शिमला: हिमाचल में सांप काटने के मामले प्रत्येक वर्ष बढ़ते ही जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. इन दिनों बरसात के चलते सांप काटने के मामले में बढ़ोतरी देखी जा रही है. ऐसे में लोगों को अलर्ट रहना होगा. इस साल प्रदेश के अस्पतालों में 100 से अधिक सर्पदंश के मामले आ चुके हैं. इस बारे में आईजीएमसी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ डॉ. राहुल गुप्ता ने कहा वैसे तो जून और जुलाई में सांप काटने के मामले अधिक आते है, लेकिन अगस्त का महीना सबसे विषैला है. इस दौरान लोगों को अर्लट रहना होगा. हिमाचल में अधिकांश सर्पदंश ग्रामीण इलाकों, खेत, गसियानी और घर के अंदर होते हैं. जहां 90 प्रतिशत लोग खेतों और जंगलों के करीब घरों वाले गांवों में रहते हैं. सर्दियों में सांप काटने के मामले न के बराबर होते हैं, लेकिन जून से अक्टूबर के बीच यह संख्या बढ़ जाती है.
कोबरा और करैत सांप खतरनाक: डॉ. राहुल गुप्ता ने बताया कि सांपो का एक हाइबरनेशन होता है. इस दौरान वो जमीन में चले जाते हैं और अंडे देते हैं, लेकिन जैसे ही हाइबरनेशन का समय पूरा होता है. वह गर्मियों में और बरसात में बाहर आ जाते हैं. ज्यादातर बरसात में जुलाई और अगस्त के महीने में यह जगह-जगह फैल जाते हैं और लोगों को काट भी लेते हैं. डॉ. राहुल ने बताया कि कोबरा और करैत सांप के काटने के बाद इनका न्यूरोटॉक्सिक जहर इंसान के स्नायु तंत्र को निष्क्रिय करता है, जिससे लोगों की मौत हो जाती है. करैत ज्यादातर जमीन पर सो रहे लोगों को काटता है. ज्यादातर कोबरा और करैत के काटने से पीड़ितों में मस्कुलर कमजोरी, पैरालिसिस और सांस लेने की तकलीफ होती है.
कांगड़ा में सबसे ज्यादा सर्पदंश का मामला: प्रदेश में सबसे ज्यादा सर्पदंश का मामला कांगड़ा जिले से आते हैं, उसके बाद मंडी, सोलन, हमीरपुर और शिमला में मिलते हैं. 54 प्रतिशत पुरूष, जबकि 46 प्रतिशम महिलाएं सर्पदंश का शिकार बनते हैं. बहुत से लोग अभी भी चिकित्सा सेवा का लाभ नहीं लेते, इसके बजाय उन्हें पहले ओझा (पारंपरिक चिकित्सकों) के पास ले जाते हैं, जिससे ये जानलेवा साबित होता है. ओझाओं पर विश्वास का कारण यह है कि केवल पांच प्रकार के सांपों की प्रजातियां जहरीली होती हैं और बाकी सभी विषैले नहीं होते हैं. यानी 70 प्रतिशत से अधिक सांप विषैले नहीं होते हैं. इसलिए कई लोग घबराहट में प्राथमिक उपचार और उपचार के गलत तरीके अपनाकर मामला बिगाड़ देते हैं.
एक मीटर तक का होता है करैत: करैत लंबाई में एक मीटर तक होता हैं. डॉ. गुप्ता ने बताया कि हिमाचल में अधिकतर कांगड़ा हमीरपुर मंडे शिमला के सुन्नी रामपुर रोहड़ू ठियोग में यह सब पाए जाते हैं. इसमें जो रसैल प्रजाति है, वह हरे रंग की होती है. जो घास की तरह ही लगता है और जो लोग घास काटने जाते हैं, वह सांप को पहचान नहीं पाते हैं, जिससे सांप उन पर अटैक कर देता है.
ऐसे पहचाने सांप से काटी गई जगहों का निशान: सर्पदंश आमतौर पर काटी गई जगह पर दांतों का निशान हल्की दर्द और उसके चारों तरफ लाली से पहचाना जा सकता है, लेकिन कुछ सांप ऐसे भी होते हैं, जिनके काटने के निशान शरीर पर नहीं दिखते. ऐसे मामलों में स्नेक बाइट की पहचान लक्षणों से की जा सकती है. इसके अलावा व्यक्ति के मुंह से खून भी निकलता है.
सांप काटने पर इन चीजों का रखें ध्यान: सर्पदंश वाली बाजू या टांग को सपोर्ट और स्थिर रखे. ताकि जहर ज्यादा न फैल जाए. स्प्लिंट्स के साथ अंग की पकड़ बनाने के लिए पट्टियों या कपड़े का हलके से बांधने के लिए प्रयोग करें, लेकिन रक्त आपूर्ति को अवरुद्ध न करें या अंग पर ज्यादा दबाव न डालें. रोगी को अपने सांस सुरक्षित रखने के लिए बाईं ओर करवट देकर लेटाना चाहिए. जब तक पीड़ित को चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधा तक नहीं पहुंचाया जाता, तब तक मुंह से कुछ भी न डालें. सर्पदंश पीड़ित को यथासंभव शीघ्र नजदीकी स्वास्थ्य सुविधा पीएचसी या अस्पताल में ले जाएं. पीड़ित को स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंचने के लिए खुद दौड़ना या गाड़ी नहीं चलानी चाहिए. सर्पदंश से सूजन, खून का बहना, ऊपरी पलक का कमजोर पड़ना और पूरी तरह से आंख न झपक पाना, नजर में फर्क पड़ना या नए लक्षणों जैसे किसी भी लक्षण के बारे में डॉक्टर को सूचित करें.
पिछले दो सालों का आंकड़ा: 108 एंबुलेंस द्वारा करवाये गये सर्वे के अनुसार, पिछले दो सालों में कांगड़ा जिले में 356 लोगों को सांप ने अपना शिकार बनाया है. जबकि मंडी जिले में 179 और हमीरपुर में 175 लोग सांप के शिकार हुए हैं. इसी प्रकार प्रदेश के बिलासपुर में 141 मामले, चंबा में 166 मामले, किन्नौर में 16 मामले, कुल्लू में 62, लाहुल-स्पीति में 1 मामला, शिमला में 144, सिरमौर में 89, सोलन में 126 और ऊना में 82 मामले सामने आए हैं. इन सब लोगों को समय रहते 108 के माध्यम से नजदीकी अस्पताल में ले जाया गया.
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