शिमला: पीलिया, इस बीमारी का नाम आपने सबने सुना ही होगा. अकसर नवजात शिशुओं को भी पीलिया हो जाता है, जिसे न्यूबॉर्न जॉन्डिस भी कहते हैं. बाल विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण भारद्वाज ने बताया कि नवजात शिशुओं में जो पीलिया होता है उसे फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस कहा जाता है. नवजात शिशुओं को जन्म के 2 से 3 दिनों के अंदर पीलिया की समस्या हो सकती है. इसमें आंखों का रंग सफेद या स्किन का रंग पीला हो सकता है. ऐसा न्यूबॉर्न बेबी के रक्त में बिलीरुबिन का लेवल बढ़ने के कारण होता है. पीलिया पहले बच्चे के चेहरे पर नजर आता है. इसके बाद फिर शिशु की उसकी छाती, पेट, बांहों और टांगों पर इसके लक्षण दिखने लगते हैं.
55 से 60% न्यूबॉर्न बेबी में पीलिया: बाल विशेषज्ञ डॉ प्रवीण भारद्वाज ने बताया कि 90 फीसदी बच्चों का पीलिया फोटोथेरेपी के माध्य्म से ठीक हो जाता है और अगर किसी बच्चे को ज्यादा पीलिया है उसे तुरंत बाल विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाना चाहिए. उन्होंने बताया कि न्यूबॉर्न बेबी में 55 से 60 फीसदी बच्चों में पीलिया होता है, लेकिन वो ज्यादा खतरनाक नहीं होता है. 90 फीसदी बच्चो में पीलिया खुद ही ठीक हो जाता है.
इन वजह से होता है पीलिया: डॉक्टर प्रवीण ने बताया कि बिलीरुबिन के हाई लेवल की वजह से शिशु को बहरापन, सेरेब्रल पाल्सी या अन्य किसी तरह का ब्रेन डैमेज हो सकता है. इसके अलावा लिवर में दिक्कत, इंफेक्शन, एंजाइम की कमी और शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं में असामान्यता आने की वजह से भी न्यूबॉर्न जॉन्डिस होता है. उन्होंने बताया कि नैचुरल रोशनी यानि की धूप में पीलिया को आसानी से पहचाना जा सकता है और गहरे रंग की स्किन वाले शिशुओं में इसका पता लगाना मुश्किल हो सकता है.
क्या है न्यूबॉर्न जॉन्डिस : न्यूबॉर्न जॉन्डिस में नवजात शिशु की आंखों का और शरीर का रंग पीला हो जाता है. बड़े बच्चों और वयस्कों में लिवर बिलीरुबिन बनाता है जो कि पाचन मार्ग के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है, लेकिन नवजात शिशुओं का लिवर अभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं होता है कि वो बिलीरुबिन को शरीर से बाहर कर सके. जिसके कारण वो शिशुओं के अंदर ही जमा होता रहता है और इससे नवजात शिशुओं को पीलिया होता है.
क्या है बिलीरुबिन: बिलीरुबिन एक पीले रंग का पदार्थ है, जो लीवर में मौजूद पित्त द्रव में पाया जाता है जिसे आसान भाषा में पित्त भी कहते हैं. यह लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है. बच्चों में जब बिलीरुबिन बनता हो तो उनके कमजोर लीवर के कारण वह बाहर नहीं निकल पाता है. जिससे की पीलिया होता हो, जोकि ज्यादातर मामलों में खुद से ही ठीक हो जाता है.
कब ठीक होता है पीलिया: ज्यादातर मामलो में शिशु के लिवर के विकसित होने पर पीलिया खुद ठीक हो जाता है. ज्यादातर केस में पीलिया दो से तीन हफ्तों के अंदर ठीक हो ही जाता है, लेकिन अगर फिर भी यह 3 हफ्ते से ज्यादा समय रहता है, तो यह और बीमारियों के लक्षण भी हो सकते हैं.
ये सावधानियां बरतें: बोतल से दूध न पिलाएं, डायपर का इस्तेमाल कम से कम करें, सर्दियों में रात में डायपर न पहनाएं, बच्चे के आसपास का वातावरण साफ रखें, रोटावायरस का टीका अवश्य लगवाएं, धूल-धुएं से दूर रखें, सर्दियों में बदन ढककर रखें, ऊन के बजाय कॉटन के मल्टीलेयर कपड़े पहनाएं. इससे बच्चों को काफी हद तक पीलिया और अन्य बीमारियों से बचाने में मदद मिलेगी.
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