शिमला: ठियोग के बलग में मंगलेश्वर महाराज और परशुराम भगवान की रथ यात्रा के साथ जिला स्तरीय मेला शुरू हो गया है. ढोल नगाड़ों ओर वैदिक मंत्रों के साथ निकली यात्रा में महिलाओं ने खास तौर पंचगव्य से देवता के मार्ग को शुद्ध किया.
बता दें कि शिमला के उपमंडल ठियोग से 49 किलोमीटर दूर बलग को पांडवों की नगरी कहा जाता है. जंहा मंगलेश्वर महाराज का मंदिर है और हर साल महाराज की पालकी को शोभायमान तरीके से सजा कर दूसरे मंदिर में रखा जाता है.
इस दौरान बलग के स्थानीय किरदार भगवान परशुराम और मंगलेश्वर महाराज को पालकी में सुस्सजित करके पुराने वाद्य यंत्रों की धुनों और विशेष मंत्रों के साथ ढोल नगाड़ों की थाप पर रथयात्रा निकली जाती है. इस दौरान सबसे आगे साधु और कारदार पालकी लेकर मंत्रों का जाप करते हुए यात्रा करते हैं.
रथयात्रा के आगे गांव की महिलाएं विशेष रूप से शुद्ध जल पंचगव्य से रास्ते को शुद्ध करती हुई दूसरे मंदिर की ओर जाती है. महिलाओं के पीछे मुख्य रूप से राजपरिवार के वंशज और देवता के कारदार पालकी के साथ चलते हैं.
घंटियों की धुनों और मंत्रों के उच्चारण के साथ स्थानीय लोग महाराज के जयकारों से यात्रा को सफल बनाते है. देवता जी की पालकी को 5 दिनों तक पांडवो द्वारा निर्मित दूसरे मंदिर में रखा जाता है, जंहा पर दिन रात कारदार बारी-बारी अपनी ड्यूटी देते हैं. इस दौरान मंदिर प्रांगण में जागरण का आयोजन किया जाता है और रात भर देवता की चार पहर पूजा होती है.
इस दिन यंहा पर देवता का चार दिन तक चलने वाला जिलास्तरीय मेला शुरू होता है, जिसमे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते है. देव कार्य से जुड़े कार्यक्रम की जानकारी देते हुए मंदिर में देवता के गुर ने कहा कि यह पर्व के तौर पर मनाया जाता है और इसे हरि प्रोमोदनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
देवताओं के चार माह के शयन के बाद जागने पर देवता की यात्रा निकाली जाती है और हर साल देवता जी को स्नान के लिए दूसरे मंदिर में लाया जाता है. जिसमें चार दिन के मेले के बाद इसका समापन होता है.
मेले की जानकारी देते हुए बलग के प्रधान ने कहा कि देवता के पर्व को मेले के रूप मे मनाया जाता है और यंहा चार दिन तक कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते है, जिसमे सभी को शुद्धि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है.
बलग के बारे में मंदिर के कारदार ने बताया कि बलग का ऐतिहासिक नाम राजा बलि के नाम से पड़ा है. यंहा पर बलि ने अपना 100 वां यज्ञ किया था और भगवान परशुराम ने भी यँहा तप किया है जिसके नाम से आज तक ये यात्रा निकाली जाती है.
उन्होंने कहा कि मंदिर के अंदर चार स्तम्भ है, जिसके अंदर चार दिन तक बैठकर लोगों की दक्कतो और आपसी झगड़ो का निपटारा किया जाता है. बुरी शक्तियों से निपटने का आशीर्वाद मांगा जाता है और इन चार दिनों में विशेष पूजा की जाती है. मेले के आयोजन के बाद देवता जी अपने मंदिर वापिस जाते है और ये पर्व इस तरह पूरा होता है.
बता दें की चार दिन तक जंहा देवता को रखा जाता है, उस मंदिर का निर्माण पांडवो ने किया था और मन्दिर दक्षिण शैली से बना है जो 5 हजार वर्ष पूर्व का कहा जाता है. इस मंदिर के आसपास बहुत सारी पुराणिक धरोहरें है, जिनसे अपनी अनोखी कथाए जुड़ी हुई है. चार दिन तक इलाके के लोग यंहा इकट्ठा होते है और शिमला समेत दूसरे जिलों से भी लोग मेला देखने यहां आते हैं. माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से देवता जी का आशीर्वाद लेता है, उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.