किन्नौरः सर्दी के दिनों में जब दूरसंचार माध्यम से हम ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर होती बर्फबारी को देखते हैं, तो ये नजारा मन को मोह लेने वाला होता है. बर्फ की चादर ओढ़े इन वादियों को देख हर किसी के मन में ये विचार जरूर आता है कि काश हम भी इन हसीन वादियों की सैर कर पाएं या फिर यहीं जाकर बस जाएं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दूर से मन को मोह लेने वाला ये नजारा जितना सुंदर दिखता है. यहां रहने वाले लोगों के लिए वो किसी आफत से कम नहीं होता.
जी हां, बर्फ की सफेद चादर से ढके ये पहाड़ जितने मनमोहक हैं, उतना ही कठिन हैं इन बर्फीले इलाकों में अपने अस्तित्व को बचाए रखना. इन पहाड़ों में बसने वाले लोगों का जीवन इतना आसान नहीं होता. पहाड़ी लोगों का जीवन दूर से जितना सरल और साधारण सा दिखता है, असल में ये लोग उतनी ही मुश्किल परिस्थितियों का सामना भी करते हैं.
आज हम आपको बताएंगे कि किन परिस्थितियों में यहां के लोग अपना जीवन-यापन करते हैं और न्यूज चैनलों के माध्यम से हम जब देखते और सुनते हैं कि बर्फबारी के कारण जनजीवन हुआ अस्त-व्यस्त, ये सुनने और देखने की बीच की हकीकत कैसी होती है.
जमीन सफेद, पेड़ सफेद, घर की छत पर बर्फ, हर तरफ बर्फ ही बर्फ और तापमान माइनस 10 डिग्री. जी हां जब हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा, किन्नौर, लाहौल-स्पिति, कुल्लू, शिमला में बर्फबारी का दौर चलता है तो लोग घर के आंगन में पांव तक नहीं रख पाते.
कई फीट ऊंची बर्फ की परतें, जिनमें से होकर घर से बाहर तक निकलना मुश्किल हो जाता है. यहां तक कि पानी की पाइपें तक जम जाती हैं. तकरीबन तीन से चार महीने का दौर कुछ ऐसा होता है कि घर के नलों में पानी नहीं आता. बर्फबारी के दौरान पेट भरने के लिए महीनों का राशन स्टोर कर लिया जाता है.
प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खासकर सूबे के जनजातीय जिलों लाहौल स्पीति, किन्नौर और चंबा में बर्फबारी शुरू होने के कारण पारा शून्य से माइनस 30 डिग्री नीचे तक लुढ़क जाता है. कई इलाकों में 5 से 6 फीट तक बर्फ जम जाती है. बर्फबारी और प्रचंड ठंड के कारण नदियां, झीलें और पेयजल स्त्रोत तक जम जाते हैं.
स्थानीय लोगों की परेशानियां
- पेयजल की पाईपों में जम जाता है पानी
- बर्फ को पिघलाकर की जाती है पीने के पानी की व्यवस्था
- हफ्तों तक ठप्प रहती है बिजली व्यवस्था
- दुकानें बंद होने से आती हैं राशन की दिक्कतें
- स्कूल-कॉलेज हो जाते हैं बंद
- यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प
- सड़कें बंद होने से देश-दुनिया से कट जाता है संपर्क
- फसलों को होता है भारी नुकसान
- पशुओं के लिए की व्यवस्था में आती हैं दिक्कतें
शून्य से नीचे पारा
प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खासकर सूबे के जनजातीय जिलों लाहौल स्पीति, किन्नौर और चंबा में बर्फबारी शुरू होने के कारण पारा शून्य से माइनस 30 डिग्री नीचे तक लुढ़क जाता है. कई इलाकों में 5 से 6 फीट तक बर्फ जम जाती है. बर्फबारी और प्रचंड ठंड के कारण नदियां, झीलें और पेयजल स्त्रोत तक जम जाते हैं.
2018 में हुआ इतना नुकसान
बर्फबारी से होने वाले नुकसान की अगर बात करें तो वर्ष 2018 में प्रदेश में 1,600 करोड़ रुपये का संचयी नुकसान व क्षति हुई थी. जबकि 2019 के आंकड़े आना अभी बाकि है.
2018 में सड़कों व पुलों को लगभग 930 करोड़ रुपये का नुकसान आंका गया था. प्रदेश में कुल 405 भूस्खलन और 34 बादल फटने की घटनाएं हुई थी. सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग को 430 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है. भारी वर्षा और अप्रत्याशित बर्फबारी के कारण फसलों और अधोसंरचना को 130.37 करोड़ रुपये की क्षति की रिपोर्ट प्राप्त हुई थी. वहीं, बाढ़, भूस्खलन, बादल फटने और सड़क दुर्घटनाओं के कारण 343 लोगों ने अपनी जानें गवाई थी. सरकार ने मानव जीवन के नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए 13.72 करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की थी.