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हिमाचल हाई कोर्ट ने ठुकराई नौकरी के लिए इंटरव्यू की वीडियोग्राफी वाली मांग, याचिका हुई खारिज

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने नौकरी के लिए आयोजित होने वाले इंटरव्यू की वीडियोग्राफी की मांग को लेकर दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है. पढ़ें पूरी खबर... (Himachal Pradesh High Court News).

Himachal Pradesh High Court News
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).
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Published : Jul 19, 2023, 8:34 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में दाखिल एक याचिका में मांग की गई थी कि नौकरी के लिए आयोजित होने वाले इंटरव्यू की वीडियोग्राफी की जाए. पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने इस मांग को लेकर हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. हाई कोर्ट ने संस्था की मांग को ठुकराते हुए याचिका खारिज कर दी. इस मामले में सरकार ने अदालत में तर्क प्रस्तुत किया था कि लोकसेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है और वो अपनी जिम्मेदारी को किसी अन्य से अधिक जानती है. वहीं, लोकसेवा आयोग ने भी अदालत में अपने पक्ष में कहा कि उसने लिस्ट ऑफ बिजनेस खुद बनाए हैं और नियमों के तहत ही भर्तियां हो रही हैं. पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था की याचिका में ये तर्क दिया गया था कि विभिन्न भर्ती एजेंसियों, विभागों आदि में भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए इंटरव्यू की वीडियोग्राफी होनी चाहिए.

मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी. इसी मामले में अदालत के समक्ष हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी समरहिल शिमला, चौधरी सरवण कुमार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर, डॉ. वाई.एस. परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री नौणी ने तर्क दिया कि उनके यहां विभिन्न पदों के लिए चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी है.

सभी यूनिवर्सिटीज ने अदालत में कहा कि उनके यहां चयन में पूरी तरह से निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता है. विभिन्न पदों पर चयन के लिए लिखित परीक्षा आयोजित करते समय वीडियो रिकॉर्डिंग होती है. जहां तक साक्षात्कार का सवाल है, लोक सेवा आयोग ने कुछ आपत्तियां दर्ज की थी और अदालत ने उनमें से कुछ आपत्तियों को वैध पाया. ऐसी ही एक आपत्ति यह है कि साक्षात्कार पैनल और उम्मीदवार के बीच बातचीत गोपनीय यानी कॉन्फिडेंशियल प्रकृति की होती है. ऐसे में साक्षात्कार की वीडियोग्राफी कर सार्वजनिक करना उस प्रक्रिया की सैंटिटी यानी पवित्रता से समझौता करने जैसा होगा.

राज्य लोक सेवा आयोग की तरफ से जताई गर्ई चिंताओं व संवैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने माना कि प्रार्थी संस्था की याचिका को लेकर कोई राहत नहीं दी जा सकती. वहीं, मामले में सभी प्रतिवादियों ने कहा कि वे राज्य सरकार द्वारा 17 अप्रैल 2017 को जारी की गई अधिसूचना का पालन कर रहे हैं, जिसके तहत सभी तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार की प्रथा को ही खत्म कर दिया गया है.

ये भी पढे़ं- हिमाचल प्रदेश: 6 अगस्त तक कालका-शिमला के बीच सभी ट्रेनें स्थगित, जानें वजह

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में दाखिल एक याचिका में मांग की गई थी कि नौकरी के लिए आयोजित होने वाले इंटरव्यू की वीडियोग्राफी की जाए. पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने इस मांग को लेकर हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. हाई कोर्ट ने संस्था की मांग को ठुकराते हुए याचिका खारिज कर दी. इस मामले में सरकार ने अदालत में तर्क प्रस्तुत किया था कि लोकसेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है और वो अपनी जिम्मेदारी को किसी अन्य से अधिक जानती है. वहीं, लोकसेवा आयोग ने भी अदालत में अपने पक्ष में कहा कि उसने लिस्ट ऑफ बिजनेस खुद बनाए हैं और नियमों के तहत ही भर्तियां हो रही हैं. पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था की याचिका में ये तर्क दिया गया था कि विभिन्न भर्ती एजेंसियों, विभागों आदि में भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए इंटरव्यू की वीडियोग्राफी होनी चाहिए.

मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी. इसी मामले में अदालत के समक्ष हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी समरहिल शिमला, चौधरी सरवण कुमार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर, डॉ. वाई.एस. परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री नौणी ने तर्क दिया कि उनके यहां विभिन्न पदों के लिए चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी है.

सभी यूनिवर्सिटीज ने अदालत में कहा कि उनके यहां चयन में पूरी तरह से निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता है. विभिन्न पदों पर चयन के लिए लिखित परीक्षा आयोजित करते समय वीडियो रिकॉर्डिंग होती है. जहां तक साक्षात्कार का सवाल है, लोक सेवा आयोग ने कुछ आपत्तियां दर्ज की थी और अदालत ने उनमें से कुछ आपत्तियों को वैध पाया. ऐसी ही एक आपत्ति यह है कि साक्षात्कार पैनल और उम्मीदवार के बीच बातचीत गोपनीय यानी कॉन्फिडेंशियल प्रकृति की होती है. ऐसे में साक्षात्कार की वीडियोग्राफी कर सार्वजनिक करना उस प्रक्रिया की सैंटिटी यानी पवित्रता से समझौता करने जैसा होगा.

राज्य लोक सेवा आयोग की तरफ से जताई गर्ई चिंताओं व संवैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने माना कि प्रार्थी संस्था की याचिका को लेकर कोई राहत नहीं दी जा सकती. वहीं, मामले में सभी प्रतिवादियों ने कहा कि वे राज्य सरकार द्वारा 17 अप्रैल 2017 को जारी की गई अधिसूचना का पालन कर रहे हैं, जिसके तहत सभी तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार की प्रथा को ही खत्म कर दिया गया है.

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