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खतरे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी का भवन, जीर्णोद्धार के लिए बजट मिलने का इंतजार - एडवांस स्टडी भवन का जीर्णोद्धार

राजधानी शिमला में ब्रिटिश काल में बने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज की हालत जर्जर हो चुकी है. ऐतिहासिक भवन होने के बावजूद भी इसके जीर्णोद्धार का कार्य बीते कई वर्षों से लंबित पड़ा हुआ है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी
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Published : Aug 17, 2019, 4:45 PM IST

शिमला: राजधानी शिमला का ऐतिहासिक भवन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज जिसे ना केवल बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक खासा पसंद करते हैं बल्कि विदेशी पर्यटकों की भी यह पहली पसंद है लेकिन, अब वह अपना वजूद खोने की कगार पर है.

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज भवन की हालत खस्ताहाल हो चुकी है. जिसे इस वक्त मुरम्मत की सख्त जरूरत है. बजट ना मिलने की वजह से इस भवन के जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है. भवन का पिछला हिस्सा जहां जर्जर हो चुका है वहीं भवन के धरातल की मंजिल में भी दरारें आ चुकी हैं.

इस ऐतिहासिक इमारत के यह हाल साल 2014 से हैं. उस समय संस्थान की तरफ से इस्टीमेट बना कर केंद्र सरकार को भेजा गया था लेकिन, अभी तक उसकी मंजूरी नहीं मिल पाई है.

संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद आर.परांजपे ने कहा कि वर्ष 2014 में एड्सल नाम के एक्सपर्ट ने इंस्टीट्यूट की इमारत के जीर्णोद्धार के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की थी. जिसे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजा गया था. इस रिपोर्ट के तहत 56 करोड़ का एस्टीमेट बना कर भेजा गया था जो अब 6 साल बाद 67 करोड़ का हो गया है.

संस्थान के निदेशक ने उम्मीद जतायी है कि जल्द ही इन प्रपोजल्स को मंजूरी मिले जिससे इस ऐतिहासिक विरासत का जीर्णोद्धार का काम शुरू किया जा सके.

ये भी पढ़ें: कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र में हर गांव तक पहुंचेगी सड़क सुविधा, नाबार्ड ने जारी किए 22 करोड़

आपको बता दें कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय में तैयार किया गया भवन है. जिसे अब उच्च अध्ययन के लिए देश विदेश में जाना जाता है. पर्यटक आज भी ब्रिटिशकाल में बने इस भवन को देखने की चाह रखते है. इस संस्थान का इतिहास गौरवमयी रहा है.

भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है. इस भवन की ऐतिहासिकता की एक खास बात यह है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुए और फ़ैसले लिए गए.

शिमला: राजधानी शिमला का ऐतिहासिक भवन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज जिसे ना केवल बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक खासा पसंद करते हैं बल्कि विदेशी पर्यटकों की भी यह पहली पसंद है लेकिन, अब वह अपना वजूद खोने की कगार पर है.

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज भवन की हालत खस्ताहाल हो चुकी है. जिसे इस वक्त मुरम्मत की सख्त जरूरत है. बजट ना मिलने की वजह से इस भवन के जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है. भवन का पिछला हिस्सा जहां जर्जर हो चुका है वहीं भवन के धरातल की मंजिल में भी दरारें आ चुकी हैं.

इस ऐतिहासिक इमारत के यह हाल साल 2014 से हैं. उस समय संस्थान की तरफ से इस्टीमेट बना कर केंद्र सरकार को भेजा गया था लेकिन, अभी तक उसकी मंजूरी नहीं मिल पाई है.

संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद आर.परांजपे ने कहा कि वर्ष 2014 में एड्सल नाम के एक्सपर्ट ने इंस्टीट्यूट की इमारत के जीर्णोद्धार के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की थी. जिसे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजा गया था. इस रिपोर्ट के तहत 56 करोड़ का एस्टीमेट बना कर भेजा गया था जो अब 6 साल बाद 67 करोड़ का हो गया है.

संस्थान के निदेशक ने उम्मीद जतायी है कि जल्द ही इन प्रपोजल्स को मंजूरी मिले जिससे इस ऐतिहासिक विरासत का जीर्णोद्धार का काम शुरू किया जा सके.

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आपको बता दें कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय में तैयार किया गया भवन है. जिसे अब उच्च अध्ययन के लिए देश विदेश में जाना जाता है. पर्यटक आज भी ब्रिटिशकाल में बने इस भवन को देखने की चाह रखते है. इस संस्थान का इतिहास गौरवमयी रहा है.

भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है. इस भवन की ऐतिहासिकता की एक खास बात यह है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुए और फ़ैसले लिए गए.

Intro:राजधानी शिमला जिसकी पहचान यहां ब्रिटिश काल में बने भवनों से हैं। ऐसा ही एक ऐतिहासिक भवन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज जिसे ना केवल बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक ख़ासा पसंद करते ही बल्कि विदेशी पर्यटकों की भी यह पहली पसंद है वह अब अपना वजूद खोने की कगार पर है। भवन की हालत ख़स्ताहाल है और इसे मुरम्मत की दरकार है लेकिन बजट ना मिलने की वजह से इस भवन के जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है। भवन का पिछला हिस्सा जहां जर्जर हो चुका है वहीं भवन के धरातल की मंजिल में भी दरारें आ चुकी है। इसके साथ ही इस भवन में जो ब्रिटिश काल में किचन के रूप में इस्तेमाल होता था वह भी पूरी तरह से ख़स्ताहाल हो गया हैं। वह इस स्तिथि में है कि इसका इस्तेमाल ही नहीं हो पा रहा है।



Body:इमारत के पिछले हिस्से की हालत तो यह है कि यहां पर कुछ एक रास्तों पर तो रोक लगा दी गई है ओर भवन के अंदर भी छत से भरी बरसात के इस मौसम में पानी टपक रहा है। इस ऐतिहासिक इमारत के यह हाल आज के नहीं बल्कि 2014 से ही है। उस समय संस्थान की तरफ से इस्टीमेट बना कर केंद्र सरकार को भेजा था लेकिन अभी तक उसकी मजूरी नही मिल पाई है।संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद आर.परांजपे ने कहा कि वर्ष 2014 में एड्सल नाम के एक्सपर्ट ने इंस्टीट्यूट की इमारत के जीर्णोद्धार के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की थी जिसे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजा गया था। इस रिपोर्ट के तहत 56 करोड़ का एस्टीमेट बना कर भेजा गया था जो अब 6 साल बाद 67 करोड़ का हो गया है। इंस्टीट्यूट के जीर्णोद्धार के लिए दो प्रोजेक्ट बनाए गए थे जिसमें एक प्रोजेक्ट जिसमें इंस्टीट्यूट का पूरा भवन शामिल है वो 67 करोड़ का है और दूसरा प्रोजेक्ट 12 करोड़ का तैयार किया गया हैं जो कि संस्थान के किचन विंग के लिए है जो पूरी तरह से ख़स्ताहाल है। इस विंग की हालत इतनी खराब है कि इसका इस्तेमाल भी नहीं हो पा रहा है, हालांकि इसके जीर्णोद्धार के लिए वर्ष 2014 में 5 करोड़ रुपए सीपीडब्ल्यूडी को दे भी दिए गए है लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि जल्द ही इन प्रपोजल्स को मंजूरी मिले और इस ऐतिहासिक विरासत का जीर्णोद्धार का काम शुरू किया जा सके।



Conclusion:इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय ने तैयार किया गया भवन है जिसे अब उच्च अध्ययन के लिए देश विदेश में जाना जाता है लेकिन पर्यटक आज भी ब्रिटिशकाल में बने इस भवन को देखने की चाह रखते है। बता दे कि इस संस्थान का इतिहास गौरवमयी रहा है। जहां तक जानकारी है इस भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है । इस भवन की ऐतिहासिकता की एक खास बात यह है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान
के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुए और फ़ैसले लिए गए। भारत और पाकिस्तान के विभाजन का भी 1945 में इसी भवन हुआ था जिसका निशान आज भी यहां उस टेबल पर दिखाई देता है जिसपर इस ऐतिहासिक फैसले को लिया गया था। आजादी के बाद इस भवन को एक नई पहचान देते हुए इसे राष्ट्रपति निवास का नाम दिया गया। इसके बाद राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने इस भवन को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान बनाने का फ़ैसला लिया और तब से यह संस्थान अपनी इस पहचान को कायम रखे है।
इस भवन को बनाने की शैली और इसके इतिहास के चलते यह इंस्टीट्यूट विश्वभर में प्रसिद्ध है। हर साल लाखों सैलानी यहां इस इमारत को देखने और इसके इतिहास के बारे में जनाकारी जुटाने के लिए ही पहुंचते है लेकिन इस ऐतिहासिक भवन जिसके हर एक पत्थर में इतिहास बसता ओर बोलता है अब वही भवन अपनी ऐतिहासिकता को बचाने के लिए बजट की राह जोह रहा है।
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