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सेना के लिए अहम साबित होंगी मनाली से लेह के बीच चार सुरंगें, सामरिक मोर्चे पर मोदी सरकार की बड़ी पहल

शिकुंला दर्रे के पास दो सुरंगों का प्रस्ताव था. उसमें से एक सुरंग 12 किलोमीटर लंबी है. साथ ही एक सुरंग सवा चार किलोमीटर लंबी प्रस्तावित है. केंद्र सरकार इसके अलावा बारालाचा दर्रे और तांगलंग दर्रे में भी सुरंग बनाईएगी. उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से चीन के साथ भारत का तनाव चल रहा है. सीमावर्ती इलाकों में चीन अपने क्षेत्र में निर्माण कार्य कर रहा है. सीमा पर किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार संजीदा है. चीन की सीमा से सटे लेह-लद्दाख में भारतीय सेना की बेरोकटोक आवाजाही हो सके, इसके लिए सुरंगों का निर्माण करना बहुत जरूरी है.

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Published : Jul 7, 2021, 9:44 PM IST

शिमला: सामरिक मोर्चे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अहम पहल की है. मनाली से लेह के बीच चार सुरंगें बनाने की तैयारी है. इससे लेह और करगिल के बीच दूरी कम होगी. सेना के लिए पहले ही अटल टनल वरदान की तरह है. इससे लेह तक का मार्ग सारे साल के लिए खुल गया है. अब मनाली से लेह के बीच चार सुरंगें बनने से सामरिक मोर्चे पर और राहत मिलेगी.

शिकुंला दर्रे के पास दो सुरंगों का प्रस्ताव था. उसमें से एक सुरंग 12 किलोमीटर लंबी है. साथ ही एक सुरंग सवा चार किलोमीटर लंबी प्रस्तावित है. केंद्र सरकार इसके अलावा बारालाचा दर्रे और तांगलंग दर्रे में भी सुरंग बनाईएगी. उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से चीन के साथ भारत का तनाव चल रहा है. सीमावर्ती इलाकों में चीन अपने क्षेत्र में निर्माण कार्य कर रहा है. सीमा पर किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार संजीदा है. चीन की सीमा से सटे लेह-लद्दाख में भारतीय सेना की बेरोकटोक आवाजाही हो सके, इसके लिए सुरंगों का निर्माण करना बहुत जरूरी है. अटल टनल बनने से भी लेह जाना आसान हुआ है. ऑल वैदर कनेक्टिविटी होने से सेना को बहुत लाभ है. रसद और कुमुक भेजने के लिए आसानी रहती है. सीमा से सटे ऊंचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी बड़ी दिक्कत का कारण बनती है. ऐसे में कनेक्टिविटी के लिए सुरंगों की जरूरत महसूस होती है.

सुरंग निर्माण से सेना के काफिले किसी भी मौसम में कहीं भी कूच कर सकते हैं. इन इलाकों में सुरंग बनाने का प्रस्ताव मंजूर करवाने के लिए काफी समय से प्रक्रिया चल रही थी. सुरंगों के निर्माण को रक्षा मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है. चूंकि सामरिक निर्माण का सारा जिम्मा रक्षा मंत्रालय का होता है, लिहाजा इसके लिए रक्षा मंत्रालय की मंजूरी जरूरी है. एक कंपनी को सुरंगों के निर्माण से जुड़े कंसल्टेंसी वर्क का जिम्मा दिया गया है. इन सुरंगों का निर्माण बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन यानी बीआरओ करेगी.

यह सुरंगें बनाने के लिए जंस्कर और हिमालय के दर्रों को काटा जाएगा. एक दफा सुरंग का निर्माण होने से लाहौल घाटी के शिंकुला दर्रे से सीधे कश्मीर में जंस्कर की पहाडियों तक पहुंचा जा सकता है. अगम्य माने जाने वाले 16 हजार 703 फीट की ऊंचाई वाले शिंकुला दर्रे में हमेशा हिमस्खलन का खतरा रहता है. यह बात अलग है कि वहां कोई ग्लेशियर नहीं है लेकिन हिमस्खलन की आशंका लगातार रहती है. विशेष रूप से सर्दियों में बर्फबारी के दौरान हिमस्खलन बढ़ता है.

सीमा सड़क संगठन ने कुछ समय पहले यहां 39 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़क का निर्माण लाहौल घाटी और जंस्कर के मध्य किया है. दारचा और शिंकुला दर्रे के मध्य में सड़क बनने से मनाली और लेह के बीच यात्रा का समय कम हो जाएगा. जंस्कर घाटी के ग्रामीण इलाकों को भी इसका लाभ होगा. आम हालात में इन गांवों के लोगों को मनाली या लेह पहुंचने के लिए 6 दिन तक पैदल चलना पड़ता है. शिंकुला दर्रे के नीचे प्रस्तावित सुरंग को भी इसी सड़क से जोड़ा जाएगा. इस सुरंग से मनाली-लेह के मध्य की दूरी कम होगी. रक्षा मंत्रालय ने 16,040 फीट की ऊंचाई पर मौजूद बारालाचा और जंस्कर के बीच भी 11.25 किलोमीटर से अधिक या कहें कि करीब 12 किलोमीटर लंबी सुरंग बनानी है. बारालाचा दर्रे को पार करना वाहन चालकों और पैदल यात्रियों दोनों के लिए ही बेहद खतरनाक है.

सर्दियों में बारालाचा दर्रे पर होने वाली भारी बर्फबारी और गर्मियों में बर्फ पिघलने से मुसीबत बढ़ती है. केंद्र सरकार तांगलांग दर्रे के नीचे भी सुरंग बनाने जा रही है. यहां बता दें कि कुल 17,480 फीट की ऊंचाई पर तांगलांग दर्रे में दुनिया की सबसे ऊंची वाहन योग्य सड़क है. लेह-मनाली मार्ग पर प्रस्तावित सुरंगों में यह सबसे लंबी होगी. इसकी लंबाई 14.78 किमी होगी. मनाली-लेह के मध्य लाचुंगला दर्रे के नीचे चौथी सुरंग बनाने की योजना है. लाचुंगला दर्रा हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के बीच है. यह सुरंग कुल 11.25 किमी लंबी होगी.

गौरतलब है कि 13,050 फीट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे के नीचे से पहले ही एक सुरंग का निर्माण कार्य चल रहा है. भारतीय सेना की हर मौसम में आवाजाही के लिए और सीमा सुरक्षा के नजरिए से यह सुरंगें महत्वपूर्ण साबित होंगी. हाल ही में हिमाचल दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी इन सुरंगों को लेकर उत्साहवर्धक बयान दिए हैं. बीआरओ भी इन प्रोजेक्ट्स को लेकर सक्रिय हो गया है.

ये भी पढ़ें: अनुराग ठाकुर ने ली कैबिनेट मंत्री की शपथ

शिमला: सामरिक मोर्चे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अहम पहल की है. मनाली से लेह के बीच चार सुरंगें बनाने की तैयारी है. इससे लेह और करगिल के बीच दूरी कम होगी. सेना के लिए पहले ही अटल टनल वरदान की तरह है. इससे लेह तक का मार्ग सारे साल के लिए खुल गया है. अब मनाली से लेह के बीच चार सुरंगें बनने से सामरिक मोर्चे पर और राहत मिलेगी.

शिकुंला दर्रे के पास दो सुरंगों का प्रस्ताव था. उसमें से एक सुरंग 12 किलोमीटर लंबी है. साथ ही एक सुरंग सवा चार किलोमीटर लंबी प्रस्तावित है. केंद्र सरकार इसके अलावा बारालाचा दर्रे और तांगलंग दर्रे में भी सुरंग बनाईएगी. उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से चीन के साथ भारत का तनाव चल रहा है. सीमावर्ती इलाकों में चीन अपने क्षेत्र में निर्माण कार्य कर रहा है. सीमा पर किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार संजीदा है. चीन की सीमा से सटे लेह-लद्दाख में भारतीय सेना की बेरोकटोक आवाजाही हो सके, इसके लिए सुरंगों का निर्माण करना बहुत जरूरी है. अटल टनल बनने से भी लेह जाना आसान हुआ है. ऑल वैदर कनेक्टिविटी होने से सेना को बहुत लाभ है. रसद और कुमुक भेजने के लिए आसानी रहती है. सीमा से सटे ऊंचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी बड़ी दिक्कत का कारण बनती है. ऐसे में कनेक्टिविटी के लिए सुरंगों की जरूरत महसूस होती है.

सुरंग निर्माण से सेना के काफिले किसी भी मौसम में कहीं भी कूच कर सकते हैं. इन इलाकों में सुरंग बनाने का प्रस्ताव मंजूर करवाने के लिए काफी समय से प्रक्रिया चल रही थी. सुरंगों के निर्माण को रक्षा मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है. चूंकि सामरिक निर्माण का सारा जिम्मा रक्षा मंत्रालय का होता है, लिहाजा इसके लिए रक्षा मंत्रालय की मंजूरी जरूरी है. एक कंपनी को सुरंगों के निर्माण से जुड़े कंसल्टेंसी वर्क का जिम्मा दिया गया है. इन सुरंगों का निर्माण बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन यानी बीआरओ करेगी.

यह सुरंगें बनाने के लिए जंस्कर और हिमालय के दर्रों को काटा जाएगा. एक दफा सुरंग का निर्माण होने से लाहौल घाटी के शिंकुला दर्रे से सीधे कश्मीर में जंस्कर की पहाडियों तक पहुंचा जा सकता है. अगम्य माने जाने वाले 16 हजार 703 फीट की ऊंचाई वाले शिंकुला दर्रे में हमेशा हिमस्खलन का खतरा रहता है. यह बात अलग है कि वहां कोई ग्लेशियर नहीं है लेकिन हिमस्खलन की आशंका लगातार रहती है. विशेष रूप से सर्दियों में बर्फबारी के दौरान हिमस्खलन बढ़ता है.

सीमा सड़क संगठन ने कुछ समय पहले यहां 39 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़क का निर्माण लाहौल घाटी और जंस्कर के मध्य किया है. दारचा और शिंकुला दर्रे के मध्य में सड़क बनने से मनाली और लेह के बीच यात्रा का समय कम हो जाएगा. जंस्कर घाटी के ग्रामीण इलाकों को भी इसका लाभ होगा. आम हालात में इन गांवों के लोगों को मनाली या लेह पहुंचने के लिए 6 दिन तक पैदल चलना पड़ता है. शिंकुला दर्रे के नीचे प्रस्तावित सुरंग को भी इसी सड़क से जोड़ा जाएगा. इस सुरंग से मनाली-लेह के मध्य की दूरी कम होगी. रक्षा मंत्रालय ने 16,040 फीट की ऊंचाई पर मौजूद बारालाचा और जंस्कर के बीच भी 11.25 किलोमीटर से अधिक या कहें कि करीब 12 किलोमीटर लंबी सुरंग बनानी है. बारालाचा दर्रे को पार करना वाहन चालकों और पैदल यात्रियों दोनों के लिए ही बेहद खतरनाक है.

सर्दियों में बारालाचा दर्रे पर होने वाली भारी बर्फबारी और गर्मियों में बर्फ पिघलने से मुसीबत बढ़ती है. केंद्र सरकार तांगलांग दर्रे के नीचे भी सुरंग बनाने जा रही है. यहां बता दें कि कुल 17,480 फीट की ऊंचाई पर तांगलांग दर्रे में दुनिया की सबसे ऊंची वाहन योग्य सड़क है. लेह-मनाली मार्ग पर प्रस्तावित सुरंगों में यह सबसे लंबी होगी. इसकी लंबाई 14.78 किमी होगी. मनाली-लेह के मध्य लाचुंगला दर्रे के नीचे चौथी सुरंग बनाने की योजना है. लाचुंगला दर्रा हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के बीच है. यह सुरंग कुल 11.25 किमी लंबी होगी.

गौरतलब है कि 13,050 फीट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे के नीचे से पहले ही एक सुरंग का निर्माण कार्य चल रहा है. भारतीय सेना की हर मौसम में आवाजाही के लिए और सीमा सुरक्षा के नजरिए से यह सुरंगें महत्वपूर्ण साबित होंगी. हाल ही में हिमाचल दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी इन सुरंगों को लेकर उत्साहवर्धक बयान दिए हैं. बीआरओ भी इन प्रोजेक्ट्स को लेकर सक्रिय हो गया है.

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