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असहाय पिता ने अपनी बेटियों को भेजा आश्रम, आपको भी रूला देगी मजबूर बाप की दास्तां... - moti lal shimla

एक पिता अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए सारी जिंदगी काम करता है. वो चाहता है कि उनके बच्चों को दुनिया की सारी खुशियां मिले. लेकिन कभी कभी हालात ऐसे होते हैं कि उनसे लड़ भी नहीं सकते. एक ऐसा ही मामला शिमला में सामने आया है जहां एक पिता ने अपनी दो बेटियों को न चाहते हुए भी आश्रम भेजा. ये दर्द भरी कहानी एक ऐसे पिता की है जो इतना बेबस है कि अपने बच्चों को उसे आश्रम भेजना पड़ा. क्या है पूरा मामला जानें....(Sick father sent his daughters to ashram)

Sick father sent his daughters to ashram
Sick father sent his daughters to ashram
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Published : Dec 18, 2022, 6:48 PM IST

Updated : Dec 19, 2022, 5:34 PM IST

पिता ने अपनी बेटियों को भेजा आश्रम

शिमला: मां बाप अपने बच्चों के लिए किसी भी मुश्किल से लड़ लेते हैं. उनकी ममता को तोला जा सके, ऐसा कोई तराजू नहीं. एक पिता अपने बच्चों की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है. लेकिन बीमारी से लाचार पिता को अपने ही जिगर के टुकड़ों को खुद से दूर करना पड़ा. पहले ही बच्चों के सिर से मां का साया छिन गया था वहीं, एक बीमारी ने पिता को भी बच्चों की देखभाल करने के लिए लाचार बना दिया. ऐसे में अब लाचार पिता ने अपनी दो बेटियों को बालिका आश्रम भेज दिया. मामला शिमला के झंझीड़ी का है. जहां बीमार पिता को न चाहते हुए भी अपनी दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा. (Sick father sent his daughters to ashram)

घर के हालात बेहद खराब: दो साल पहले पीड़ित पिता को पैरालिसिस का अटैक पड़ा. जिसके बाद वह बेरोजगार हो गए. वहीं, इस घटना के दो महीने बाद ही उनकी पत्नी की भी मौत हो गई. व्यक्ति की तीन बेटियां और एक बेटा है, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. बच्चे अपना ख्याल रखने के साथ ही अपने पिता का भी ख्याल रखने लगे. लेकिन आय का कोई साधन नहीं है. आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे न तो अपनी दवाइयां खरीद सकते हैं और न ही मकान का किराया दे पा रहे हैं. (Paralysis Man sent his daughters to ashram)

बेटियों को आश्रम भेजना पिता की मजबूरी: पीड़ित के चार बच्चे हैं. जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी की उम्र 14 साल, दूसरी बेटी की उम्र 10 साल, तीसरी बेटी की उम्र 7 साल जबकि सबसे छोटे बेटे की उम्र 6 साल है. सब बच्चे मिलकर घर पर पिता की मदद करते हैं. स्कूल जाने से पहले सारा काम कर स्कूल जाते हैं. लेकिन अब इन बच्चों का पालन पोषन करना पिता के लिए मुश्किल हो गया है. कोई भी पिता नहीं चाहेगा कि उनके बच्चे उनसे दूर जाएं लेकिन इस पिता की ये मजबूरी कहें या बेबसी. बेटियों के भविष्य को देखते हुए पिता ने फैसला लिया और अपनी दो बेटियों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मदद से बालिका आश्रम भेजा गया है.

भविष्य सुरक्षित हो सके इसलिए भेजा आश्रम: पैरालिसिस से पीड़ित बीमार पिता ने कहा कि जब तक वह स्वस्थ थे, तब तक घर परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो रहा था, लेकिन अब हाथ पैर साथ नहीं देते. 2 साल तक जैसे-तैसे घर का गुजारा हुआ. बच्चों की मदद से ही घर पर सब काम करते हैं, लेकिन पैरालिसिस होने की वजह से रोजगार के साधन नहीं हैं. ऐसे में उन्होंने अपनी दो बेटियों को आश्रम भेजने का मन बनाया है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मदद से दोनों बेटियां आश्रम में रहकर पढ़ाई करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके.

सरकार से नहीं मिली मदद, पड़ोसी बने सहारा: पिता ने बताया कि दो साल पहले जब वे रोजाना की तरह दुकान पर काम कर रहे थे, तो शिवरात्रि के दिन अचानक वे बीमार पड़ गए. अस्पताल जाकर पता लगा कि पैरालिसिस का अटैक पड़ा है. इसके बाद काम पर जाना भी मुश्किल हो गया. बीमार होने के 2 महीने बाद ही धर्मपत्नी की भी मौत हो गई. बच्चों के सिर से मां का साया उठ गया. अब बच्चे ही घर पर सारा काम करते हैं. न तो अपने घर परिवार से सहयोग मिलता है और न ही सरकार से. पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं. बीते एक साल से मकान मालिक ने भी कमरे का किराया तक नहीं लिया है. वह बच्चों को अपने से दूर तो नहीं भेजना चाहते, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि जब वे स्वस्थ होंगे, तो वापस बच्चों को अपने पास बुला लेंगे. वहीं, पीड़ित को सरकार से कोई भी आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है.

सीडब्ल्यूसी की चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने पीड़ित व्यक्ति से बड़ी बेटी और छोटी बेटी को भी आश्रम भेजने के लिए मन बनाने को कहा है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके. चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने जिला प्रशासन से भी बात करने संपर्क करने की बात कही है.

ये भी पढ़ें: खेती के लिए अब मिट्टी की नहीं होगी जरूरत, पानी में उगेंगी सब्जियां, जानें कैसे

पिता ने अपनी बेटियों को भेजा आश्रम

शिमला: मां बाप अपने बच्चों के लिए किसी भी मुश्किल से लड़ लेते हैं. उनकी ममता को तोला जा सके, ऐसा कोई तराजू नहीं. एक पिता अपने बच्चों की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है. लेकिन बीमारी से लाचार पिता को अपने ही जिगर के टुकड़ों को खुद से दूर करना पड़ा. पहले ही बच्चों के सिर से मां का साया छिन गया था वहीं, एक बीमारी ने पिता को भी बच्चों की देखभाल करने के लिए लाचार बना दिया. ऐसे में अब लाचार पिता ने अपनी दो बेटियों को बालिका आश्रम भेज दिया. मामला शिमला के झंझीड़ी का है. जहां बीमार पिता को न चाहते हुए भी अपनी दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा. (Sick father sent his daughters to ashram)

घर के हालात बेहद खराब: दो साल पहले पीड़ित पिता को पैरालिसिस का अटैक पड़ा. जिसके बाद वह बेरोजगार हो गए. वहीं, इस घटना के दो महीने बाद ही उनकी पत्नी की भी मौत हो गई. व्यक्ति की तीन बेटियां और एक बेटा है, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. बच्चे अपना ख्याल रखने के साथ ही अपने पिता का भी ख्याल रखने लगे. लेकिन आय का कोई साधन नहीं है. आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे न तो अपनी दवाइयां खरीद सकते हैं और न ही मकान का किराया दे पा रहे हैं. (Paralysis Man sent his daughters to ashram)

बेटियों को आश्रम भेजना पिता की मजबूरी: पीड़ित के चार बच्चे हैं. जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी की उम्र 14 साल, दूसरी बेटी की उम्र 10 साल, तीसरी बेटी की उम्र 7 साल जबकि सबसे छोटे बेटे की उम्र 6 साल है. सब बच्चे मिलकर घर पर पिता की मदद करते हैं. स्कूल जाने से पहले सारा काम कर स्कूल जाते हैं. लेकिन अब इन बच्चों का पालन पोषन करना पिता के लिए मुश्किल हो गया है. कोई भी पिता नहीं चाहेगा कि उनके बच्चे उनसे दूर जाएं लेकिन इस पिता की ये मजबूरी कहें या बेबसी. बेटियों के भविष्य को देखते हुए पिता ने फैसला लिया और अपनी दो बेटियों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मदद से बालिका आश्रम भेजा गया है.

भविष्य सुरक्षित हो सके इसलिए भेजा आश्रम: पैरालिसिस से पीड़ित बीमार पिता ने कहा कि जब तक वह स्वस्थ थे, तब तक घर परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो रहा था, लेकिन अब हाथ पैर साथ नहीं देते. 2 साल तक जैसे-तैसे घर का गुजारा हुआ. बच्चों की मदद से ही घर पर सब काम करते हैं, लेकिन पैरालिसिस होने की वजह से रोजगार के साधन नहीं हैं. ऐसे में उन्होंने अपनी दो बेटियों को आश्रम भेजने का मन बनाया है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मदद से दोनों बेटियां आश्रम में रहकर पढ़ाई करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके.

सरकार से नहीं मिली मदद, पड़ोसी बने सहारा: पिता ने बताया कि दो साल पहले जब वे रोजाना की तरह दुकान पर काम कर रहे थे, तो शिवरात्रि के दिन अचानक वे बीमार पड़ गए. अस्पताल जाकर पता लगा कि पैरालिसिस का अटैक पड़ा है. इसके बाद काम पर जाना भी मुश्किल हो गया. बीमार होने के 2 महीने बाद ही धर्मपत्नी की भी मौत हो गई. बच्चों के सिर से मां का साया उठ गया. अब बच्चे ही घर पर सारा काम करते हैं. न तो अपने घर परिवार से सहयोग मिलता है और न ही सरकार से. पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं. बीते एक साल से मकान मालिक ने भी कमरे का किराया तक नहीं लिया है. वह बच्चों को अपने से दूर तो नहीं भेजना चाहते, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि जब वे स्वस्थ होंगे, तो वापस बच्चों को अपने पास बुला लेंगे. वहीं, पीड़ित को सरकार से कोई भी आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है.

सीडब्ल्यूसी की चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने पीड़ित व्यक्ति से बड़ी बेटी और छोटी बेटी को भी आश्रम भेजने के लिए मन बनाने को कहा है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके. चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने जिला प्रशासन से भी बात करने संपर्क करने की बात कही है.

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Last Updated : Dec 19, 2022, 5:34 PM IST
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