शिमलाः हिमाचल में ब्लैक फंगस रोग की रोकथाम और प्रबंधन के संबंध में एडवाइजरी जारी की जा चुकी है. निदेशक स्वास्थ्य विभाग और निर्देशक चिकित्सा शिक्षा को अपने अपने संस्थानों में एंटी फंगल दबा जैसे एंफोटेरिसिन-बी का पर्याप्त भंडारण करने के लिए कहा गया है.
इन लोगों का ज्यादा खतरा
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निर्देशक निपुण जिंदल ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की ओर से एडवाइजरी जारी कर दी है. इसके अनुसार अनियंत्रित मधुमेह, कोरोना मरीजों के उपचार में स्टेरॉयड का प्रयोग, आईसीयू में लंबे समय तक रहना और किडनी ट्रांसप्लांट आदि रोगियों में ब्लैक फंगस का अधिक खतरा रहता है. उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस के जीवाणु पूरे वातावरण में मिट्टी और हवा में भी पाए जाते हैं. मुख्य रूप से यह उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएं या जो नियमित रूप से गंभीर बीमारियों की दवा ले रहे हैं.
ब्लैक फंगस के ये हैं लक्षण
उन्होंने कहा कि ऐसी दवाएं शरीर की रोगाणुओं और बीमारी से लड़ने की क्षमता को कम करती हैं. आमतौर पर हवा से फंगल जीवाणु शरीर के अंदर जाने के बाद साइनस या फेफड़ों को प्रभावित करते हैं. ब्लैक फंगस के लक्षणों में आंखों व नाक के आसपास दर्द और लाली, बुखार, सिर दर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ खून की उल्टी आना आदि शामिल हैं.
इन चीजों का रखे ध्यान
निपुण जिंदल ने सलाह दी कि मधुमेह के रोगियों में शुगर लेवल नियंत्रित रखना अति आवश्यक है और कोविड-19 के उपचार के लिए स्टेरॉयड का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए. इसके अलावा ध्यान रखने वाली बात यह है कि मेडिकल, सर्जिकल, एन95 मास्क व कॉटन मास्क जिनका कई बार इस्तेमाल किया जाता है.
वह सांसों में नमी की वजह से भीग जाते हैं अगर इन मास्कों कई दिनों तक बिना बदले या धोए इस्तेमाल किया जाए तो इनमें फंगस के विकास के लिए एक उपयुक्त वातावरण बन जाता है. इसलिए कॉटन के मास्क रोजाना धोकर धूप में सुखाने चाहिए इन्हें उपयोग करने से पहले या धोने के बाद प्रेस किया जाना चाहिए ताकि इनमें कोई फर्क ना पड़े और ब्लैक फंगस का खतरा भी कम हो सके.
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