शिमला: हिमाचल प्रदेश छोटा पहाड़ी राज्य है. यहां विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं. राज्य का सबसे बड़ा जिला कांगड़ा है और यहां कुल 15 निर्वाचन क्षेत्र हैं. उसके बाद मंडी जिले का नंबर आता है. मंडी जिले में कुल दस विधानसभा सीटें हैं. ऐसे में कुल मिलाकर दो जिलों में ही 25 विधानसभा क्षेत्र आ जाते हैं. यही कारण है कि हिमाचल की सत्ता का रास्ता कांगड़ा व मंडी से होकर निकलता है. कांगड़ा से पहले शांता कुमार दो बार सीएम रह चुके हैं. मंडी को जयराम ठाकुर के तौर पर पहली बार सत्ता की सरदारी मिली है.(Himachal Pradesh Election 2022) ( BJP won 11 seats in kangra in 2017 ) (political equations of kangra and mandi)
यदि मंडी सीएम जयराम ठाकुर के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी रही और कांगड़ा में भाजपा पिछला कमाल दोहरा पाई तो उसके लिए सत्ता का रास्ता आसान हो जाएगा. वहीं, इससे उल्ट हुआ तो हिमाचल में कांग्रेस का रिवाज जारी रहने यानी पांच साल बाद सत्ता पलटने का दावा सच साबित होगा. खैर, दोनों दलों के दावों की सच्चाई 8 दिसंबर को सामने आ जाएगी. फिलहाल, यहां कांगड़ा व मंडी जिले का आंकलन जरूरी है. (15 assembly seats in Kangra district) (10 assembly seats in mandi district) (Political analysis of Kangra district) (Political analysis of mandi district)
कांगड़ा जिले में वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा को 15 में से 11 सीटें हासिल हुई थीं. इसी तरह मंडी जिले में दस में से नौ सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए थे. जोगिंद्रनगर से प्रकाश राणा निर्दलीय जीते थे और बाद में भाजपा में शामिल हो गए. वहीं, कांगड़ा के देहरा निर्वाचन क्षेत्र से होशियार सिंह निर्दलीय चुनाव में जीत हासिल कर भाजपा को समर्थन दे रहे थे. बाद में वे भाजपा में भी शामिल हुए, लेकिन यहां से टिकट रमेश धवाला को मिला तो वे निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद गए.
देखा जाए तो वर्ष 2017 में कांगड़ा व मंडी ने भाजपा को प्रचंड जीत दिलाने में सहायता की थी. सत्ता में आने पर भाजपा ने कांगड़ा से बिक्रम सिंह ठाकुर, विपिन परमार व सरवीण चौधरी को कैबिनेट मंत्री बनाया. बाद में विपिन परमार विधानसभा अध्यक्ष बने और राकेश पठानिया को मंत्री पद मिला. मंडी जिले से सीएम जयराम ठाकुर के अलावा महेंद्र सिंह ठाकुर, अनिल शर्मा मंत्री बने. आश्रय शर्मा के कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ने पर अनिल शर्मा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था. अब अनिल शर्मा फिर से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े हैं.
मंडी में सीएम जयराम ठाकुर की साख दांव पर है. साथ ही उनके जिम्मे कांगड़ा का किला बचाने का काम भी रहा. बेशक पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के सभी बड़े नेताओं ने जोर लगाया है, लेकिन सीएम फेस होने के कारण जयराम ठाकुर को इन दो जिलों के आंकड़ों को बरकरार रखने के लिए जिम्मेदार माना जाएगा. उधर, कांग्रेस भी कांगड़ा व मंडी में बेहतर प्रदर्शन की आस के सहारे सत्ता तक पहुंचने का दावा कर रही है. कांगड़ा के लिहाज से देखें तो पहले यहां 16 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं. बाद में कुल्लू जिले में मनाली सीट बढ़ाई गई और कांगड़ा की एक सीट कम हुई.
ये डी-लिमिटेशन के दौरान हुआ था. तब कांगड़ा से थुरल सीट खत्म हुई थी और भाजपा के कद्दावर राजपूत नेता रविंद्र सिंह रवि वहां से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचा करते थे. हिमाचल में पहली बार भाजपा ने वर्ष 1998 में पूरे पांच साल सत्ता चलाई थी. उस समय भाजपा ने कांगड़ा से 10 सीटें जीत कर सत्ता का रास्ता तय किया था. उस समय कांग्रेस को जिला कांगड़ा में पांच सीटों पर जीत मिली थी. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में बाजी पलट गई. कांग्रेस ने फतह हासिल की और कांगड़ा से 11 सीटें जीत ली.
भाजपा को केवल 4 सीटों से संतोष करना पड़ा. एक निर्दलीय प्रत्याशी जीता था. अगले चुनाव में फिर बाजी भाजपा के हाथ लगी. प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार सीएम बने और कांगड़ा से पार्टी को नौ सीटों पर जीत मिली. तब बसपा से भी संजय चौधरी जीते थे. एक निर्दलीय विधायक बना था. अगले चुनाव में इतिहास ने फिर खुद को दोहराया. वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी और कांगड़ा ने कांग्रेस की झोली में दस सीटें डाल दी.
इस बार निर्दलीय दो सीटों पर जीत गए और भाजपा सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गई. पिछले चुनाव में भाजपा को रिकॉर्ड 11 सीटें मिलीं. देखना होगा कि इस बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला मंडी की दस सीटों में से भाजपा को कितनी सीटें मिलती हैं और कांगड़ा की पंद्रह सीटों का गणित क्या रहता है. हिमाचल की सत्ता का फैसला करने में इन दो जिलों की अहम भूमिका रहेगी. बस इंतजार 8 दिसंबर का है. (Himachal Pradesh elections Exit Polls)
ये भी पढ़ें: आंकड़े गवाह हैं : हिमाचल में सत्ता की रीत, जिस दल की ऊना जिले में 3-2 से जीत