शिमला: हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले के रहने वाले चार वर्षीय बच्चे नवांग ताशी राप्टेन को औपचारिक रूप से भिक्षु बनने के बाद सोमवार को रिनपोचे-बौद्ध गुरु के अवतार के रूप में उपाधि मिली. बच्चे को बौद्ध गुरु रिनपोचे (Reincarnation of Rinpoche) का पुनर्जन्म बताया जा रहा है. (Lahaul Spiti 4 year old boy rapten) (reincarnation of buddhist leader)
7 साल बाद लामा का पुनर्जन्म: राप्टेन का जन्म 16 अप्रैल, 2018 को हुआ था और वे हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में स्पीति घाटी के ताबो क्षेत्र के रंगरिक गांव के रहने वाले हैं. इस साल की शुरुआत में राप्टेन को तिब्बती बौद्ध धर्म के निंगमा स्कूल के प्रमुख तकलुंग सेतुल रिनपोचे के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया था. भूटान के ल्होद्रक खार्चु मठ के सबसे बड़े बौद्ध भिक्षु नामखाई निंगपो रिनपोचे ने राप्टेन के न्यिंग्मा संप्रदाय के नए प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था. शिमला के दोरजीदक मॉनेस्ट्री (मठ) में लड़के को साधु बना दिया. (boy identified as rinpoches reincarnation)
4 साल के नवांग ताशी राप्टेन बने धर्मगुरु: एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु ने बताया कि मूल रूप से आज का दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. पिछले सात वर्षों से यह हमारे लिए एक लंबा इंतजार था. हम धर्म गुरु का दिल से स्वागत करते हैं. नामखाई निंगपो रिनपोचे ने भिक्षु के बाल कटवाने और पोशाक पहनने के लिए यहां अनुष्ठान किया. एक सामान्य व्यक्ति को संन्यासी बनाने के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है. भिक्षु का कहना है कि बच्चे की शिक्षा के लिए सभी तत्पर हैं. बौद्ध भिक्षुओं और उनके अनुयायियों के लिए वह हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं और सामान्य तौर पर, यह हमारे लिए एक बहुत ही कीमती और शुभ अवसर है.
राप्टेन भिक्षु के रूप में संघ में शामिल : दोरजीदक में तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं और हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र के अन्य बौद्ध शिष्यों ने शिमला में बालक भिक्षु के स्वागत के लिए एक भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया. इसके बाद लाहौल-स्पीति के ताबो में सेरकोंग पब्लिक स्कूल की नर्सरी कक्षा के नन्हे बालक, नवांग ताशी राप्टेन औपचारिक रूप से एक भिक्षु के रूप में संघ में शामिल हो गए हैं. अब वे शिमला के पंथाघाटी में दोरजीदक मठ में अपनी धार्मिक शिक्षा शुरू करेंगे. तिब्बती बौद्ध शिष्य और हिमालयी क्षेत्र के बौद्ध अनुयायी सात साल बाद मठ में पुनर्जन्म लेने वाले लामा को वापस देखकर खुश हैं. क्षेत्रवासी खुश हैं और खुदको सौभाग्यशाली बता रहे हैं.
"मैं पुनर्जन्म पर बोलने के लिए सही व्यक्ति नहीं हूं लेकिनह म मानते हैं कि एक भौतिक शरीर और मन की धारा है. मनुष्य की मृत्यु के बाद शरीर समाप्त हो जाता है लेकिन मन की धारा चलती रहती है. पुनर्जन्म की प्रक्रिया उस मन की धारा को जारी रखने के लिए खोजना और पहचानना है."- बौद्ध भिक्षु
कौन थे धर्मगुरु तक्लुंग चेतुल रिनपोचे?: बता दें कि कोरोना के चलते पिछले 2 सालों से बौद्ध धर्म के लोग अपने धर्म गुरु के चौथे पुनर्जन्म को नहीं मना पाए थे. 2015 में तीसरे धर्म गुरु का देहांत हो गया था. कहा जाता है कि 2018 में धर्म गुरु "तक्लुंग चेतुल रिनपोचे" के रूप में चौथे धर्म गुरु जन्मे. तकलुंग त्सेटुल रिनपोचे का 24 दिसंबर 2015 को निधन हो गया. तब से हिमालय क्षेत्र में तिब्बती और अन्य बौद्ध उच्च लामा के पुनर्जन्म की प्रतीक्षा कर रहे थे. न्यिन्ग्मा स्कूल तिब्बती बौद्ध धर्म के चार मुख्य स्कूलों शाक्य, काग्यू और गेलुग में से एक महत्वपूर्ण संप्रदाय है. तकलुंग सेतुल रिनपोचे को उनकी मृत्यु से दो साल पहले 2013 में दलाई लामा द्वारा निंगमा स्कूल के प्रमुख के रूप में मान्यता दी गई थी.
बच्चे के घर वालों ने जाहिर की खुशी: दोरजीदक मठ में पहुंचे विदेशियों में से एक ने इस अवसर को अपने लिए एक सपने के सच होने के रूप में बताया. एक विदेशी पर्यटक ने कहा, "इस महत्वपूर्ण अवसर को देखना किसी जादू और सपने जैसा है, आज हमारे लिए रिनपोचे को यहां लाना बहुत महत्वपूर्ण है. राप्टेन के परिवार के सदस्यों ने परिवार के छोटे लड़के को एक उच्च भिक्षु बनाने पर अपनी खुशी और उत्सुकता का इजहार किया.
"यह बौद्धों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और यह स्पीति घाटी, हिमाचल प्रदेश और भारत के लिए एक बहुत ही गौरवपूर्ण आंदोलन है. यह बेहद खुशी का पल है. भिक्षु पहले हमारे गांव में पिता और माता के नाम पर लड़के का पता लगाने के लिए आए. हमसे पूछा कि क्या हम उन्हें लड़का दे सकते हैं क्योंकि उनका पुनर्जन्म हो चुका है. हम खुशी के साथ तुरंत इसके लिए तैयार हो गए. अब यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण और खुशी का क्षण है कि हम उन्हें साधु बनते हुए देखें.-" राप्टेन के दादाजी
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