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बेटों के मुकाबले बेटियां ज्यादा प्यारी, हिमाचल में 'लक्ष्मी' को गोद लेना चाहते हैं दंपत्ति

राज्य शिशु गृह में बेऔलाद दंपत्ति बेटों के मुकाबले बेटियों को गोद लेना चाहते है. बेटियों के लिए सरकार की योजना "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" हिमाचल में पूरी तरह से सफल होता नज़र आ रही हैं.

बेटों के मुकाबले बेटियों को गोद लेना चाहते है बेऔलाद दंपत्ति
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Published : Oct 10, 2019, 8:13 PM IST

शिमला: जिला में राज्य शिशु गृह ने अभी तक जितने भी बच्चों को गोद दिया है, उनमें बेटों के मुकाबले लोग बेटियां ज्यादा गोद ले रहे है. पिछले 21 सालों में शिशु गृह में 182 के करीब बच्चे आए हैं, जिनमें से 121 बच्चों की अडॉप्शन हुई है.

इन बच्चों में 72 के करीब बेटियां और 48 के करीब बेटे हैं. वही, अभी तक इस वर्ष में बच्चों को गोद लेने के लिए 40 आवेदन आए हैं, जिसमें 26 आवेदन ऐसे हैं जो बेटी को गोद लेने की चाहत रखते हैं.

बाल कल्याण परिषद की सचिव ने इस बात पर खुशी जाहिर की है कि आज के समय में जिन दंपतियों की अपनी कोई संतान नहीं है वह बेटियों को गोद ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि शिशु गृह में हर साल ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें जन्म के बाद ही बेसहारा छोड़ दिया जाता है. इन बच्चों मे लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल हैं.

सचिव ने कहा कि कुछ अभिभावक एक ओर जहां बेटी के पैदा होने पर उसे बेसहारा छोड़ देते है. वहीं, दूसरी ओर इस तरह के लोग भी हैं, जो अपनी गोद का सूनापन बेटियों की किलकारियों से भर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बेटियों के लिए सरकार ने भी जो योजनाएं चलाई है या 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का जो नारा दिया है वह हिमाचल में पूरी तरह से सफल होता नजर आ रहा है.

वीडियो.

उन्होंने कहा कि उनका प्रयास रहता है कि शिशु गृह में रह रहे हर बच्चें को एक मां की गोद मिल जाए. उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी होती है जब बच्चे को गोद लेने के लिए कोई दंपत्ति आवेदन करता है और खासतौर पर जब वह बेटी को गोद लेना चाहते है.

उनका मानना है कि जो दंपत्ति बेटी को गोद लेने की चाह दिखाते हैं उनकी मानसिकता कहीं न कहीं यह रहती है कि बेटों के मुकाबले बेटियां अपने माता-पिता का ज्यादा ख्याल रखती है. वहीं, सरकार के प्रयास भी लोगों की मानसिकता पर असर कर रहे हैं और बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव हो रहा है, जिसे हम भी अनुभव कर रहे है.

ये भी पढ़ें: CPWD करेगा हमीरपुर मेडिकल कॉलेज के भवन का निर्माण, MoU हुआ साइन

शिमला: जिला में राज्य शिशु गृह ने अभी तक जितने भी बच्चों को गोद दिया है, उनमें बेटों के मुकाबले लोग बेटियां ज्यादा गोद ले रहे है. पिछले 21 सालों में शिशु गृह में 182 के करीब बच्चे आए हैं, जिनमें से 121 बच्चों की अडॉप्शन हुई है.

इन बच्चों में 72 के करीब बेटियां और 48 के करीब बेटे हैं. वही, अभी तक इस वर्ष में बच्चों को गोद लेने के लिए 40 आवेदन आए हैं, जिसमें 26 आवेदन ऐसे हैं जो बेटी को गोद लेने की चाहत रखते हैं.

बाल कल्याण परिषद की सचिव ने इस बात पर खुशी जाहिर की है कि आज के समय में जिन दंपतियों की अपनी कोई संतान नहीं है वह बेटियों को गोद ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि शिशु गृह में हर साल ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें जन्म के बाद ही बेसहारा छोड़ दिया जाता है. इन बच्चों मे लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल हैं.

सचिव ने कहा कि कुछ अभिभावक एक ओर जहां बेटी के पैदा होने पर उसे बेसहारा छोड़ देते है. वहीं, दूसरी ओर इस तरह के लोग भी हैं, जो अपनी गोद का सूनापन बेटियों की किलकारियों से भर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बेटियों के लिए सरकार ने भी जो योजनाएं चलाई है या 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का जो नारा दिया है वह हिमाचल में पूरी तरह से सफल होता नजर आ रहा है.

वीडियो.

उन्होंने कहा कि उनका प्रयास रहता है कि शिशु गृह में रह रहे हर बच्चें को एक मां की गोद मिल जाए. उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी होती है जब बच्चे को गोद लेने के लिए कोई दंपत्ति आवेदन करता है और खासतौर पर जब वह बेटी को गोद लेना चाहते है.

उनका मानना है कि जो दंपत्ति बेटी को गोद लेने की चाह दिखाते हैं उनकी मानसिकता कहीं न कहीं यह रहती है कि बेटों के मुकाबले बेटियां अपने माता-पिता का ज्यादा ख्याल रखती है. वहीं, सरकार के प्रयास भी लोगों की मानसिकता पर असर कर रहे हैं और बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव हो रहा है, जिसे हम भी अनुभव कर रहे है.

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Intro:आज के दौर में भी जहां कुछ लोग बेटा- बेटी में फर्क करते है ओर बेटे के ही चाह रखते है वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जिनकी यह चाह है कि उनकी सुनी गोद, उनके घर के सुने आंगन को एक बेटी की किलकारी ओर उसका बचपन चहका दे। यही वजह भी है कि राज्य शिशु गृह से बेटों के मुकाबले बेटियां ज्यादा गोद ली जा रही है। जिन लोगों के नसीब में अपनी औलाद नहीं है ऐसे दंपति राज्य शिशु गृह शिमला में बेटियों को गोद लेने के लिए आवेदन कर रहे है और बेटियों को गोद ले रहे है। हर साल इस शिशु गृह में ऐसे बच्चे जिन्हें जन्म के बाद ही बेसहारा छोड़ दिया जाता है वह यहां आए जाते है। इन बच्चों मे लड़के और लड़कियों दोनों ही शामिल है पर जिन दंपतियों की अपनी संतान नहीं है ओर वह बच्चा गोद लेना चाह रहे है तो वह भी बेटों के मुकाबले नन्ही बेटियों को गोद लेने की चाह दिखा रहे है।


Body:राज्य शिशु गृह में अभी तक जितने भी बच्चें गोद दिए गए है उसमें बेटियों की संख्या बेटों से ज्यादा है। 21 साल में शिशु गृह में 182 के करीब बच्चें आए है जिनमें से 121 के करीब बच्चों की अडॉप्शन करवाई गई है। इस आंकड़े में भी जिन बेटियों को गोद लिया गया है उनकी संख्या 72 के करीब है और बेटों की संख्या 48 के करीब है। वहीं इस वर्ष भी बच्चों को गोद लेने के लिए 40 के करीब जो आवेदन आए है उनमें से 26 के करीब आवेदन ऐसे है जिसमें दंपतियों ने बेटी को गोद लेने की चाहत दिखाई है। बाल कल्याण परिषद की सचिव ने भी इस बात पर खुशी ज़ाहिर की है कि आज के समय में जिन दपतियों की अपनी कोई संतान नहीं है वह बेटियों को गोद ले रहे है।


Conclusion:कुछ अभिभावक एक ओर जहां बच्ची पैदा होने पर उसे बेसहारा छोड़ देते है वहीं इस तरह के भी लोग है जो अपनी गोद का सूनापन इन बच्चियों की किलकारियों से भर रहे है। उन्होंने कहा कि बेटियों के लिए सरकार ने भी जो योजनाएं चलाई है या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जो नारा दिया है वह हिमाचल में पूरी तरह से सफल होता नज़र आ रहा हैं। उन्होंने कहा की उनके शिशु गृह में रह रहे हर बच्चें को एक मां की गोद मिले यह उनका प्रयास रहता है लेकिन खुशी होती है जब बच्चें को गोद लेने के लिए कोई दंपति आवेदन करता है और वह बेटी को गोद लेना चाहता है। उनका मानना है कि जो दंपति बेटियों को गोद लेने की चाह दिखाते है उनकी मानसिकता कहीं न कहीं यही रहती है कि बेटों के मुकाबले बेटियां ज्यादा ख्याल अपने माता-पिता का रखती है। वहीं अब सरकार के प्रयास भी लोगों की मानसिकता पर असर कर रहे है और बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव हो रहा है जिसे हम खुद भी अनुभव कर रहे है।
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