांग्रेस (महासु)
- 1957 यशवंत सिंह परमार, कांग्रेस (महासु)
- 1957 नेक राम नेगी, कांग्रेस (महासु)
- 1962 वीरभद्र सिंह, कांग्रेस (महासु)
- 1967 प्रताप सिंह, कांग्रेस
- 1971 प्रताप सिंह, कांग्रेस
- 1977 बालकराम, भारतीय लोकदल
- 1980 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1984 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1989 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1991 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1996 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1998 कृष्णदत्त सुल्तानपुरी, कांग्रेस
- 1999 धनीराम शांडिल, हिमाचल विकास कांग्रेस
- 2004 धनीराम शांडिल, कांग्रेस
- 2009 वीरेंद्र कश्यप, बीजेपी
- 2014 वीरेंद्र कश्यप, बीजेपी
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