शिमला: प्रदेश के ऊपरी इलाको में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, जो लोगों को ठंड में ठिठुरने पर मजबूर कर रही है. वहीं, अब पालतू पशुओं को भी ठंड सता रही है. जिला शिमला के ऊपरी इलाकों में ठंड की वजह से आ रही परेशानियों के कारण भेड़ चरवाहे निचले इलाकों की ओर प्रवास कर रहे हैं.
खासतौर से दुर्गम क्षेत्र किन्नौर के इलाकों से ठंड के बढ़ जाने से इन लोगों को अपने पशुधन की चिंता सता रही है और यह लोग अब सड़कों से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर मैदानी इलाकों की ओर जा रहे हैं. वहीं, निचले इलाकों कि ओर जाने के लिए जिन रास्तों और सड़क मार्गो से यह सफर तय करते हैं, उसमें कई कठिनाईयों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
राष्ट्रीय राजमार्ग-05 पर ठियोग के समीप गुजरते हुए भेड़ पलकों से बात की गई. उन्होंने कहा कि उन्हें 400 भेड़ों को बिलासपुर तक पहुंचना है और सड़क मार्ग व रात्रि ठहराव करते समय भेड़ों की रखवाली में बहुत परेशानियां पेश आती है. उन्होंने कहा कि रात भर जंगली जानवरों का डर और दिन को वाहनों से बचाव करना सबसे बड़ी चुनौती होती है.
भेड़ पलकों ने बताया कि कई बार भेड़ें वाहन की चपेट में आ जाती है और बीते वर्ष एक आदमी भी वाहन की चपेट में आ गया था, जिसकी मौके पर ही उसकी मृत्यु हो गई थी. चरवाहों का कहना है कि इन लोगों को सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती और कभी कभार केवल दवाइयां दी जाती हैं, लेकिन भेड़ों की मौत होने पर सरकार कोई मुआवजा नहीं देती है.
इन लोगों का कहना है कि रात को भेड़ों की रखवाली के लिए उन्होंने कुत्ते पाल रखे हैं, जो भेड़ों की रखवाली करते हैं और भोजन ढोने के लिए गधों को रखा गया है. उन्होंने बताया कि वह भोजन की सामग्री को साथ-साथ ढोते रहते हैं. भेड़ पालकों का कहना है कि बिलासपुर तक पहुंचने के लिए एक महीने से ज्यादा का समय लगता है और दिन को इस रफ्तार से चलना पड़ता कि वह रात को अपने निश्चित अड्डे पर पहुंच सके.
बता दें कि सर्दियों का मौसम आते ही ऊपरी शिमला ओर किन्नौर से भेड़ पलकों के समूह निचले इलाकों की ओर चल पड़ते है, जिससे अपने पशुओं को ठंड से बचाया जा सके. रास्तों में कई समस्याओं का सामना करते हुए भेड़ पलको को हरदम अपने पशुधन और खुद को जी जान का खतरा बना रहता है, जिसके लिए सरकार इन लोगों को कोई मुआवजा नहीं देती है. ऐसे में यह सरकार से मुआवजे की आस लगाए बैठे है, जिससे वह आसानी से एक जगह से दूसरी जगह आ जा सके.