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हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर नहीं दी जा सकती सजा

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Published : Mar 9, 2021, 8:55 PM IST

Updated : Mar 9, 2021, 9:41 PM IST

हिमाचल हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है. आपराधिक मामले में जब तक अभियोजन पक्ष के पास कोई और पुख्ता सबूत न हो, तो सिर्फ फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं दी जा सकेगी.

HIMACHAL PRDAESH HIGH COURT VERDICT ABOUT FORENSIC REPORT ON CRIMINAL CASES
हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

शिमलाः हिमाचल हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है. आपराधिक मामले में जब तक अभियोजन पक्ष के पास कोई और पुख्ता सबूत न हो, तो सिर्फ फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं दी जा सकेगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने आपराधिक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यह व्यवस्था दी. न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अभियोजन पक्ष में पेटेंट की गैर-मौजूदगी और उसमें पाए जाने वाली कमियां अभियोजन के मामले में झूठ की ओर ले जाती हैं. अदालत ने कहा कि फॉरेंसिक साक्ष्य सिर्फ गवाहों की तरफ से दी जाने वाली गवाही की सच्चाई जताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं.

कांगड़ा के एक व्यक्ति की सजा हाईकोर्ट ने की निरस्त

दरअसल, पोक्सो अधिनियम के तहत निचली अदालत से सात साल की सजा पाने वाले कांगड़ा के एक व्यक्ति की सजा हाईकोर्ट ने निरस्त की. सजा को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने व्यवस्था दी कि फॉरेंसिक रिपोर्ट को ही आधार नहीं माना जा सकता. मामले के अनुसार दोषी संजीव कुमार के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 342, 376, 120-बी और पोक्सो अधिनियम की धारा 4 व 17 लगाई थी.

ये भी पढे़ंः- उत्तराखंड के सीएम का इस्तीफा, इस उठापटक का क्या होगा हिमाचल पर असर?

उच्च न्यायालय ने पलटा निचली अदालत का फैसला

अभियोजन पक्ष ने संजीव कुमार के खिलाफ अभियोग साबित करने के लिए निचली अदालत के समक्ष मामला चलाया गया था. अभियोजन पक्ष ने संजीव पर अभियोग साबित करने के लिए कुल 26 गवाहों के बयान दर्ज किए. गवाहों के बयान और फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत ने संजीव कुमार को सात वर्ष का कठोर कारावास और पचास हजार जुर्माने की सजा सुनाई. बाद में मामला हाईकोर्ट गया. यहां उच्च न्यायालय ने सजा को निरस्त कर दिया और कहा कि केवल फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं सुनाई जा सकती. कई बार ऐसा भी होता है कि अभियोजन पक्ष में पेटेंट की कमी होती है.

दोषी के खिलाफ अभियोग साबित करने में अभियोजन पक्ष रहा असफल

हाई कोर्ट ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष दोषी के खिलाफ अभियोग साबित करने में सफल नहीं रहा है. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष को मजबूत करने वाले गवाहों ने अभियोजन पक्ष में गवाही नहीं दी है. अदालत ने अफसोस जताया कि जब अभियोजन पक्ष के गवाह दोषी के खिलाफ गवाही नहीं दे रहे हैं, तो उस स्थिति में निचली अदालत द्वारा फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर ही दोषी को सजा देना उचित नहीं है. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने मामले से जुड़े सभी साक्ष्यो और गवाहों के बयानात का अवलोकन करने के बाद निचली अदालत द्वारा सुनाये गए निर्णय को खारिज कर दिया.

पढ़ें: त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम पद से इस्तीफे पर बोले राठौर, हिमाचल बीजेपी में भी स्थिति ठीक नहीं

शिमलाः हिमाचल हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है. आपराधिक मामले में जब तक अभियोजन पक्ष के पास कोई और पुख्ता सबूत न हो, तो सिर्फ फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं दी जा सकेगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने आपराधिक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यह व्यवस्था दी. न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अभियोजन पक्ष में पेटेंट की गैर-मौजूदगी और उसमें पाए जाने वाली कमियां अभियोजन के मामले में झूठ की ओर ले जाती हैं. अदालत ने कहा कि फॉरेंसिक साक्ष्य सिर्फ गवाहों की तरफ से दी जाने वाली गवाही की सच्चाई जताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं.

कांगड़ा के एक व्यक्ति की सजा हाईकोर्ट ने की निरस्त

दरअसल, पोक्सो अधिनियम के तहत निचली अदालत से सात साल की सजा पाने वाले कांगड़ा के एक व्यक्ति की सजा हाईकोर्ट ने निरस्त की. सजा को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने व्यवस्था दी कि फॉरेंसिक रिपोर्ट को ही आधार नहीं माना जा सकता. मामले के अनुसार दोषी संजीव कुमार के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 342, 376, 120-बी और पोक्सो अधिनियम की धारा 4 व 17 लगाई थी.

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उच्च न्यायालय ने पलटा निचली अदालत का फैसला

अभियोजन पक्ष ने संजीव कुमार के खिलाफ अभियोग साबित करने के लिए निचली अदालत के समक्ष मामला चलाया गया था. अभियोजन पक्ष ने संजीव पर अभियोग साबित करने के लिए कुल 26 गवाहों के बयान दर्ज किए. गवाहों के बयान और फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत ने संजीव कुमार को सात वर्ष का कठोर कारावास और पचास हजार जुर्माने की सजा सुनाई. बाद में मामला हाईकोर्ट गया. यहां उच्च न्यायालय ने सजा को निरस्त कर दिया और कहा कि केवल फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं सुनाई जा सकती. कई बार ऐसा भी होता है कि अभियोजन पक्ष में पेटेंट की कमी होती है.

दोषी के खिलाफ अभियोग साबित करने में अभियोजन पक्ष रहा असफल

हाई कोर्ट ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष दोषी के खिलाफ अभियोग साबित करने में सफल नहीं रहा है. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष को मजबूत करने वाले गवाहों ने अभियोजन पक्ष में गवाही नहीं दी है. अदालत ने अफसोस जताया कि जब अभियोजन पक्ष के गवाह दोषी के खिलाफ गवाही नहीं दे रहे हैं, तो उस स्थिति में निचली अदालत द्वारा फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर ही दोषी को सजा देना उचित नहीं है. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने मामले से जुड़े सभी साक्ष्यो और गवाहों के बयानात का अवलोकन करने के बाद निचली अदालत द्वारा सुनाये गए निर्णय को खारिज कर दिया.

पढ़ें: त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम पद से इस्तीफे पर बोले राठौर, हिमाचल बीजेपी में भी स्थिति ठीक नहीं

Last Updated : Mar 9, 2021, 9:41 PM IST
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