शिमला: नगर निगम संशोधन विधेयक पर हिमाचल विधानसभा में सोमवार को जमकर बहसबाजी हुई. किन्नौर से कांग्रेस विधायक जगत सिंह नेगी और माकपा विधायक राकेश सिंघा ने संशोधन विधेयक के प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे जल्दबाजी में लाने का आरोप लगाया.
विपक्ष ने बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने की बात कही. सदन में बिल के प्रावधानों पर तीखी नोक-झोंक भी हुई. बाद में कांग्रेस ने विरोध स्वरूप वॉकआउट भी किया. विपक्ष के बहिष्कार के बीच ही सदन में विधेयक पारित कर दिया गया. हाल ही में सरकार ने नए नगर निगम गठित किए थे.
इन निगमों में चुनाव से ऐन पहले विधेयक लाकर मेयर के लिए ओबीसी आरक्षण और एंटी डिफेक्शन का प्रावधान किया गया है. साथ ही पार्टी सिंबल पर चुनाव को राजनीतिक दलों के लिए ऑप्शनल रखा है. इस विधेयक के कुछ प्रावधानों पर कांग्रेस और माकपा ने गंभीर आपत्ति जताई.
'सरकार जल्दबाजी में दिखती है'
कांग्रेस विधायक जगत सिंह नेगी ने तो इसे काला बिल तक कह दिया. प्रश्नकाल के बाद शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने सदन में यह विधेयक रखा और इसे पारण के लिए चर्चा में लिया गया. कांग्रेस विधायक जगत सिंह नेगी ने आरोप लगाया कि सरकार जल्दबाजी में दिखती है.
नेगी को बिल के एंटी डिफेक्शन वाले प्रावधान पर आपत्ति थी. नेगी के अनुसार ये बिल एंटी डिफेक्शन तो लागू करता है लेकिन क्रॉस वोटिंग को रोकने के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए ओपन बैलेट सिस्टम को इसमें जोड़ा जाए. नेगी ने दूसरी आपत्ति डिस क्वालीफिकेशन को लेकर जताई और कहा कि डिस-क्वालीफिकेशन का अधिकार डीसी या उसके समकक्ष ऐसे अधिकारी को देना गलत होगा जिसे सरकार नियुक्त करेगी. उनका सुझाव था कि इसे राज्य चुनाव आयोग को दिया जाए.
'दोनों एक साथ नहीं हो सकते'
जगत सिंह नेगी ने एक और बात कही कि आरक्षण रोस्टर में एससी, एसटी, महिला, ओबीसी का प्रावधान तो है लेकिन साथ में लॉट्स ऑफ ड्रॉ को भी ऐड किया गया है इसलिए या तो रोस्टर होगा या लॉटरी होगी. ये दोनों एक साथ नहीं हो सकते. यही नहीं, उन्होंने कहा कि संशोधन विधेयक पारण से पहले सदस्यों को नोटिस दिया जाता है और एक दिन का समय भी, वो नहीं दिया गया.
आसन पर बैठे विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने व्यवस्था वाले सवाल को खारिज कर दिया तो उन्होंने बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी हस्तक्षेप करते हुए कहा कि विधायक जगतसिंह नेगी जो आपत्ति जता रहे हैं, वो प्रासंगिक है. इस पर शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज का कहना था कि नया प्रावधान हम अपनी तरफ से नहीं लाए हैं.
सरकार ने सिर्फ पार्टी सिंबल को ऑप्शनल रखा है. इसके बाद विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने बिल को पारित करने के लिए लगाया और कांग्रेस के विधायक नारे लगाते हुए सदन से बाहर चले गए. बाद में ध्वनि मत से इस बिल को पारित कर दिया गया. इस विधेयक को जल्दी पारित करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि नगर निगम के चुनाव लेट हो रहे हैं.
सिंघा की चेतावनी, कानून पारित हुआ तो हाईकोर्ट जाऊंगा
माकपा विधायक राकेश सिंघा ने बिल पर गंभीर आपत्ति जताई और कहा कि यदि सरकार इस बारे में उनकी बात नहीं सुनती तो इसे चैलेंज करने के लिए वे खुद हाईकोर्ट जाएंगे. उनका कहना था कि कोई भी बिल सदन में आए, उसकी मंशा लीगल होनी चाहिए, जबकि यह बिल पॉलिटिकल कंसीडरेशन के कारण बिना एप्लीकेशन ऑफ माइंड के लाया गया है. उन्होंने कहा कि बिल के 8-सी क्लाज में डिसक्वालीफिकेशन को लेकर यह कानून कहता है कि फाइनल फैसला डीसी या उसके समकक्ष अधिकारी का होगा, जिसे सरकार नियुक्त करेगी.
सिंघा का कहना था कि डीसी पॉलिटिकल आधार पर नियुक्त होते हैं. ऐसे में उन्हें फाइनल अधिकार देना गलत है. उन्होंने सवाल उठाया कि इस मामले में सरकार क्यों जूडिशियल रिव्यू या अपील खत्म कर रही है? उन्होंने इसमें मर्जर को ऐड करने की मांग की. जहां सदस्य ही दो हों वहां टू थर्ड मेंबर कहां से लाएंगे? इस बिल पर सदन में आधे घंटे तक खूब गर्मा-गर्मी रही.
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