शिमला: हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार ने इमरजेंसी के विरोध में जेल जाने वाले नेताओं के लिए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना शुरू की थी. इमरजेंसी में मीसा कानून के तहत जेल में बंद राजनीतिक कैदियों को तत्कालीन जयराम सरकार ने प्रारंभ में प्रति माह 11 हजार रुपए की लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि की घोषणा की थी. उक्त योजना का ऐलान 2019 में किया गया था. फिर 2021 में इसे लेकर विधानसभा में बिल लाया गया था. हिमाचल में सत्ता परिवर्तन के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी. कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भी इस योजना का विरोध किया था और अब सत्ता में आने पर इसे बंद कर दिया.
बजट सेशन के दौरान सोमवार को सदन में लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि योजना निरस्त कर दी गई. सदन में इस संबंध में निरसन के लिए लाए गए विधेयक को पास कर दिया गया. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू सदन में मौजूद नहीं थे. उनकी गैर मौजूदगी में संसदीय कार्यमंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान ने विधेयक पर चर्चा के जवाब में कहा कि पूर्व सरकार ने इस सम्मान राशि के तहत खजाने पर 3 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ डाला. वहीं, भाजपा ने इसके खिलाफ सदन से बहिर्गमन किया.
वर्ष 2019 में फरवरी में बजट सेशन के दौरान तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि के तहत मीसा बंदियों को पहले सालाना 11 हजार रुपए देने का ऐलान किया था. बाद में मुख्यमंत्री ने इस योजना में संशोधन किया और साल की बजाय हर महीने 11 हजार रुपए की सम्मान राशि देने का ऐलान किया था. तब इसी मामले में सदन में तल्खी भी पैदा हो गई थी. उस दौरान कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने बजट पर चर्चा में भाग लेते हुए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि का मामला उठाया था.
विक्रमादित्य का मानना था कि राज्य सरकार आजादी के सेनानियों व इमरजेंसी के बंदियों की तुलना कर रही है. उनके अनुसार आपातकाल के दौरान राजनीतिक लोग कानून तोडऩे की वजह से जेल भेजे गए थे. तब सत्ताधारी दल भाजपा ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि इमरजेंसी एक काला अध्याय रहा है. तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने तब बजट पर सामान्य चर्चा का उत्तर देते हुए कहा था कि जिन लोगों ने आपातकाल का दौर नहीं देखा, उन्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. जयराम ठाकुर ने कहा था कि कांग्रेस ने केवल और केवल सत्ता में बने रहने के लिए ही आपातकाल लगाया था. तत्कालीन जयराम सरकार ने फिर 2021 में सदन में हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी बिल-2021 पास किया था. इस योजना के तहत प्रदेश के 81 लोग आए थे, जो इमरजेंसी में जेल में बंद रहे थे. लोकतंत्र प्रहरी सम्मान समिति के अध्यक्ष तत्कालीन शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज थे.
विपक्ष में रहते हुए सुखविंदर सिंह ने की थी ये मांग: मार्च 2021 में सदन में ये बिल पास हुआ था. तब विपक्ष में कांग्रेस विधायक और अब राज्य के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था कि ये बिल बिना सोचे लाया गया है. इस बिल का नाम लोकतंत्र प्रहरी गलत है. उस दौरान विधायक सुक्खू ने इस बिल के सेक्शन दो को डिलीट करने की मांग की थी. उसमें सुओ मोटो वाला प्रावधान था. सुक्खू ने आरोप लगाया था कि इस बिल के जरिए सत्ताधारी दल अपनी विचारधारा के लोगों को लाभ देना चाहता है.
वहीं, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और अब डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने भी बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने की बात कही थी. इस पर तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि आपातकाल पर तो हम इतना बोल सकते हैं कि आप सुन नहीं पाओगे. जयराम ठाकुर ने ये भी कहा था कि खुद राहुल गांधी इमरजेंसी को गलत कदम बता चुके हैं. जयराम ठाकुर ने तब कहा कि विपक्ष जो आरोप लगा रहा है कि ये बिल अपने लोगों को लाभ देने के लिए लाया है तो उस समय भाजपा थी ही नहीं.
इमरजेंसी के दौरान जो लोग पंद्रह दिन बंदी रहे, उन्हें 8 हजार रुपए और जो अधिक समय तक जेल में रहे उनको 12 हजार रुपए मिलते रहे हैं. लेखक-संपादक नवनीत शर्मा के अनुसार किसी भी देश के इतिहास में हर कालखंड का हर व्यक्ति के लिए अलग अर्थ लिए होता है. आपातकाल के दौरान जो यातनाएं एक विचारधारा विशेष लोगों ने सहीं, उन्हें स्मरण रखने एवं सम्मान देने के लिए कालांतर में सरकारों ने यह योजना आरंभ की थी. सम्मान राशि भी सांकेतिक थी. किंतु जिस दल ने आपातकाल घोषित किया था, वह अपनी सरकार आने पर इस योजना को जारी रख कर कैसे अपने ही एक निर्णय के विरुद्ध जाता. जो भी हो, बात लोकतंत्र की होनी चाहिए थी, संख्या बल या संख्या तंत्र की नहीं. यदि हिमाचल की परंपरा जारी रही तो साढ़े चार वर्ष के बाद यह राशि तो पुन: आरंभ हो जाएगी किन्तु विचारधारा के चक्कर में लोकतंत्र को अवश्य ठेस लग रही है.
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