शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला में आजादी से पहले की एक संस्था के नाम वाली संपत्ति को कब्जा मुक्त करने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. शिमला में आजादी से पहले पशु पड़ाव नाम से एक संस्था सक्रिय थी. इस संस्था को चलाने वाली महिला पर आरोप है कि उसने पशु पड़ाव की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है. नगर निगम शिमला ने पशु पड़ाव की संपत्ति पर अवैध कब्जा हटाने की मुहिम चलाई थी. इस पर संस्था के काम को आगे चला रही महिला ने डिविजनल कमिश्नर के यहां आवेदन किया था. डिविजनल कमिश्नर ने महिला को राहत नहीं दी तो मामला हाईकोर्ट पहुंचा.
मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने आजादी से पहले पशु पड़ाव के नाम से चर्चित संस्था की संपत्ति को कब्जा मुक्त करने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. नगर निगम शिमला के आयुक्त और डिविजनल कमिश्नर शिमला की तरफ से पारित बेदखली आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. याचिका में संस्था के नाम पर काम को आगे चला रही महिला ने आरोप लगाया गया था कि नगर निगम शिमला ने उसे गलत तरीके से बेदखल किया है.
वहीं, दूसरे पक्ष की तरफ से अदालत को बताया गया कि निगम प्रशासन को प्रार्थी महिला के खिलाफ शिकायतें मिली थीं. शिकायतों के अनुसार प्रार्थी ने सरकारी संपत्ति पशु पड़ाव पर अवैध कब्जा किया है. निगम ने प्रार्थी के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई की और 21 फरवरी 2023 को संपत्ति से बेदखली आदेश पारित किए. इन आदेशों को प्रार्थी ने मंडल आयुक्त शिमला के पास अपील के माध्यम से चुनौती दी थी. प्रार्थी महिला ने अपील के साथ बेदखली आदेशों को स्थगित किए जाने के लिए भी आवेदन किया था. प्रार्थी महिला के आवेदन पर मंडलायुक्त शिमला ने बेदखली पर स्थगन आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.
इसी बीच नगर निगम शिमला के प्रशासन ने याचिकाकर्ता को बलपूर्वक बेदखल करते हुए संपत्ति का बिजली व पानी का कनेक्शन काट दिया था. मामले की सुनवाई के दौरान निगम प्रशासन की ओर से अदालत को बताया गया कि आजादी से पूर्व इस संपत्ति पर नगर निगम शिमला का हक था. नगर निगम शिमला का गठन वर्ष 1851 में किया गया था. उस समय यह संपत्ति पशु पड़ाव के उद्देश्य के लिए रखी गई थी. बाद में इस संपत्ति की देखरेख का जिम्मा लखू राम नामक व्यक्ति को दिया गया था. अदालत को बताया गया कि लखू राम की मृत्यु के बाद इस संपत्ति की निकट भविष्य के लिए कोई भी लीज डीड नहीं बनाई गई.
निगम की ओर से दलील दी गई कि प्रार्थी लखू राम की बहू है और उसने निगम की संपत्ति पर अवैध कब्जा किया हुआ है. प्रार्थी ने जमीन के तौर पर मौजूद इस संपत्ति पर घर, डेयरी फार्म, नर्सरी आदि बनाकर अवैध कब्जा किया है. फिलहाल, हाईकोर्ट ने इस मामले पर आगामी सुनवाई 30 नवंबर को निर्धारित की है.
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