शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रमोशन के ऑप्शन पर अहम व्यवस्था दी है. हाई कोर्ट ने कहा है कि एक पद के लिए प्रमोशन के विकल्प पर विफल होने के बाद दूसरे पद के लिए विकल्प देना कानूनी तौर पर न्यायोचित नहीं है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने वीपी राणा की याचिका को स्वीकार करते हुए उसे साल 2002 से रोजगार अधिकारी के पद पर प्रमोट करने के आदेश जारी कर दिए.
हाई कोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि प्रार्थी को वर्ष 2002 से रोजगार अधिकारी के पद पर प्रमोशन के लाभ लेने से वंचित होना पड़ा, क्योंकि प्रार्थी सांख्यिकीय सहायक के लिए प्रमोशन का केवल एक ही चैनल था और दूसरी तरफ निजी तौर पर प्रतिवादी बनाये गए वरिष्ठ सहायक मोहिंदर सिंह के लिए प्रमोशन के दो चैनल थे. हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि श्रम एवं रोजगार विभाग द्वारा वरिष्ठ सहायकों को पदोन्नति के लिए एक से अधिक अवसर देने के अपने विकल्पों का प्रयोग करने देना मनमाना है और कानून की नजर में न्यायोचित नहीं है.
चुनाव का सिद्धांत, पहली बार में, एक कर्मचारी पर यह चुनाव करने का दायित्व डालता है कि क्या वह पदोन्नति के लिए ए या स्ट्रीम बी का विकल्प चुनना चाहता है. कोर्ट ने कहा कि एक बार, उसने उस विशेष विकल्प का प्रयोग किया है, तो उसे बाद में उसके उस विकल्प से पीछे हटने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. वरिष्ठ सहायकों के पास सांख्यिकीय सहायकों की तुलना में प्रमोशन के दो चैनल थे. हर स्तर पर वरिष्ठ सहायकों को एक विकल्प की अनुमति है. वे या तो रोजगार अधिकारी के पद पर पदोन्नति का विकल्प चुनें या अधीक्षक, ग्रेड-ए के पद पर प्रमोशन का विकल्प चुनें.
हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव का सिद्धांत ऐसी स्थिति में अपना महत्व खो देता है क्योंकि ऐसा पदाधिकारी हर स्तर पर उस पद का चुनाव करेगा, जो उसे उपलब्ध है. वहीं, दूसरी तरफ सांख्यिकीय सहायक असहाय होकर छोड़ दिया जाएगा क्योंकि सांख्यिकीय सहायक के पास केवल पदोन्नति के लिए केवल एक ही चैनल है. कोर्ट ने कहा कि विभाग ने वर्ष 2002 में फिर से मोहिंदर सिंह से विकल्प मांगा है, वह कानून की नजर में गलत है. विशेषतया जब उसने वर्ष 2001 में अधीक्षक, ग्रेड-टू के चैनल के लिए विकल्प दिया था और उसे अधीक्षक, ग्रेड-टू के पद के खिलाफ प्रमोशन के लिए सीनियोरिटी के आधार पर प्रतीक्षा करनी थी. उसे अपने पहले के विकल्प से हटने और फिर से एक नए विकल्प के लिए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी.
कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणियों के मद्देनजर प्रार्थी की याचिका को स्वीकार करते हुए मोहिंदर सिंह की प्रमोशन को रोजगार अधिकारी के पद पर गलत ठहराया, चूंकि मोहिंदर सिंह सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इस स्थिति में प्रदेश उच्च न्यायालय ने उनके प्रमोशन के आदेश को रद्द करना उचित नहीं समझा. लेकिन प्रार्थी को मोहिंदर सिंह के रोजगार अधिकारी के पद पर प्रमोशन की तारीख से रोजगार अधिकारी के पद पर प्रमोट करने के आदेश जारी किए.