शिमला: मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है. 2 अक्टूबर, 1869 को जन्म इनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. ब्रिटिश काल से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हिमाचल से खास नाता था. वे अक्सर उस समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में आते रहते थे.
सोलन जिला से 15 किलोमीटर की दूरी पर बनी डगशाई जेल में महात्मा गांधी साल 1920 में एक दिन की यात्रा पर आए थे. ये जेल अंग्रेजों ने बनवाई थी. इस जेल में आइरिश सैनिकों को अंग्रेज कैदी बनाकर रखते थे. जिनका हाल जानने के लिए महात्मा गांधी यहां पर आए. जेल की अंधेरी कोठरियों को देखकर आज भी लोगों की रुह कांप जाती है. इसी वजह से इसे हिमाचल का काला पानी भी कहा जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी था.
ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनके बारे में जानने पर रूह कांप जाती है. इन कोठरियों में अंग्रेजों के किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.
सोलन की डगशाई जेल भी ऐसी ही एक जेल है जहां अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई के क्रांतिवीरों को ना सिर्फ कैद किया बल्कि उनपर जुल्म भी ढहाए. देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.
पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित कर साल 1849 में बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था. जेल में कुल 54 कोठरियां हैं जिनमें हवा और रोशनी नहीं आती थी. वहीं, 16 कोठरियों को एकांत कक्ष बनाया गया था जिनमें कैदियों को कठोर सजा दी जाती थी. अब इस जेल को संग्रालय बना दिया गया है. जेल के जिस हिस्से में महात्मा गांधी ठहरे थे उसमें बापू की एक तस्वीर लगाई गई है जिसमें वे चरखा चला रहे हैं.
डगशाई जेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- हिमाचल के प्रवेश द्वार पर स्थित पर्यटन नगरी कसौली से 15 किलोमीटर दूर डगशाई कैंट है, जहां ये जेल स्थित है. जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है.
- इस जेल की सबसे दिलचस्प बात है कि इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी एक दिन बिताया था, हालांकि सजा के तौर पर नहीं बल्कि वे कैदियों से मिलने यहां आए थे.
- पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को उपहार में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया.
- अंग्रेजों ने छावनी के साथ-साथ यहां बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था.
- डगशाई जेल में प्रवेश करते ही काल कोठरियों में घने अंधेरे के कारण दिन में ही रात का आभास होता है. अंधेरी कोठरियों की दीवारों से आज भी कैदियों के दम घुटने की सिसकियां कानों में गूंजती प्रतीत होती हैं.
- जेल में बनी कोठरियां इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अंग्रेजों का फरमान नहीं मानते थे, उन्हें एकांत कैदखाने में डाल दिया जाता था, जिसमें हवा व रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था.
- जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है. इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था. इन कैदखानों में सिर्फ कैदी के मात्र खड़े होने की जगह होती थी. हिलने-डुलने के लिए कोई स्थान नहीं था.
- एक सेल खास तौर पर उच्च कठोर दंड देने के लिए अलग से बनाया गया था. इस सेल के तीन दरवाजे हैं. एक बार अगर किसी कैदी को वहां के एक दरवाजे से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए.
- जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था. इन जेलखानों में मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से रोशनी के अंदर आने का कोई स्त्रोत नहीं है. ये सजा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सजा हुआ करती थी.
अंग्रेजों ने 1849 में किया था जेल का निर्माण
यह जेल 'टी' आकार की है, जिसमें ऊंची छत और लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे ये उद्देश्य रहा होगा कि कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके. केंद्रीय जेल का निर्माण सन् 1849 में 72 हजार 875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं.
हर कैदकक्ष का क्षेत्रफल 812 फीट और छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी उसी स्वरूप में हैं.
खास लोहे से बने कैदकक्ष यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण लोहे से किया गया है. इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता है. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फांदकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए भी किया था.
25 सालों में गांधी जी दस बार आये थे शिमला
देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में पहाड़ों की रानी शिमला के शांति कुटीर ने अहम भूमिका निभाई है. यहां महात्मा गांधी चार दरवाजे वाले एक कमरे में अंग्रेजों से छुपकर देश को आजाद कराने के लिए बैठक करते थे. शिमला के जाखू में यह ऐसा स्थान है जहां पर उस समय चारों तरफ नजर रखी जा सकती थी और अंग्रेज सिपाहियों के आ धमकने पर चारों दिशाओं में खुलने वाले चारों दरवाजों से क्रांतिकारी इनमें से किसी एक से निकल जाते थे. दो मंजिला इस इमारत में 6 कमरे हैं. महात्मा गांधी ने आजादी के संघर्ष के दौरान शिमला के 10 यात्राएं की मई 1921 में वह पहली बार शिमला आए थे जबकि मई 1946 में अंतिम बार.
● महात्मा गांधी की शिमला की 10 यात्राएं
- पहली यात्रा : 12 से 18 मई 1921
- दूसरी यात्रा : 13 से 17 मई 1931
- तीसरी यात्रा : 15 से 22 जुलाई 1931
- चौथी यात्रा : 25 से 27 अगस्त 1931
- पांचवी यात्रा : 04 से 05 सितंबर 1939
- छठी यात्रा : 26 सितम्बर 1939
- सातवीं यात्रा : 29 जून 1940
- आठवी यात्रा : 27 से 30 सितंबर 1940
- नोवीं यात्रा : 24 जून से 16 जुलाई 1945
- दसवीं यात्रा : 2 से 14 मई 1946
ये भी पढे़ं - अटल टनल से बदल जाएगी हिमाचल की आर्थिक तस्वीर