शिमला: प्रदेश भर में अवैध खनन से जुड़े सभी मामलों पर सुनवाई 16 नवंबर के लिए टल गई है. हाईकोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना परमार की आकस्मिक मृत्यु के कारण वकीलों ने बुधवार को अदालती कामकाज से अपने आप को अलग रखा. हाईकोर्ट के समक्ष प्रदेश भर के 116 मामले अवैध खनन के लंबित हैं. इन मामलों पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने विशेष खंडपीठ का गठन किया है. (Himachal High Court)
इन मामलों को सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश अमजद सईद और न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है. बता दें कि वर्ष 2018 में प्रदेश भर में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार ने सवेंदनशील स्थलों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का कार्य शुरू किया था. अवैध खनन से संबंधित एक मामले में राज्य भू वैज्ञानिक ने शपथपत्र के माध्यम से प्रदेश हाई कोर्ट को यह जानकारी दी थी. (HP High Court Hearing On Illegal Mining Cases)
वहीं, प्रदेश हाईकोर्ट ने पहाड़ों पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण से जुड़े मामले में सुनवाई 7 नवम्बर को निर्धारित की है. पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को बताया गया था कि कुमारहट्टी के समीप बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की जांच के लिए संयुक्त कमेटी का गठन किया गया है. अतिरिक्त उपायुक्त सोलन की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता, जिला वन अधिकारी और टाउन एंड कंट्री प्लानर को इसका सदस्य बनाया गया है. अदालत को बताया गया था कि इस कमेटी का गठन 20 सितंबर को किया गया था. अदालत को यह भी बताया गया था कि कुमारहट्टी क्षेत्र को नजदीकी प्लानिंग क्षेत्र में मिलाए जाने पर विचार किया जा रहा है. हालांकि इस बारे मंत्रिमंडल की ओर से अंतिम निर्णय लिया जाएगा. बड़ोग क्षेत्र नजदीक होने के कारण कुमारहट्टी को साडा बड़ोग में विलय करने की संभावना भी तलाशी जा रही है. (indiscriminate construction work on hills in Himachal)
उल्लेखनीय है कि पहाड़ियों पर बेतरतीब व अवैध निर्माणों के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से जवाब शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश दिए थे. मुख्य न्यायाधीश अमजद सईद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने पहाड़ों पर अवैध निर्माणों के मुद्दे को अति महत्वपूर्ण और गंभीर बताया. कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिए थे कि वह अपने जवाब शपथपत्र में यह भी स्पष्ट करे कि प्रदेश की कौन सी अथॉरिटी ने सोलन जिले के गांव खील झालसी से कोरों गांव को मिलाकर कैंथरी गांव तक के 6 किलोमीटर की सड़क के दोनों तरफ बहुमंजिला इमारतों को बनाने की अनुमति प्रदान की है.
कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया था कि ऐसे बेतरतीब और अंधाधुंध निर्माणों को रोकने के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है. कोर्ट का मानना था कि पर्यावरण दृष्टि से संवेदनशील इलाके में यह इमारतें पहाड़ों को काटकर बनाई गई प्रतीत होती है. प्रार्थी कुसुम बाली ने याचिका में यह भी बताया है कि यह निर्माण गैर कानूनी है. इनसे पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं. कोर्ट ने प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी पहाड़ों को काटकर इन अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माणों को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से अवगत करवाने के आदेश भी मुख्य सचिव को दिए थे. कोर्ट ने याचिका को विस्तार देते हुए इसे पूरे राज्य में पहाड़ों पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से संबधित आला अधिकारियों को कोर्ट के समक्ष तलब किया है.