शिमला: ब्रिटिश हुकूमत के दौरान ऐतिहासिक शहर शिमला राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली रही. देश को आजादी मिलने से पहले बापू ने शिमला की 10 यात्राएं की, उनकी अधिकांश यात्राएं ब्रिटिश हुक्मरानों के साथ चर्चा से संबंधित और कुछ चर्चाएं विभिन्न कानूनों को लेकर थी.
इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले विख्यात लेखक और पूर्व आईएएस अधिकारी श्रीनिवास जोशी का कहना है कि महात्मा गांधी ने शिमला की 10 यात्राएं की थी, जिसने समूची मानवता को भीतर तक प्रभावित किया. शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी मैनर विला में ठहरते थे. यह राजकुमारी अमृत कौर की संपत्ति रही है.
जोशी ने बताया कि साल 1935 में महात्मा गांधी राजकुमारी अमृत कौर के संपर्क में आए और उसके बाद से मैनर विला महात्मा गांधी का नियमित ठहराव बन गया था. साल 1935 के बाद 1939 में महात्मा गांधी शिमला में दो बार आए, जिसके बाद सन 1940 में चार विजिट और 1945 में महात्मा गांधी एक बार शिमला की यात्रा पर आए थे.
गांधी की पहली यात्रा 1921 में
श्रीनिवास जोशी के मुताबिक महात्मा गांधी की पहली शिमला यात्रा साल 1921 में हुई थी. उस यात्रा में वह चक्कर के शांति कुटीर में ठहरे थे. तब यह मकान होशियारपुर के साधु आश्रम की संपत्ति थी. महात्मा गांधी ने दूसरी और तीसरी यात्रा 1931 में की. पूर्व आईएएस अधिकारी श्रीनिवास के अनुसार इस समय वह जाखू की फरग्रोव इमारत में ठहरे, वर्तमान में यह मच्छी वाली कोठी के नाम से विख्यात है.
श्रीनिवास जोशी ने बताया कि अपनी अगली यात्रा में बापू क्लीवलैंड में ठहरे, यह विधानसभा के समीप एक इमारत थी. वहीं, महात्मा गांधी ने तीसरी यात्रा अगस्त 1931 में की. बापू अपनी अंतिम यात्रा के दौरान 1946 में शिमला आए, यह यात्रा 2 हफ्ते की थी. इस दौरान वह समरहिल में चैडविक इमारत में ठहरे थे, यह इमारत राजकुमारी अमृत कौर के भाई की थी.
रिज पर है बापू की यात्राओं का विवरण, लेकिन दो यात्राएं भुलाई
पूर्व आईएएस अधिकारी श्रीनिवास जोशी के अनुसार शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के पृष्ठ भाग पर उनकी शिमला यात्राओं का विवरण दर्ज है, लेकिन इसमें उनकी साल 1939 की दो यात्राओं का ब्यौरा नहीं है. वर्ष 1939 में महात्मा गांधी ने दो बार शिमला की यात्राएं की थी.
जोशी के अनुसार सितंबर 4 और सितंबर 26 को बापू शिमला आए थे. उनकी यात्राओं का मकसद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करना था. उस समय गांधी राजकुमारी अमृत कौर के मैनर विला, समरहिल में ठहरे थे.
शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने से नाखुश थे गांधी
श्रीनिवास जोशी ने बताया कि शिमला यात्रा के दौरान महात्मा गांधी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत प्रभावित थे, लेकिन वह शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के पक्ष में नहीं थे.
महात्मा गांधी का कहना था कि शिमला में बैठकर देश का शासन नहीं चलाया जा सकता. भारतवर्ष का शासन चलाने के लिए लोगों के बीच किसी केंद्रित स्थान पर प्रशासन मौजूद होना चाहिए.
महात्मा गांधी का कहना था कि शिमला से शासन चलाना ठीक उसी प्रकार है, जिस तरह किसी ऊंची इमारत की 500 मंजिल से नजारा देखना.
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने उस वक्त कहा था कि जिस प्रकार मुंबई का कोई सेठ अगर 500 मंजिल पर बैठकर अपना सामान बेचना चाहता है. उसी प्रकार ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से देश का शासन चलाना है. इसलिए शासन चलाने के लिए लोगों के बीच जाना पड़ेगा.
महात्मा गांधी ने मानव रिक्शा को मानवता के लिए समझा अपमान
श्रीनिवास जोशी कहते हैं कि महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं के दौरान शिमला में यातायात व्यवस्था बेहद कमजोर थी. उस वक्त शिमला में केवल तीन गाड़ियां थी और वह अंग्रेज अधिकारियों की थी. उनमें भारतीय सफर नहीं कर सकते थे.
भारतीयों को सफर करने के लिए उस वक्त घोड़े और रिक्शे ही मौजूद होते थे क्योंकि शिमला यात्राओं के दौरान महात्मा गांधी कमजोर हो चुके थे. इसलिए उन्हें मजबूरन ना चाहते हुए भी रिक्शा का सफर करना पड़ता था, जिन्हें इंसान खींचते थे.
श्रीनिवास जोशी ने बताया कि एक रिक्शा को खींचने के लिए 5 व्यक्ति लगते थे, जिनमें से चार व्यक्ति रिक्शा खींचते थे और एक उसके साथ-साथ दौड़ता था ताकि रिक्शा खींचने वाला कोई व्यक्ति अगर थकता है तो उसके स्थान पर वह रिक्शा खींच सके. इस प्रकार महात्मा गांधी ने जब यह व्यवस्था देखी तो उन्होंने इसे मानवता के लिए अपमान बताया.
जोशी ने ने बताया कि की इस दृश्य को देखकर महात्मा गांधी ने रिक्शा खींचने वालों से पूछा कि तुम यह पशु वाला कार्य क्यों कर रहे हो, तब रिक्शा खींचने वालों ने उत्तर दिया कि यहां व्यवसाय सीमित मात्रा में है.
रोजगार नहीं मिलने के कारण उन्हें यह कार्य करना पड़ रहा है. इस बात पर महात्मा गांधी ने कहा था कि यह मेरी जैसी अभिमानी व्यक्ति के लिए अपमान का क्षण है, लेकिन मैं मजबूर हूं क्योंकि यहां पर यातायात का कोई अन्य साधन नहीं है.
श्रीनिवास जोशी कहते हैं कि भारत की स्वतंत्रता के बाद धीरे-धीरे रिक्शा का प्रचलन बंद हो गया और लोगों ने भी इन पर यात्रा करना ठीक नहीं समझा, जिसके कारण यह प्रचलन से गायब हो गया.