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परिवार चाहे टिकट: क्या मंडी और जुब्बल में सहानुभूति लहर पर सवार होगी भाजपा

इस साल मार्च महीने में दिल्ली स्थित आवास पर रामस्वरूप शर्मा की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी. वहीं, जुब्बल-कोटखाई से विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्र बरागटा का पोस्ट कोविड कॉम्प्लीकेशन के कारण हाल ही में निधन हुआ है. भाजपा के लिए दोनों नेताओं का देहांत भारी क्षति है. कारण ये है कि मंडी सीट पर रामस्वरूप शर्मा का पैर अंगद की तरह जम गया था और ऊपरी शिमला में नरेंद्र बरागटा पार्टी के प्रतिनिधि चेहरे थे. अब इन सीटों को बरकरार रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है. वहीं फतेहपुर विधानसभा सीट भी विधायक सुजान पठानिया के निधन के बाद खाली हुई है.

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Published : Jun 21, 2021, 9:58 PM IST

Updated : Jun 21, 2021, 10:32 PM IST

शिमला: प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समक्ष इस समय बड़ी चुनौती है. सरकार को एक साथ तीन-तीन उपचुनाव का सामना करना है. मंडी लोकसभा सीट के अलावा फतेहपुर और जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे नेताओं के देहावसान के कारण खाली है.

मंडी सीट पर रामस्वरूप शर्मा दूसरी बार चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे. इस साल मार्च महीने में दिल्ली स्थित आवास पर रामस्वरूप शर्मा की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी. वहीं, जुब्बल-कोटखाई से विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्र बरागटा का पोस्ट कोविड कॉम्प्लीकेशन के कारण हाल ही में निधन हुआ है. भाजपा के लिए दोनों नेताओं का देहांत भारी क्षति है. कारण ये है कि मंडी सीट पर रामस्वरूप शर्मा का पैर अंगद की तरह जम गया था और ऊपरी शिमला में नरेंद्र बरागटा पार्टी के प्रतिनिधि चेहरे थे.

अब इन सीटों को बरकरार रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है. बेशक रामस्वरूप शर्मा और नरेंद्र बरागटा के परिवार के लोग राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं रहे, परंतु अपने पूर्वजों की विरासत को भला कौन आगे नहीं बढ़ाना चाहता? नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा तो फिर भी भाजपा में कमोबेश सक्रिय हैं, लेकिन रामस्वरूप शर्मा के परिवार में ऐसी स्थिति नहीं है. ये अलग बात है कि उनके बड़े बेटे शांति स्वरूप शर्मा अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र के तहत जोगेंद्रनगर में पार्टी का काम देखते आए हैं, लेकिन पार्टी में खास सक्रिय नहीं रहे.

टिकट की आशा

दोनों नेताओं के परिवार के लोग अंदरखाते तो उनकी विरासत को संभालने के लिए तैयार हैं और टिकट की आशा भी रखते हैं, लेकिन निर्णय पार्टी हाईकमान को लेना है. दिवंगत सांसद रामस्वरूप शर्मा के बेटे शांति स्वरूप शर्मा ने कुछ समय पहले सीएम जयराम ठाकुर से भी मुलाकात की थी. वे दबी जुबान में कहते हैं कि उन्हें पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने का अवसर मिले तो उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे. वहीं, नरेंद्र बरागटा के परिवार में से अभी तक खुले तौर पर ऐसे कोई संकेत नहीं आए हैं, लेकिन उनके समर्थक चाहते हैं कि बरागटा के बेटे चेतन को पारी जारी रखने का मौका मिलना चाहिए.

पिता का हाथ बांटते थे चेतन बरागटा

चेतन बरागटा भाजपा में आईटी हैड के साथ-साथ संयोजक की भूमिका भी निभा रहे हैं. चेतन बरागटा भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी सक्रिय रहे हैं. वे अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र में भी राजनीतिक कामकाज में उनका हाथ बंटाते रहे हैं. नरेंद्र बरागटा पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के खास सिपहसालार रहे हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिल पाया था, लेकिन सीएम जयराम ठाकुर ने उन्हें विधानसभा में मुख्य सचेतक का पद दिया. बरागटा की पोस्ट कैबिनेट रैंक की थी. साथ ही वे सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम जनमंच के भी सर्वेसर्वा थे.

बीजेपी में टिकट वितरण के कई पैमाने

ऊपरी शिमला में नरेंद्र बरागटा पार्टी का चेहरा थे, लिहाजा उनकी कमी पूरी करना भाजपा के लिए मुश्किल का काम है. नरेंद्र बरागटा को खोने का जख्म अभी हरा है और ऊपरी शिमला में लोगों का उनके साथ भावनात्मक लगाव रहा है. पार्टी चाहे तो सिंपैथी फैक्टर को अपने पक्ष में कर सकती है. वैसे तो भाजपा हाईकमान में टिकट वितरण के कई पैमाने हैं, लेकिन कई बार परिस्थितियों को देखते हुए चौंकाने वाले फैसले लिए जाते हैं. यदि मंडी सीट की बात की जाए तो वहां पार्टी के पास कई विकल्प हैं. मंडी सीट पर भाजपा करगिल हीरो ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर, युवा नेता प्रवीण शर्मा, संगठन में नामी चेहरे अजय जम्वाल आदि का विकल्प है.

वहीं, रामस्वरूप शर्मा के परिवार में से उनके बड़े बेटे भी अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि पार्टी उन्हें सेवा का मौका दे तो वे तैयार हैं. रामस्वरूप शर्मा का परिवार राजनीति से करीब-करीब दूर ही रहा है. उनके एक बेटे तो सरकारी नौकरी में हैं. बड़े बेटे जरूर चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से काम करने के अलावा मंडी सीट पर पिता के कामकाज में हाथ बंटाते रहे हैं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं सोचा था कि आने वाले समय में परिवार को उनकी विरासत संभालने की नौबत आएगी.

बीजेपी के पास कई विकल्प

भाजपा के लिए दोनों सीटों पर विकल्प तो जरूर मौजूद हैं, लेकिन ये पार्टी को तय करना है कि परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सिंपैथी फैक्टर से कैसे डील किया जाए. क्या पार्टी इन दोनों सीटों पर सहानुभूति लहर पर सवार होकर परिवार में ही टिकट बांटने में सहज महसूस करेगी? वैसे पार्टी ने मंडी सीट पर उपचुनाव की जिम्मेदारी तेजतर्रार नेता और कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को सौंपी है.

हाल ही में पार्टी की कोर ग्रुप की मीटिंग में भी उपचुनावों पर चर्चा हुई है, लेकिन टिकट पर कोई खास बात नहीं की गई है. इसके अलावा फतेहपुर सीट पर भी उपचुनाव होना है. वो सीट कांग्रेस नेता सुजान सिंह पठानिया के लंबी बीमारी के बाद निधन से खाली हुई है. इसी माह टिकट को लेकर सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी.

ये भी पढ़ें: उपचुनावों के लिए CM जयराम ठाकुर को फ्री हैंड, अब प्रत्याशियों के चयन में हाईकमान का कोई दखल नहीं

शिमला: प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समक्ष इस समय बड़ी चुनौती है. सरकार को एक साथ तीन-तीन उपचुनाव का सामना करना है. मंडी लोकसभा सीट के अलावा फतेहपुर और जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे नेताओं के देहावसान के कारण खाली है.

मंडी सीट पर रामस्वरूप शर्मा दूसरी बार चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे. इस साल मार्च महीने में दिल्ली स्थित आवास पर रामस्वरूप शर्मा की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी. वहीं, जुब्बल-कोटखाई से विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्र बरागटा का पोस्ट कोविड कॉम्प्लीकेशन के कारण हाल ही में निधन हुआ है. भाजपा के लिए दोनों नेताओं का देहांत भारी क्षति है. कारण ये है कि मंडी सीट पर रामस्वरूप शर्मा का पैर अंगद की तरह जम गया था और ऊपरी शिमला में नरेंद्र बरागटा पार्टी के प्रतिनिधि चेहरे थे.

अब इन सीटों को बरकरार रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है. बेशक रामस्वरूप शर्मा और नरेंद्र बरागटा के परिवार के लोग राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं रहे, परंतु अपने पूर्वजों की विरासत को भला कौन आगे नहीं बढ़ाना चाहता? नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा तो फिर भी भाजपा में कमोबेश सक्रिय हैं, लेकिन रामस्वरूप शर्मा के परिवार में ऐसी स्थिति नहीं है. ये अलग बात है कि उनके बड़े बेटे शांति स्वरूप शर्मा अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र के तहत जोगेंद्रनगर में पार्टी का काम देखते आए हैं, लेकिन पार्टी में खास सक्रिय नहीं रहे.

टिकट की आशा

दोनों नेताओं के परिवार के लोग अंदरखाते तो उनकी विरासत को संभालने के लिए तैयार हैं और टिकट की आशा भी रखते हैं, लेकिन निर्णय पार्टी हाईकमान को लेना है. दिवंगत सांसद रामस्वरूप शर्मा के बेटे शांति स्वरूप शर्मा ने कुछ समय पहले सीएम जयराम ठाकुर से भी मुलाकात की थी. वे दबी जुबान में कहते हैं कि उन्हें पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने का अवसर मिले तो उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे. वहीं, नरेंद्र बरागटा के परिवार में से अभी तक खुले तौर पर ऐसे कोई संकेत नहीं आए हैं, लेकिन उनके समर्थक चाहते हैं कि बरागटा के बेटे चेतन को पारी जारी रखने का मौका मिलना चाहिए.

पिता का हाथ बांटते थे चेतन बरागटा

चेतन बरागटा भाजपा में आईटी हैड के साथ-साथ संयोजक की भूमिका भी निभा रहे हैं. चेतन बरागटा भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी सक्रिय रहे हैं. वे अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र में भी राजनीतिक कामकाज में उनका हाथ बंटाते रहे हैं. नरेंद्र बरागटा पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के खास सिपहसालार रहे हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिल पाया था, लेकिन सीएम जयराम ठाकुर ने उन्हें विधानसभा में मुख्य सचेतक का पद दिया. बरागटा की पोस्ट कैबिनेट रैंक की थी. साथ ही वे सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम जनमंच के भी सर्वेसर्वा थे.

बीजेपी में टिकट वितरण के कई पैमाने

ऊपरी शिमला में नरेंद्र बरागटा पार्टी का चेहरा थे, लिहाजा उनकी कमी पूरी करना भाजपा के लिए मुश्किल का काम है. नरेंद्र बरागटा को खोने का जख्म अभी हरा है और ऊपरी शिमला में लोगों का उनके साथ भावनात्मक लगाव रहा है. पार्टी चाहे तो सिंपैथी फैक्टर को अपने पक्ष में कर सकती है. वैसे तो भाजपा हाईकमान में टिकट वितरण के कई पैमाने हैं, लेकिन कई बार परिस्थितियों को देखते हुए चौंकाने वाले फैसले लिए जाते हैं. यदि मंडी सीट की बात की जाए तो वहां पार्टी के पास कई विकल्प हैं. मंडी सीट पर भाजपा करगिल हीरो ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर, युवा नेता प्रवीण शर्मा, संगठन में नामी चेहरे अजय जम्वाल आदि का विकल्प है.

वहीं, रामस्वरूप शर्मा के परिवार में से उनके बड़े बेटे भी अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि पार्टी उन्हें सेवा का मौका दे तो वे तैयार हैं. रामस्वरूप शर्मा का परिवार राजनीति से करीब-करीब दूर ही रहा है. उनके एक बेटे तो सरकारी नौकरी में हैं. बड़े बेटे जरूर चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से काम करने के अलावा मंडी सीट पर पिता के कामकाज में हाथ बंटाते रहे हैं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं सोचा था कि आने वाले समय में परिवार को उनकी विरासत संभालने की नौबत आएगी.

बीजेपी के पास कई विकल्प

भाजपा के लिए दोनों सीटों पर विकल्प तो जरूर मौजूद हैं, लेकिन ये पार्टी को तय करना है कि परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सिंपैथी फैक्टर से कैसे डील किया जाए. क्या पार्टी इन दोनों सीटों पर सहानुभूति लहर पर सवार होकर परिवार में ही टिकट बांटने में सहज महसूस करेगी? वैसे पार्टी ने मंडी सीट पर उपचुनाव की जिम्मेदारी तेजतर्रार नेता और कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को सौंपी है.

हाल ही में पार्टी की कोर ग्रुप की मीटिंग में भी उपचुनावों पर चर्चा हुई है, लेकिन टिकट पर कोई खास बात नहीं की गई है. इसके अलावा फतेहपुर सीट पर भी उपचुनाव होना है. वो सीट कांग्रेस नेता सुजान सिंह पठानिया के लंबी बीमारी के बाद निधन से खाली हुई है. इसी माह टिकट को लेकर सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी.

ये भी पढ़ें: उपचुनावों के लिए CM जयराम ठाकुर को फ्री हैंड, अब प्रत्याशियों के चयन में हाईकमान का कोई दखल नहीं

Last Updated : Jun 21, 2021, 10:32 PM IST
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