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डिविजनल कमिश्नर कांगड़ा ने पारित नहीं किया कानून सम्मत आदेश, हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी के साथ वापस भेजा मामला

हिमाचल हाई कोर्ट ने डिविजनल कमिश्नर कांगड़ा की तरफ से कानून सम्मत आदेश पारित न करने पर मामला दोबारा फैसले के लिए वापस भेजा है. हाई कोर्ट ने बिना कारण बताए पारित किए गए आदेश को गलत ठहराया है. साथ ही मामला वापस डिविजनल कमिश्नर को भेजा है. पढे़ं क्या है पूरा मामला... (Himachal High Court)

Himachal High Court News
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).
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Published : Mar 21, 2023, 10:16 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कांगड़ा मंडल के डिविजनल कमिश्नर की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने डिविजनल कमिश्नर कांगड़ा की तरफ से कानून सम्मत आदेश पारित न करने पर मामला दोबारा फैसले के लिए वापस भेजा है. हाई कोर्ट ने बिना कारण बताए पारित किए गए आदेश को गलत ठहराया है. साथ ही मामला वापस डिविजनल कमिश्नर को भेजा है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने शशि कुमार व अन्य की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर उपरोक्त आदेश पारित किए.

अदालत ने कहा कि अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मंडलायुक्त ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताने का कारण तक नहीं दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिकारी को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वह पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों से निपट रहा है और इस तरीके से वह बिना किसी कारण को रिकॉर्ड किए फैसला पारित नहीं कर सकता. हाई कोर्ट ने टिप्पणी दर्ज की है कि कारण बताने में विफलता किसी को न्याय से वंचित करने के बराबर है. अदालत ने कहा कि इसका कारण यह है कि फैसला लेने वाले के दिमाग में विवाद और निर्णय या निष्कर्ष के बीच लाइव लिंक है.

हाई कोर्ट ने कहा कि तर्क का अधिकार एक मजबूत न्यायिक प्रणाली का जरूरी हिस्सा है. अदालत ने कहा कि प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश में कारणों का अभाव है. स्पष्ट रूप से यह आदेश के मनमाना होने का संकेत है इसलिए कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है. इस तरह हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कांगड़ा के डिविजनल कमिश्नर के आदेश को रद्द कर दिया और मामले पर फिर से फैसला देने के लिए कहा.

वहीं, एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने विभागीय कार्रवाई में अपील का वैकल्पिक और प्रभावी प्रावधान होने के बावजूद मेमोरेंडम व जांच रिपोर्ट को रिट याचिका के माध्यम से चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति तरलोक सिंह और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए उसे 17 अप्रैल तक अपनी सेवा से बर्खास्तगी की सजा और जांच रिपोर्ट को अपील के माध्यम से चुनौती देने की छूट दी है.

प्रार्थी ने दलील दी थी कि उसके खिलाफ की गई विभागीय कार्रवाई में प्राकृतिक न्याय जैसे आधारभूत सिद्धांतों का पालन नहीं किया. प्रार्थी ने कहा कि इसलिए मौलिक अधिकारों के हनन पर वह विभागीय जांच को रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दे सकता है. कोर्ट ने प्रार्थी के इस आरोप की सत्यता जांचने के लिए विभागीय कार्यवाई का पूरा रिकॉर्ड तलब किया और पाया कि एचआरटीसी ने विभागीय कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सभी मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया है.

इस कारण कोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए उसे विभागीय अपील दायर करने की छूट दी और अपीलेट अथॉरिटी को आदेश दिए कि यदि प्रार्थी 17 अप्रैल तक अपील करता है तो देरी से अपील दायर करने के आधार पर उसकी अपील को खारिज न किया जाए. मामले के अनुसार प्रार्थी पर एचआरटीसी के चम्बा यूनिट में 30 लाख रुपए से अधिक के फंड गबन और दुरुपयोग के आरोप के चलते चार्जशीट किया गया था. और जांच के बाद उसे विभागीय कार्रवाई में दोषी पाते हुए सेवा से बर्खास्त करने की सजा दी गई थी.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में दुकानों से ₹30 प्रति लीटर खरीदा जाएगा यूज्ड कुकिंग ऑयल, बनाया जाएगा बायोडीजल

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने कांगड़ा मंडल के डिविजनल कमिश्नर की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने डिविजनल कमिश्नर कांगड़ा की तरफ से कानून सम्मत आदेश पारित न करने पर मामला दोबारा फैसले के लिए वापस भेजा है. हाई कोर्ट ने बिना कारण बताए पारित किए गए आदेश को गलत ठहराया है. साथ ही मामला वापस डिविजनल कमिश्नर को भेजा है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने शशि कुमार व अन्य की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर उपरोक्त आदेश पारित किए.

अदालत ने कहा कि अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मंडलायुक्त ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताने का कारण तक नहीं दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिकारी को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वह पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों से निपट रहा है और इस तरीके से वह बिना किसी कारण को रिकॉर्ड किए फैसला पारित नहीं कर सकता. हाई कोर्ट ने टिप्पणी दर्ज की है कि कारण बताने में विफलता किसी को न्याय से वंचित करने के बराबर है. अदालत ने कहा कि इसका कारण यह है कि फैसला लेने वाले के दिमाग में विवाद और निर्णय या निष्कर्ष के बीच लाइव लिंक है.

हाई कोर्ट ने कहा कि तर्क का अधिकार एक मजबूत न्यायिक प्रणाली का जरूरी हिस्सा है. अदालत ने कहा कि प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश में कारणों का अभाव है. स्पष्ट रूप से यह आदेश के मनमाना होने का संकेत है इसलिए कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है. इस तरह हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कांगड़ा के डिविजनल कमिश्नर के आदेश को रद्द कर दिया और मामले पर फिर से फैसला देने के लिए कहा.

वहीं, एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने विभागीय कार्रवाई में अपील का वैकल्पिक और प्रभावी प्रावधान होने के बावजूद मेमोरेंडम व जांच रिपोर्ट को रिट याचिका के माध्यम से चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति तरलोक सिंह और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए उसे 17 अप्रैल तक अपनी सेवा से बर्खास्तगी की सजा और जांच रिपोर्ट को अपील के माध्यम से चुनौती देने की छूट दी है.

प्रार्थी ने दलील दी थी कि उसके खिलाफ की गई विभागीय कार्रवाई में प्राकृतिक न्याय जैसे आधारभूत सिद्धांतों का पालन नहीं किया. प्रार्थी ने कहा कि इसलिए मौलिक अधिकारों के हनन पर वह विभागीय जांच को रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दे सकता है. कोर्ट ने प्रार्थी के इस आरोप की सत्यता जांचने के लिए विभागीय कार्यवाई का पूरा रिकॉर्ड तलब किया और पाया कि एचआरटीसी ने विभागीय कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सभी मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया है.

इस कारण कोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए उसे विभागीय अपील दायर करने की छूट दी और अपीलेट अथॉरिटी को आदेश दिए कि यदि प्रार्थी 17 अप्रैल तक अपील करता है तो देरी से अपील दायर करने के आधार पर उसकी अपील को खारिज न किया जाए. मामले के अनुसार प्रार्थी पर एचआरटीसी के चम्बा यूनिट में 30 लाख रुपए से अधिक के फंड गबन और दुरुपयोग के आरोप के चलते चार्जशीट किया गया था. और जांच के बाद उसे विभागीय कार्रवाई में दोषी पाते हुए सेवा से बर्खास्त करने की सजा दी गई थी.

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