शिमला: हिमाचल प्रदेश में हर चुनाव में सरकार बदलने का रिवाज इस बार भी जारी रहा. जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार सत्ता से बाहिर हुई और सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई में कांग्रेस सरकार ने ताज संभाला. यहां एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि पांच साल बाद सरकार बदलने का रिवाज जारी रहने के साथ ही पूर्व की सरकारों द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में खोले गए संस्थानों को बंद करने का रिवाज भी कायम है. इस समय हिमाचल प्रदेश में नई सरकार की तरफ से धड़ाधड़ डी-नोटिफाई किए जा रहे संस्थानों और दफ्तरों की लिस्ट चर्चा में है.
सोशल मीडिया से लेकर आम जनता के बीच सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार (Himachal Sukhu government) की तरफ से डी-नोटिफाई किए जा रहे संस्थानों के नित नए फैसले टॉक आफ दि टाउन हैं. शुक्रवार को पूर्व उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर की विधानसभा सीट के तहत खुले दो एसडीएम ऑफिस कोटला बेहड़ व रक्कड़ डी-नोटिफाई कर दिए गए. साथ ही दो पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय भी डी-नोटिफाई कर दिए गए. अब तक चार सौ से अधिक संस्थान अतवा दफ्तर डी-नोटिफाई किए जा चुके हैं.
वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि जिन संस्थानों की फाइनेंशियल कंकरेंस यानी एक तरह की वित्तीय अनुमति नहीं ली गई है, उनकी संख्या 574 के करीब है. जिस तरह से नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने संकेत दिए हैं, उससे ये स्पष्ट है कि सारे के सारे संस्थान बंद होंगे. अलबत्ता आने वाले समय में कैबिनेट की मीटिंग के दौरान ये जरूर देखा जा सकता है कि कहीं किसी संस्थान की सचमुच में जरूरत और उपयोगिता हुई तो उसे नए सिरे से नोटिफाई किया जाए. सुखविंदर सरकार के इस फैसले की सबसे अधिक गाज मंडी व सिरमौर जिलों पर पड़ी है.
मंडी में सेटलमेंट ऑफिस समय की जरूरत है, लेकिन उसे डी-नोटिफाई कर दिया गया. यानी आटे के साथ घुन पिसने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. वित्त विभाग की फाइनेंशियल कंकरेंस जरूरत के अनुसार नई सरकार ले सकती है. खासकर उन संस्थानों पर कैंची नहीं चलनी चाहिए, जो जनहित में उपयोगी हो सकते हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कोरोना संक्रमित पाए गए थे. उसके बाद से ही वे दिल्ली में हैं. उनका रविवार को शिमला लौटने का कार्यक्रम है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह बेशक दिल्ली में हैं, लेकिन हिमाचल में उनके निर्देश पर संस्थानों का धड़ाधड़ डी-नोटिफाई होना जारी है.
कांग्रेस नेता तर्क दे रहे हैं कि इन संस्थानों को बिना सोच-विचार के महज राजनीतिक लाभ के लिए खोला गया था. ठीक ऐसा ही पांच साल पहले भी हुआ था, जब जयराम ठाकुर सीएम बने थे और उनकी सरकार ने भी वीरभद्र सिंह सरकार के छह महीने के फैसलों को रिव्यू के लपेटे में लिया था. अब सुखविंदर सिंह सरकार पिछली सरकार से तीन कदम आगे बढ़ गई है. सुखविंदर सिंह सरकार ने नौ महीने का अंतराल तय कर दिया. गिनती की गई तो ये संस्थान 574 निकल रहे हैं.(Denotified offices in Himachal).
भाजपा अब विपक्ष में है और सुखविंदर सिंह सरकार के संस्थान डी-नोटिफाई करने वाले फैसलों के विरोध में सक्रिय हो गई है. भाजपा ने प्रदर्शन शुरू कर कांग्रेस सरकार पर हमला बोल दिया है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर खूब हंगामा होगा. फिलहाल तो सुखविंदर सिंह सुक्खू कैबिनेट का विस्तार प्रतिक्षित है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस सरकार ने एक के बाद एक करते संस्थानों को डी-नोटिफाई करने वाले आदेश निकाले हैं, उससे हिमाचल का सियासी पारा और चढ़ेगा.
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