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राष्ट्रपति सम्मान को कोरियर से भेजने के मामले में हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, जिम्मेदारों पर कार्यवाही करने के दिए आदेश - Judge Suresh Thakur

राष्ट्रपति सम्मान को कोरियर से भेजने के मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि महाप्रबंधक, भारत सरकार टकसाल कोलकाता के अलीपुर में कार्यरत प्रतिवादी के साथ काम करने वाले संबंधित अधिकारी व कर्मचारी इस चूक के जिम्मेदार है. न्यायालय ने केंद्र सरकार को संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर कारण बताओ नोटिस जारी कर कार्यवाही करने का आदेश जारी किया.

Himachal pradesh high court took cognizance of sending President's honor by courier
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Published : Aug 29, 2021, 9:53 AM IST

शिमला: राष्ट्रपति सम्मान को कोरियर से भेजने के मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता विकास शर्मा को शौर्य पदक के अलावा अन्य पदक विजेताओं की तरह सुविधाएं व लाभ भी मिलने चाहिए. न्यायालय ने इसके संदर्भ में याचिकाकर्ता को मिलने वाले लाभ व सुविधाओं को तुरन्त लागू करने के लिए संबंधित प्रतिवादियों को निर्देश भी दिए.

न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने विकास शर्मा की याचिका का निपटारा करते हुए पाया कि महाप्रबंधक, भारत सरकार टकसाल कोलकाता के अलीपुर में कार्यरत प्रतिवादी के साथ काम करने वाले संबंधित अधिकारी व कर्मचारी इस चूक के लिए जिम्मेदार है. न्यायालय ने केंद्र सरकार को संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर कारण बताओ नोटिस जारी कर कार्यवाही करने का आदेश जारी किया.

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को पदक उसे कोरियर से मिलने के बाद रोहड़ू में आयोजित हिमाचल दिवस समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा दिया गया जबकि बहादुरी और साहस के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार संबंधित सेलिब्रिटी द्वारा ही दिए जाते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों में बहादुरी की भावना कभी कम न हो. इस मामले में सेलिब्रिटी द्वारा वीरता पुरस्कार प्रदान करने में देरी के लिए न्यायालय ने खेद जताया. न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता का नाम उपयुक्त सूची में शामिल किया जाए और पदक प्रदान करने के लिए तुरन्त कदम उठाया जाए. राष्ट्रीय पदक केवल गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस समारोह में दिया जाए. यह सुनिश्चित करेगा कि वीरता के कार्य जीवंत रहते हैं.

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी जो धर्मशाला में हेड वार्डन के पद पर कार्यरत है ने सितंबर 2005 मे धर्मशाला जेल के जेलर को एक केदी अमरीश राणा के चुंगल से बचाया था. अन्यथा वह उसको जान से मार देता. इस साहस के लिए उसका नाम प्रेजिडेंट अवार्ड के लिए राष्ट्रपति मनोनीत किया गया था. यह अवार्ड उसे 26 जनवरी 2007 को दिया जाना था. सुचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी सूचना के आधार पर इस बात का पता चला. अप्रैल 2009 को प्रार्थी को यह अवार्ड गवर्नमेंट प्रेस कलकत्ता ने कोरियर के माध्यम से उसके घर भेज दिया. प्रार्थी ने यह मामला एडीजीपी (परिजन) के समक्ष उठाया तो 15 अप्रैल 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के कर कमलों से प्रार्थी को दे दिया गया.

प्रार्थी ने इस याचिका में यह आरोप लगाया था कि यह सम्मान उसे केवल राष्ट्रपति के द्वारा ही दिया जाना चाहिए था. यही नहीं उसको इस सम्मान की वजह से मिलने वाले लाभों से आज तक मेहरूम रखा गया है. मिलने वाले लाभों में एयर कंसेशन, रेलवे कंसेशन व वित्तीय लाभ देने का प्रावधान बनाया गया है. प्रार्थी ने इन लाभों को दिए जाने के अलावा कोर्ट से गुहार लगाई थी कि इस कृत्य के लिए उत्तरदायी अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए जाएं.

ये भी पढ़ें: राकेश टिकैत अपने राज्य में जाकर अराजकता फैलाएं, हिमाचल को आपकी जरूरत नहीं: विक्रमादित्य सिंह

शिमला: राष्ट्रपति सम्मान को कोरियर से भेजने के मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता विकास शर्मा को शौर्य पदक के अलावा अन्य पदक विजेताओं की तरह सुविधाएं व लाभ भी मिलने चाहिए. न्यायालय ने इसके संदर्भ में याचिकाकर्ता को मिलने वाले लाभ व सुविधाओं को तुरन्त लागू करने के लिए संबंधित प्रतिवादियों को निर्देश भी दिए.

न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने विकास शर्मा की याचिका का निपटारा करते हुए पाया कि महाप्रबंधक, भारत सरकार टकसाल कोलकाता के अलीपुर में कार्यरत प्रतिवादी के साथ काम करने वाले संबंधित अधिकारी व कर्मचारी इस चूक के लिए जिम्मेदार है. न्यायालय ने केंद्र सरकार को संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर कारण बताओ नोटिस जारी कर कार्यवाही करने का आदेश जारी किया.

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को पदक उसे कोरियर से मिलने के बाद रोहड़ू में आयोजित हिमाचल दिवस समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा दिया गया जबकि बहादुरी और साहस के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार संबंधित सेलिब्रिटी द्वारा ही दिए जाते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों में बहादुरी की भावना कभी कम न हो. इस मामले में सेलिब्रिटी द्वारा वीरता पुरस्कार प्रदान करने में देरी के लिए न्यायालय ने खेद जताया. न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता का नाम उपयुक्त सूची में शामिल किया जाए और पदक प्रदान करने के लिए तुरन्त कदम उठाया जाए. राष्ट्रीय पदक केवल गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस समारोह में दिया जाए. यह सुनिश्चित करेगा कि वीरता के कार्य जीवंत रहते हैं.

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी जो धर्मशाला में हेड वार्डन के पद पर कार्यरत है ने सितंबर 2005 मे धर्मशाला जेल के जेलर को एक केदी अमरीश राणा के चुंगल से बचाया था. अन्यथा वह उसको जान से मार देता. इस साहस के लिए उसका नाम प्रेजिडेंट अवार्ड के लिए राष्ट्रपति मनोनीत किया गया था. यह अवार्ड उसे 26 जनवरी 2007 को दिया जाना था. सुचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी सूचना के आधार पर इस बात का पता चला. अप्रैल 2009 को प्रार्थी को यह अवार्ड गवर्नमेंट प्रेस कलकत्ता ने कोरियर के माध्यम से उसके घर भेज दिया. प्रार्थी ने यह मामला एडीजीपी (परिजन) के समक्ष उठाया तो 15 अप्रैल 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के कर कमलों से प्रार्थी को दे दिया गया.

प्रार्थी ने इस याचिका में यह आरोप लगाया था कि यह सम्मान उसे केवल राष्ट्रपति के द्वारा ही दिया जाना चाहिए था. यही नहीं उसको इस सम्मान की वजह से मिलने वाले लाभों से आज तक मेहरूम रखा गया है. मिलने वाले लाभों में एयर कंसेशन, रेलवे कंसेशन व वित्तीय लाभ देने का प्रावधान बनाया गया है. प्रार्थी ने इन लाभों को दिए जाने के अलावा कोर्ट से गुहार लगाई थी कि इस कृत्य के लिए उत्तरदायी अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए जाएं.

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