शिमला: जिला में राज्य शिशु गृह ने अभी तक जितने भी बच्चों को गोद दिया है, उनमें बेटों के मुकाबले लोग बेटियां ज्यादा गोद ले रहे है. पिछले 21 सालों में शिशु गृह में 182 के करीब बच्चे आए हैं, जिनमें से 121 बच्चों की अडॉप्शन हुई है.
इन बच्चों में 72 के करीब बेटियां और 48 के करीब बेटे हैं. वही, अभी तक इस वर्ष में बच्चों को गोद लेने के लिए 40 आवेदन आए हैं, जिसमें 26 आवेदन ऐसे हैं जो बेटी को गोद लेने की चाहत रखते हैं.
बाल कल्याण परिषद की सचिव ने इस बात पर खुशी जाहिर की है कि आज के समय में जिन दंपतियों की अपनी कोई संतान नहीं है वह बेटियों को गोद ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि शिशु गृह में हर साल ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें जन्म के बाद ही बेसहारा छोड़ दिया जाता है. इन बच्चों मे लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल हैं.
सचिव ने कहा कि कुछ अभिभावक एक ओर जहां बेटी के पैदा होने पर उसे बेसहारा छोड़ देते है. वहीं, दूसरी ओर इस तरह के लोग भी हैं, जो अपनी गोद का सूनापन बेटियों की किलकारियों से भर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बेटियों के लिए सरकार ने भी जो योजनाएं चलाई है या 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का जो नारा दिया है वह हिमाचल में पूरी तरह से सफल होता नजर आ रहा है.
उन्होंने कहा कि उनका प्रयास रहता है कि शिशु गृह में रह रहे हर बच्चें को एक मां की गोद मिल जाए. उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी होती है जब बच्चे को गोद लेने के लिए कोई दंपत्ति आवेदन करता है और खासतौर पर जब वह बेटी को गोद लेना चाहते है.
उनका मानना है कि जो दंपत्ति बेटी को गोद लेने की चाह दिखाते हैं उनकी मानसिकता कहीं न कहीं यह रहती है कि बेटों के मुकाबले बेटियां अपने माता-पिता का ज्यादा ख्याल रखती है. वहीं, सरकार के प्रयास भी लोगों की मानसिकता पर असर कर रहे हैं और बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव हो रहा है, जिसे हम भी अनुभव कर रहे है.
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