शिमला: सिस्टर निवेदिता गवर्नमेंट नर्सिंग कॉलेज में शुक्रवार को स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (State Organ and Tissue Transplant Organization, सोटो) हिमाचल प्रदेश की ओर से अंगदान विषय पर जागरूकता कार्यक्रम (Organ donation program in Shimla) आयोजित किया गया. इस मौके पर बीएससी नर्सिंग द्वितीय वर्ष की 55 छात्राओं ने अंगदान करने की शपथ ली. कार्यक्रम में आई बैंक के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. यशपाल रांटा ने नर्सिंग की छात्राओं को ऑर्गन डोनेशन के बारे में जागरूक किया. उन्होंने बताया कि लोग मृत्यु के बाद भी अपने अंगदान करके जरूरतमंद का जीवन बचा सकते हैं.
डॉ. यशपाल रांटा ने बताया कि साल 1954 में देश में पहली बार ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया गया था. अंगदान करने वाला व्यक्ति ऑर्गन के जरिए 8 लोगों का जीवन बचा सकता. जीवित अंगदाता किडनी, लीवर का भाग, फेफड़े का भाग और बोन मैरो दान दे सकते हैं, वहीं मृत्युदाता यकृत, गुर्दे, फेफड़े, पैंक्रियाज, कॉर्निया और त्वचा दान कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि हृदय को 4 से 6 घंटे, फेफड़े को 4 से 8 घंटे, इंटेस्टाइन को 6 से 10 घंटे, यकृत को 12 से 15 घंटे, प्रैंकियाज को 12 से 14 घंटे और किडनी को 24 से 48 घंटे के अंतराल में जीवित व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों और दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के ब्रेन डेड होने के बाद यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है.
अंगदान के लिए परिजनों की सहमति जरूरी: अस्पताल में मरीज को निगरानी में रखा जाता है और विशेष कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है. मृतक के अंग लेने के लिए परिवार के सदस्यों की सहमति बेहद जरूरी रहती है. उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि साल 2010 से अस्पताल में आई बैंक (Eye Bank in Himachal) खोला गया है, इसके तहत मौजूदा समय तक सैकड़ों मरीजों ने आंखें दान करके जरूरतमंद मरीजों के जीवन में रोशनी भर दी है. उन्होंने छात्राओं से अनुरोध करते हुए कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाएं ताकि जरूरतमंद को नई जिंदगी मिल सके.
देश में ऑर्गन न मिलने से प्रतिदिन 6000 लोगों की मौत: डॉ. यशपाल रांटा ने बताया कि देश भर में प्रतिदिन 6000 मरीज समय पर ऑर्गन न मिलने के कारण मरते हैं, जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. किसी भी आयु, वर्ग, जाति, धर्म और समुदाय से संबंध रखने वाला व्यक्ति ब्रेन डेड होने पर अंगदान कर सकता है. उन्होंने बताया कि देश में प्रतिदिन प्रत्येक 17 मिनट में एक मरीज ट्रांसप्लांट का इंतजार करते हुए जिंदगी से हाथ धो बैठता है. वहीं, हर साल जहां ढाई लाख कॉर्निया डोनेशन की जरूरत होती है. वहीं, महज 50 हजार कॉर्निया का दान होता है.
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अंगदान को लेकर भ्रांतियां: कार्यक्रम के अंत में आईजीएमसी शिमला के हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर (Hospital Administrator of IGMC Shimla) डॉ. शोमिन धीमान ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में अंगदान को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई हैं. भ्रांतियों को समय रहते दूर किया जाना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जानी चाहि. इससे प्रभावित मरीजों का सर्वाइवल रेट बढ़ सकता है. ऑर्गन ट्रांसप्लांट वाले लाभार्थी मरीज सहजता से 20 से 25 साल तक का जीवन जी पाते हैं.
उन्होंने बताया कि ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को अंगदान करने के लिए तैयार करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है, इसीलिए अगर लोगों में पहले से अंगदान को लेकर पर्याप्त जानकारी होगी तभी ऐसे मौके जरूरतमंदों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं. कार्यक्रम में आईजीएमसी की ग्रीफ काउंसलर डॉ सारिका, सोटो मीडिया कंसलटेंट (आईईसी) रामेश्वरी, प्रोग्राम असिस्टेंट भारती कश्यप मौजूद रही.
शरीर को नहीं किया जाता क्षत विक्षत: डॉक्टर रांटा ने बताया कि अंगदान के लिए परिजनों की सहमति सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ट्रांसप्लांट के लिए जिस व्यक्ति के शरीर से अंगों को निकाला जाता है , उस शरीर को क्षत-विक्षत नहीं किया जाता. विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में आंखों सहित अन्य अंगों को सावधानी पूर्वक निकाला जाता है. शरीर के जिन हिस्सों से अंग निकाले जाते हैं उन जगहों पर स्टिचिंग की जाती है. कॉर्निया निकालने के बाद आर्टिफिशियल आंखें मृत शरीर में लगा दी जाती हैं ताकि शरीर भद्दा नजर न आए.
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