शिमला: देश में लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू हो गया है, जो 31 मई तक लागू रहेगा. वहीं, दूसरी तरफ देशभर में प्रवासी मजदूरों का पलायन बदस्तूर जारी है. केंद्र और राज्य सरकारें लोगों से अपील कर रही हैं कि वह अपने घरों से बाहर ना निकलें. साथ ही प्रवासी मजदूरों के घर जाने के लिए विशेष ट्रेन भी चलाई जा रही हैं.
करीब 50 से भी ज्यादा दिनों से देशभर में लॉकडाउन जारी है, ऐसे में प्रवासी मजदूरों के काम धंधे, कमाई के साधन बंद हैं. आलम ये है कि उनके भूखे मरने की नौबत आ गई है. यही वजह है कि कोरोना का खतरनाक संक्रमण और केंद्र और राज्य सरकारों की अपील भी प्रवासी मजदूरों को रोक पाने में नाकाफी साबित हो रही हैं.
वहीं, राजधानी शिमला से भी रोजाना सैकड़ों मजदूर पैदल ही अपने घर जा रहे है. कोरोना वायरस की जंग जीतने के लिए देशभर में एक बार फिर लॉक डाउन -4 लगाया गया है. लॉकडाउन- 4 में भी अभी सभी प्रकार के व्यवसायों में पूरी तरह से छूट नहीं मिली है, जिससे अभी 31 मई तक मजदूरों और अन्य व्यवसाय करने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
लॉकडाउन के चलते रोजाना हजारों मजदूर मजबूरन अपने गांव का रुख कर रहे हैं, ऐसे में राजधानी शिमला से भी सैकड़ों मजदूर कामकाज न मिलने से अपने घरों को जाने के लिए मजबूर हैं. इन मजदूरों को अपने घर तक जाने के लिए भले ही सरकारी सेवा का लाभ नहीं मिल रहा है फिर भी बिना किसी चिंता के पैदल ही अपने घर की ओर जाने के लिए मजबूर हो गए हैं.
शिमला के विकासनगर में रह रहे मजदूर पिछले कई दिनों से कर्फ्यू पास बना रहे है, लेकिन 15 मई को इनके कर्फ्यू पास की अवधि खत्म हो गई है. वाहन मालिक को पर्याप्त सवारी न मिल पाने से यह अपने घर नहीं जा पा रहे हैं. शिमला से यूपी के गोरखपुर जाने के लिए आम दिनों की तरह अब वही वाहन मालिक जा रहे हैं जिनके पास आवश्यक कर्फ्यू पास उपलब्ध है.
शिमला में पेंटर का काम करने वाले मोहित, राजेंद्र, और वकील की चिंता बढ़ती ही जा रही है. ना अब इनकी जेब मे पैसे बचे हैं और न ही अब इनके पास खाने के लिए राशन बचा है और न ही अब लोगों की ओर से कोई मदद मिल पा रही है.
लाचार हो चुके इन मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है जो कामकाज उन्हें मिलता था वह भी बंद हो गया है, ऐसे में अब उन्हें अपनी और अपने परिवार की बहुत चिंता सताने लगी है. लॉकडाउन के दौरान उन्हें सिर्फ एक ही बार राशन मिल पाया है. उन्होंने कहा कि अब पलायन ही जिंदा रहने का आखिरी रास्ता नजर आता है.