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ना मोबाइल ना इंटरनेट, आज के दौर में भी चिट्ठी से जानते हैं हाल, इस बार वोट नहीं डालेंगे पांगी घाटी के 30 हजार लोग

पांगीवासियों ने लोकसभा चुनाव को बहिष्कार करने का लिया फैसला. साल के 6 महीने कारावास की जिंदगी जीते हैं यहां के लोग.

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Published : Apr 2, 2019, 8:08 AM IST

Updated : Apr 3, 2019, 10:26 AM IST

शिमलाः पूरे देश मे डिजिटल क्रांति के इस युग में भी हिमाचल का एक क्षेत्र ऐसा है जहां लोग पाषाण युग की तरह मूलभूत सुविधाओं के बगैर जीने को मजबूर हैं. देश में लोकसभा चुनाव के शोर के बीच जनजातीय क्षेत्र पांगी के 30 हजार लोगों ने इस बार लोकसभाचुनाव बहिष्कार करने का फैसला लिया है.

चंबा के पांगी वासियों के हालत की बात की जाए तो यहां लोग अपनों का हाल जानने के लिए आज भी चिट्ठी का सहारा ले रहे हैं. पांगी के लोग अपनों के हाल-चाल जानने के लिए खत आने का इंतजार करते हैं. ये इलाका अभी तक भी मोबाइल फोन और इंटरनेट से कोसों दूर है और यहां बसने वाली 60 फीसदी आबादी ने मोबाईल फोन का इस्तेमाल तो दूर, मोबाइल फोन तक नहीं देखा है. सरकारें जिस डिजिटल इंडिया का सपना लोगों को दिखा रही हैं. वहीं, पांग केलोग अभी भीमोबाईल नेटवर्क की राह देख रहे हैं.

पांगी का बर्फबारी के चलते 6 महीनेके लिए पूरी दुनिया से कट जाता है. लोग इन छह महीनों में जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते हैं. पांगी उपमंडल के मात्र 20 फीसदी गांव ऐसे हैं, जहां बीएसएनएल का नेटवर्क मिलने से लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर पा रहे हैं, लेकिन बाकी आबादी अभी भी चिट्ठीलिख करएक-दूसरे का कुशलक्षेम या फिर अपने सरकारी काम पूरे करते हैं.बर्फबारी के छह महीनों में पांगी घाटी में जीवन हर रोज एक जंग है. हालात येहैं कि कम संसाधनों में भी येलोग आज भी इस घाटी से पलायन ना कर इस उम्मीद पर टिके हैं कि सरकार इनकी दशा को देख कर यहां सुविधाएं मुहैया करवाएगी.

हर बार देश की सरकारें यहां के लोगों को ठगती आई हैं. इस बार पांगी के 16 पंचायतों के प्रजामण्डलों ने एकमत होकर फैसला किया है कि जब तक सरकारें इनकी दशा को सुधारने के लिए काम नहीं करती तब तक यहां के 30 हजारलोग किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेंगे.पांगी क्षेत्र के लिए संघर्षरत पांगी सुरंग समिति के संयोजक हरीश शर्मा का कहना है कि प्रस्तावित चैड़ी धार सुरंग समेत किलाड़-जोत-द्रमन सड़क का निर्माण होने से पांगी घाटी के हजारों लोगों को राहत मिलेगी.

हरीश शर्मा का कहना है कि हर बार चुनाव के समय इस सुरंग और सड़क निर्माण के वादे राजनीतिक पार्टियां करती हैं और इसी के आधार पर वोट पर लेती हैं, लेकिन इस बार यह संभव नहीं होगा. पांगी के प्रजामण्डलों ने ये साफ कर दिया है कि जब तक सुरंग का निर्माण नहीं होता है तब तक यहां के लोग मतदान नहीं करेंगे और जो नेता इस सुरंग का निर्माण करवाएगा उसी को अपना समर्थन घाटी के लोग देंगे.

हरीश शर्मा ने पांगी के हालातों के बारे में बताया कि घाटी के लोग जो संपन्न परिवारों से हैं वो घाटी से पलायन कर चुके हैं, लेकिन 90 फीसदी लोग अभी भी घाटी में रहकर अपनाजीवन जी रहे हैं. यहां आज के दौर में भी सवास्थ्य सेवाएं ,बेहतर शिक्षा, बिजली, दूरसंचार की सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं. नवंबर से अप्रैल तक बर्फबारी के चलते ये घाटी विश्वभर से कट जाती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बीमार होता है या कोई महिला गर्भवती है उसे बेहतर इलाज के लिए हवाई सेवा द्वारा ही घाटी से बाहर ले जा पाना संभव हो पाता है औरहवाई सेवामौसम पर निर्भर करतीहै.

पांगी से ही संबंध रखने वाली छात्राओं दीपा और वर्षा शर्मा ने पांगी में छात्रों की समस्याओं में बारे में बताया कि शिक्षा के लिए स्कूल तो हैं, लेकिन इन हालातों में शिक्षक अपनी सेवाएं देने के लिए यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं. एकमात्र कॉलेज यहां बच्चों की उच्चशिक्षा के लिए सरकार ने खोला है, लेकिन यहां भी केवल आटर्स के छात्रों को पढ़ना पढ़ रहा है, क्योंकि अन्य स्ट्रीम्स के शिक्षक इस कॉलेज में उपलब्ध नहीं हैं. सांइस कॉमर्स की पढ़ाई के लिए छात्रों को हजारों रुपयेखर्च कर चंबा या अन्य जगह जाना पड़ता है.

लोगों की मांग है कि सरकार पांगी को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में काम करें, ताकि यहां के लोग भी डिजिटल इंडिया और प्रगतिशील इंडिया का खुद को हिस्सा मान सकें और कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन सही तरीके से बसर कर सकें. क्षेत्रवासियों का कहना है कि जब तक इनके लिए सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जाती, तब तक यहां के लोग किसी भी चुनावमें मतदान नहीं करेंगे.

आज भी पांगी में प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च
पांगी घाटी में आज भी प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च है. पांगी घाटी में प्राचीन काल से प्रजामण्डलों को देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है. यहां 43 प्रजामंडल हैं और प्रजामंडल के सुनाए गए निर्णय को जनजातीय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति दरकिनार नहीं करता. यदि कोई ऐसा करता है उसे समाज से निष्कासित करने का दंड सुनाया जाता है. यही वजह है किइस बार लोकसभाचुनावमें शून्य मतदान करने का फैसला प्रजामंडल के समर्थन से घाटी के लोगों ने किया है.

शिमलाः पूरे देश मे डिजिटल क्रांति के इस युग में भी हिमाचल का एक क्षेत्र ऐसा है जहां लोग पाषाण युग की तरह मूलभूत सुविधाओं के बगैर जीने को मजबूर हैं. देश में लोकसभा चुनाव के शोर के बीच जनजातीय क्षेत्र पांगी के 30 हजार लोगों ने इस बार लोकसभाचुनाव बहिष्कार करने का फैसला लिया है.

चंबा के पांगी वासियों के हालत की बात की जाए तो यहां लोग अपनों का हाल जानने के लिए आज भी चिट्ठी का सहारा ले रहे हैं. पांगी के लोग अपनों के हाल-चाल जानने के लिए खत आने का इंतजार करते हैं. ये इलाका अभी तक भी मोबाइल फोन और इंटरनेट से कोसों दूर है और यहां बसने वाली 60 फीसदी आबादी ने मोबाईल फोन का इस्तेमाल तो दूर, मोबाइल फोन तक नहीं देखा है. सरकारें जिस डिजिटल इंडिया का सपना लोगों को दिखा रही हैं. वहीं, पांग केलोग अभी भीमोबाईल नेटवर्क की राह देख रहे हैं.

पांगी का बर्फबारी के चलते 6 महीनेके लिए पूरी दुनिया से कट जाता है. लोग इन छह महीनों में जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते हैं. पांगी उपमंडल के मात्र 20 फीसदी गांव ऐसे हैं, जहां बीएसएनएल का नेटवर्क मिलने से लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर पा रहे हैं, लेकिन बाकी आबादी अभी भी चिट्ठीलिख करएक-दूसरे का कुशलक्षेम या फिर अपने सरकारी काम पूरे करते हैं.बर्फबारी के छह महीनों में पांगी घाटी में जीवन हर रोज एक जंग है. हालात येहैं कि कम संसाधनों में भी येलोग आज भी इस घाटी से पलायन ना कर इस उम्मीद पर टिके हैं कि सरकार इनकी दशा को देख कर यहां सुविधाएं मुहैया करवाएगी.

हर बार देश की सरकारें यहां के लोगों को ठगती आई हैं. इस बार पांगी के 16 पंचायतों के प्रजामण्डलों ने एकमत होकर फैसला किया है कि जब तक सरकारें इनकी दशा को सुधारने के लिए काम नहीं करती तब तक यहां के 30 हजारलोग किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेंगे.पांगी क्षेत्र के लिए संघर्षरत पांगी सुरंग समिति के संयोजक हरीश शर्मा का कहना है कि प्रस्तावित चैड़ी धार सुरंग समेत किलाड़-जोत-द्रमन सड़क का निर्माण होने से पांगी घाटी के हजारों लोगों को राहत मिलेगी.

हरीश शर्मा का कहना है कि हर बार चुनाव के समय इस सुरंग और सड़क निर्माण के वादे राजनीतिक पार्टियां करती हैं और इसी के आधार पर वोट पर लेती हैं, लेकिन इस बार यह संभव नहीं होगा. पांगी के प्रजामण्डलों ने ये साफ कर दिया है कि जब तक सुरंग का निर्माण नहीं होता है तब तक यहां के लोग मतदान नहीं करेंगे और जो नेता इस सुरंग का निर्माण करवाएगा उसी को अपना समर्थन घाटी के लोग देंगे.

हरीश शर्मा ने पांगी के हालातों के बारे में बताया कि घाटी के लोग जो संपन्न परिवारों से हैं वो घाटी से पलायन कर चुके हैं, लेकिन 90 फीसदी लोग अभी भी घाटी में रहकर अपनाजीवन जी रहे हैं. यहां आज के दौर में भी सवास्थ्य सेवाएं ,बेहतर शिक्षा, बिजली, दूरसंचार की सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं. नवंबर से अप्रैल तक बर्फबारी के चलते ये घाटी विश्वभर से कट जाती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बीमार होता है या कोई महिला गर्भवती है उसे बेहतर इलाज के लिए हवाई सेवा द्वारा ही घाटी से बाहर ले जा पाना संभव हो पाता है औरहवाई सेवामौसम पर निर्भर करतीहै.

पांगी से ही संबंध रखने वाली छात्राओं दीपा और वर्षा शर्मा ने पांगी में छात्रों की समस्याओं में बारे में बताया कि शिक्षा के लिए स्कूल तो हैं, लेकिन इन हालातों में शिक्षक अपनी सेवाएं देने के लिए यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं. एकमात्र कॉलेज यहां बच्चों की उच्चशिक्षा के लिए सरकार ने खोला है, लेकिन यहां भी केवल आटर्स के छात्रों को पढ़ना पढ़ रहा है, क्योंकि अन्य स्ट्रीम्स के शिक्षक इस कॉलेज में उपलब्ध नहीं हैं. सांइस कॉमर्स की पढ़ाई के लिए छात्रों को हजारों रुपयेखर्च कर चंबा या अन्य जगह जाना पड़ता है.

लोगों की मांग है कि सरकार पांगी को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में काम करें, ताकि यहां के लोग भी डिजिटल इंडिया और प्रगतिशील इंडिया का खुद को हिस्सा मान सकें और कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन सही तरीके से बसर कर सकें. क्षेत्रवासियों का कहना है कि जब तक इनके लिए सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जाती, तब तक यहां के लोग किसी भी चुनावमें मतदान नहीं करेंगे.

आज भी पांगी में प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च
पांगी घाटी में आज भी प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च है. पांगी घाटी में प्राचीन काल से प्रजामण्डलों को देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है. यहां 43 प्रजामंडल हैं और प्रजामंडल के सुनाए गए निर्णय को जनजातीय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति दरकिनार नहीं करता. यदि कोई ऐसा करता है उसे समाज से निष्कासित करने का दंड सुनाया जाता है. यही वजह है किइस बार लोकसभाचुनावमें शून्य मतदान करने का फैसला प्रजामंडल के समर्थन से घाटी के लोगों ने किया है.

Intro:स्पेशल स्टोरी: पूरे देश मे डिजिटल क्रांति के इस युग में जहां हाई स्पीड इंटरनेट ने सब कुछ एक क्लिक पर ही उपलब्ध हो रही है। सूचनाओं का आदान प्रदान आसान हो गया है वहीं हिमाचल का एक जनजातिय क्षेत्र ऐसा है जहां लोग पाषाण काल के युग में जीने को मजबूर है। यही वजह है कि जहां देश में लोकसभा चुनावों का शोर है और प्रचार प्रसार जोरों है वहीं जनजातीय क्षेत्र पांगी के लोगों ने इन लोकसभा चुनावों को बहिष्कार करने का फ़ैसला ले लिया है और क्षेत्र के 30 हज़ार लोग एक साथ इन चुनावों में अपने मतदान का प्रयोग नहीं करेंगे।
पांगी वासियों के हालत की बात की जाए तो यहां लोग अपने अपनों का हाल जानने के लिए भी चिट्ठी का सहारा ले रहे है। खत लिखकर पांगी के लोग अपने अपनों तक अपने संदेश के पहुंचने का इंतजार करने के साथ है वहां से जवाब के रूप में आने वाले ख़त का इंतज़ार करते है। यह क्षेत्र अभी तक भी मोबाईल फोन और इंटरनेट से कोसों दूर है और 60 फ़ीसदी आबादी जो इस जनजातीय क्षेत्र में बस रही है उन्होंने आज दिन तक मोबाईल फोन का इस्तेमाल तो दूर लेकिन मोबाईल फोन तक नहीं देखा है। सरकारें जिस डिजिटल इंडिया का सपना लोगों को दिखा रही ही वहां एक तस्वीर इन सपनों की यह भी है जहां के लोग अभी भी एक बेहतर मोबाईल नेटवर्क की राह देख रहे है जिससे कि वो अपने अपनों का हाल एक फोन कर के जान सके और उन्हें खत लिखकर उसके पहुंचने का इतंजार ना करना पड़े लेकिन उनका यह सपना आज वर्षों बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। मोबाईल फोन रखने का कोई फायदा भी यहां के लोगों को नहीं है। पांगी घाटी में सिग्नल ही नहीं मिलता है जिसकी वजह से यहां लोग मोबाईल फोन ही नहीं रखते है।


Body:चम्बा जिला का पांगी का यह क्षेत्र जो बर्फबारी के चलते 6 माह के लिए विश्वभर से कट जाता है उस क्षेत्र में लोग इन छह माह तक अपने जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते है। पांगी उपमंडल के मात्र 20 फीसदी गांव ऐसे है जहां बीएसएनएल का नेटवर्क मिलने से लोग मोबाईल फोन का इस्तेमाल कर पा रहे है लेकिन बाकी आबादी अभी भी पत्र लिख कर ही एक दूसरे का कुशलक्षेम या फिर अपनी सरकारी काम पूरे कर पा रहे है।
पांगी के लोगों के जीवन की बात की जाए तो यहां तक की बिना पानी,बिजली के यह लोग यहां जीवन यापन कर इन 6 माह के समय में करते है। अन्य सुविधाएं तो दूर लेकिन यहां के लोग रोजमर्रा की मूलभूत सुविधाओं के लिए अभी भी अपनी जंग जारी रखे है। हालात यह है कि कम संसाधनों में भी यह लोग आज भी इस घाटी से पलायन ना कर इस उम्मीद पर टिके है कि सरकार इनकी दशा को देख कर यहां सुविधाएं मुहैया करवाएगी। हर बार देश की सरकारें यहां के लोगों को ठगती आई है लेकिन इस बार पांगी के 16 पंचायतों के प्रजामण्डलों में एक मत हो कर यह फैसला किया है कि जब तक सरकारें इनकी दशा को सुधारने के लिए काम नहीं करती तब तक यहां के 30 हज़ार लोग लोकसभा चुनावों में अपना मतदान नहीं करेंगे ओर ईवीएम का बटन नहीं दबाएंगे। पांगी क्षेत्र के लिए संघर्षरत पांगी सुरंग समिति के सयोंजक हरीश शर्मा का कहना है कि प्रस्तावित चैड़ी धार सुरंग समेत किलाड़-जोत-द्रमन सड़क का निर्माण होने से पांगी घाटी के हज़ारो लोगों को राहत मिलेगी। हर बार चुनावों के समय इस सुरंग ओर सड़क निर्माण के वादे देश और प्रदेश की सरकारें करती है और इसी के आधार पर वोट पर लेती है लेकिन इस बार यह संभव नहीं होगा।अब पांगी के प्रजामण्डलों ने अपना समर्थन दे कर यह साफ कर दिया है कि जब तक सुरंग का निर्माण कार्य नहीं होता है तब तक मतदान भी यहां के लोग नहीं करेंगे। जो नेता इस सुरंग का निर्माण करवाएगा उसी को अपना समर्थन घाटी के लोग देंगे।


Conclusion:हरीश शर्मा के पांगी के लोगों के जीवन के बारे में कहना है कि घाटी के लोग जो कुछ हद तक संम्पन परिवारों से है वो घाटी से पलायन भी कर चुके है लेकिन 90 फीसदी लोग अभी भी घाटी में रहकर ही अपने जीवन को जी रहे है। ना तो से सवास्थ्य सेवाएं , ना ही शिक्षा की बेहतर सुविधा यहां आज के दौर में भी मिल पा रही है। नवंबर से अप्रैल माह तक बर्फबारी के चलते यह घाटी विश्वभर से कट जाती है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बीमार होता है या कोई महिला गर्भवती है उसे बेहतर इलाज के लिए हवाई सेवा के माध्य्म से ही घाटी से बाहर के जा पाना संभव हो पाता है । हवाई सेवा से मौसम पर निर्भर रहती है।
पांगी से ही संबंध रखने वाली छात्राओं दीपा ओर वर्षा शर्मा ने पांगी में छात्रों की समस्याओं में बारे में बताया कि शिक्षा के लिए स्कूल तो है लेकिन इन हालातों में शिक्षक अपनी सेवाएं देने के लिए यहां तक नहीं पहुंचते है। एक मात्र कॉलेज यहां बच्चों की उच्चशिक्षा के लिए सरकार ने खोला है लेकिन यहां भी मात्र आटर्स ही छात्रों को पढ़ना पढ़ रहा है जिसकी वजह है अन्य स्ट्रीम के शिक्षक इस कॉलेज में उपलब्ध ना हो पाना। यही वजह है कि छात्र अपनी उच्च शिक्षा के लिए कम संसाधनों में हजारों रुपए खर्च कर चंबा या अन्य जगह जाने को मजबूर हो रहे है। इस क्षेत्र के लोग आज भी सरकारों से यह गुहार लगा रहे है कि इस जनजातीय क्षेत्र जहां के लोगों का जीवन किसी जेल की सजा से कम नहीं है उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा ने काम करे ताकि यह लोग भी डिजिटल इंडिया और प्रगतिशील इंडिया का खुद को हिस्सा मान सकें और कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन सही तरीके से गुज़र बसर कर सकें। क्षेत्रवासियों का कहना है कि 50 वर्ष जैसा हो जीवन यहां के लोग आज भी व्यतीत कर रहे है। ऐसे में अब जब तक इनके लिए सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जाती है तब तक यहां के लोग लोकसभा चुनावों में मतदान नहीं करेंगे।

बॉक्स:
आज भी पांगी में प्रजामण्डलों का फ़ैसला ही सर्वोच्च,प्रजामंडल के समर्थन से ही लोकसभा चुनावों में नहीं करेंगे पांगी के लोग मतदान

पांगी घाटी में आज भी प्रजामण्डलों का फ़ैसला ही सर्वोच्च है। पांगी घाटी में प्राचीन काल से प्रजामण्डलों को देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। 43 प्रजामंडल यहां है और प्रजामंडल के सुनाए गए निर्णय को जनजातीय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति दरकिनार नहीं करता है जो ऐसा करता है उसे समाज से निष्कासित करने का दंड सुनाया जाता है। यही वजह है की इस बार विधानसभा चुनावों में शून्य मतदान करने का फ़ैसला प्रजामंडल के समर्थन से घाटी के लोगों ने किया है।
नोट: शॉट्स के लिए इंतजार करें।
Last Updated : Apr 3, 2019, 10:26 AM IST
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