ETV Bharat / state

पंचायत व्यवस्था से विकास की इबारत लिख रहा ग्रामीण भारत, 46 सालों बाद पूरा हुआ था सपना

1947 में गुलामी की बेड़ियों से तो मुल्क आजाद हो गया, लेकिन आजादी के बाद देश के हर तबके तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी सबसे पहली और बड़ी चुनौती थी.

पंचायती राज
पंचायती राज
author img

By

Published : Jan 1, 2021, 8:09 AM IST

शिमला: आजादी के बाद भारत में संसाधन सीमित थे. ऐसे में हर व्यक्ति की आवाज सरकार तक पहुंचनी मुश्किल थी. गांधी जी का मानना था कि हर गांव में शासन की एक स्वंतत्र इकाई होनी चाहिए. वो चाहते थे कि हर गांव इतना आत्मनिर्भर हो कि अपनी सरकार खुद चला सकें.

बलवंत राय मेहता कमेटी

गुलामी की जंजीरों से आजाद हुए भारत को एक बार फिर से सोने चिड़िया की बनाने के लिए 1952 में राष्ट्रीय सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरूआत हुई, शहरों में सड़कों, पानी, बिजाली की व्यवस्था होने लगी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अंधेरा ही था. फिर 1957 में पंडित नेहरू ने सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों की जांच के लिए बलवंत राय मेहता कमेटी बनाई.

वीडियो

अशोक राय मेहता समिति

बलवंत राय की सिफारिशों के तहत 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायतीराज व्यवस्था को सबसे पहले लागू किया गया. इसके बाद 1964 तक कई राज्यों ने पंचायती राज व्यवस्था को अपना लिया, लेकिन बलवंत राय मेहता समिति की खामियों को दूर करने के लिए 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया. 1978 में इस समिति ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस समिति ने कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की.

मेहता समिति ने गांव पंचायत और पंचायत समिति को समाप्त करने की बात कही. समिति ने मंडल पंचायत और जिला पंचायत का कार्यकाल चार वर्ष और विकास योजनाओं को जिला स्तर के माध्यम से तैयार करने और उसका क्रियान्वयन मंडल पंचायत से कराने की सिफारिश की, लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया.

राजीव गांधी की सोच

इसके बाद 1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अगर पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी थी तो राजीव गांधी ने इसी नींव पर पंचायती राज की शानदार इमारत खड़ी की. राजीव गांधी का मानना था कि जब तक पंचायती राज व्यवस्था सफल नहीं होगी, तब तक निचले स्तर तक लोकतंत्र नहीं पहुंच सकता.

पीवीके राव समिति

राजीव गांधी की सरकार में 1985 में पीवीके राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ. इस समिति ने राज्य विकास परिषद, जिला परिषद, मंडल पंचायत और गांव स्तर पर सभा के गठन की सिफारिश के साथ अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षण देने की बात कही. लेकिन इसे भी अमान्य कर दिया गया. इसके बाद एलएम सिंघवी की अध्यक्षता में समिति गठित करके उसे पंचायतीराज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई.

गांवों के पुनर्गठन की सिफारिश पर जोर

इस समिति ने गांवों के पुनर्गठन की सिफारिश पर जोर दिया. इसी समिति ने पंचायतों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की बात कही. इसके बाद 1988 में पीके थुंगन समिति का गठन हुआ इस समिति ने अहम सुझाव के तौर पर कहा कि पंचायतीराज संस्थाओं को संविधान सम्मत बनाया जाना चाहिए. इस समिति की सिफारिश के आधार पर पंचायतीराज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वां संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोकसभा ने तो पाारित कर दिया, लेकिन राज्यसभा ने नामंजूर कर दिया.

73वां संवैधानिक संशोधन

16 दिसंबर, 1991 को 72 वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया और उसे संसद की प्रवर समिति को सौंप दिया गया. 72वें संविधान संशोधन विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73 वां संशोधन कर दिया गया. 22 दिसंबर 1992 को लोकसभा और 23 दिसंबर 1992 को राज्यसभा ने 73 वें संविधान संशोधन को मंजूरी दे दी. 17 राज्य विधानसभाओं से मंजूरी दिए जाने के बाद 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति ने भी अपनी सहमति दे दी और इस तरह पंचायती राज व्यवस्था भारत में लागू हुई.

46 साल बाद सपना हुआ साकार

आजादी के समय से भारत में जिस पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की गई थी. आखिकार 1993 यानी 46 सालों बाद ये सपना साकार हुआ. दुनिया के सबसे लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई यानी पंचायत का सपना साकार हो चुका था. अब ग्रामीण भारत को इसी की नींव पर अपनी विकास की इवारत लिखनी थी.

शिमला: आजादी के बाद भारत में संसाधन सीमित थे. ऐसे में हर व्यक्ति की आवाज सरकार तक पहुंचनी मुश्किल थी. गांधी जी का मानना था कि हर गांव में शासन की एक स्वंतत्र इकाई होनी चाहिए. वो चाहते थे कि हर गांव इतना आत्मनिर्भर हो कि अपनी सरकार खुद चला सकें.

बलवंत राय मेहता कमेटी

गुलामी की जंजीरों से आजाद हुए भारत को एक बार फिर से सोने चिड़िया की बनाने के लिए 1952 में राष्ट्रीय सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरूआत हुई, शहरों में सड़कों, पानी, बिजाली की व्यवस्था होने लगी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अंधेरा ही था. फिर 1957 में पंडित नेहरू ने सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों की जांच के लिए बलवंत राय मेहता कमेटी बनाई.

वीडियो

अशोक राय मेहता समिति

बलवंत राय की सिफारिशों के तहत 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायतीराज व्यवस्था को सबसे पहले लागू किया गया. इसके बाद 1964 तक कई राज्यों ने पंचायती राज व्यवस्था को अपना लिया, लेकिन बलवंत राय मेहता समिति की खामियों को दूर करने के लिए 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया. 1978 में इस समिति ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस समिति ने कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की.

मेहता समिति ने गांव पंचायत और पंचायत समिति को समाप्त करने की बात कही. समिति ने मंडल पंचायत और जिला पंचायत का कार्यकाल चार वर्ष और विकास योजनाओं को जिला स्तर के माध्यम से तैयार करने और उसका क्रियान्वयन मंडल पंचायत से कराने की सिफारिश की, लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया.

राजीव गांधी की सोच

इसके बाद 1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अगर पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी थी तो राजीव गांधी ने इसी नींव पर पंचायती राज की शानदार इमारत खड़ी की. राजीव गांधी का मानना था कि जब तक पंचायती राज व्यवस्था सफल नहीं होगी, तब तक निचले स्तर तक लोकतंत्र नहीं पहुंच सकता.

पीवीके राव समिति

राजीव गांधी की सरकार में 1985 में पीवीके राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ. इस समिति ने राज्य विकास परिषद, जिला परिषद, मंडल पंचायत और गांव स्तर पर सभा के गठन की सिफारिश के साथ अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षण देने की बात कही. लेकिन इसे भी अमान्य कर दिया गया. इसके बाद एलएम सिंघवी की अध्यक्षता में समिति गठित करके उसे पंचायतीराज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई.

गांवों के पुनर्गठन की सिफारिश पर जोर

इस समिति ने गांवों के पुनर्गठन की सिफारिश पर जोर दिया. इसी समिति ने पंचायतों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की बात कही. इसके बाद 1988 में पीके थुंगन समिति का गठन हुआ इस समिति ने अहम सुझाव के तौर पर कहा कि पंचायतीराज संस्थाओं को संविधान सम्मत बनाया जाना चाहिए. इस समिति की सिफारिश के आधार पर पंचायतीराज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वां संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोकसभा ने तो पाारित कर दिया, लेकिन राज्यसभा ने नामंजूर कर दिया.

73वां संवैधानिक संशोधन

16 दिसंबर, 1991 को 72 वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया और उसे संसद की प्रवर समिति को सौंप दिया गया. 72वें संविधान संशोधन विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73 वां संशोधन कर दिया गया. 22 दिसंबर 1992 को लोकसभा और 23 दिसंबर 1992 को राज्यसभा ने 73 वें संविधान संशोधन को मंजूरी दे दी. 17 राज्य विधानसभाओं से मंजूरी दिए जाने के बाद 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति ने भी अपनी सहमति दे दी और इस तरह पंचायती राज व्यवस्था भारत में लागू हुई.

46 साल बाद सपना हुआ साकार

आजादी के समय से भारत में जिस पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की गई थी. आखिकार 1993 यानी 46 सालों बाद ये सपना साकार हुआ. दुनिया के सबसे लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई यानी पंचायत का सपना साकार हो चुका था. अब ग्रामीण भारत को इसी की नींव पर अपनी विकास की इवारत लिखनी थी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.