शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर बेहद कड़ी टिप्पणी की है. पीटीए से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार असहाय बेरोजगार युवाओं को तंग कर पैसा बचाने की कोशिश कर रही है. हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि बेरोजगार युवा उन पर लगाई गई कोई भी मनमानी शर्त स्वीकार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि बेरोजगार युवाओं को सम्मानजनक आजीविका के लिए नहीं, बल्कि कुछ कमाने के अवसर में आशा की किरण दिखाई देती है. अदालत ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को हताश करने वाला बताया. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पीटीए मामले में राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए उपरोक्त टिप्पणियां की हैं.
मामले के अनुसार राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे पीटीए शिक्षकों को अनुदान सहायता प्रदान करने के लिए अभिभावक शिक्षक संघ (पीटीए) नियम-2006 तैयार किए थे. इन्हें तैयार करने के बाद कार्यान्वित किया गया था. हालांकि, 27 अगस्त 2007 को एक पत्र के माध्यम से नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायत यानी शहरी निकाय क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में सेवारत पीटीए शिक्षकों को इस लाभ से वंचित कर दिया था. इस सरकारी फैसले को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने रद्द कर दिया था. अदालत ने कहा था कि हाईकोर्ट की तरफ से स्कूलों में नियमित शिक्षक उपलब्ध कराने के बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद इन निर्देशों का पालन करने और नियमित शिक्षकों की नियुक्ति करने में राज्य सरकार असफल रही है. ऐसी परिस्थितियों में मजबूरी में पीटीए यानी अभिभावक शिक्षक संघ नामक व्यवस्था बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए पीटीए के तहत शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए बाध्य है.
न्यायालय ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों या शहरी क्षेत्रों में सेवारत पीटीए शिक्षक एक ही वर्ग के हैं और उनके बीच वर्गीकरण किया जाना अदालत की समझ से परे है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पीटीए शिक्षकों को समान कारणों से नियुक्त किया जाता है और वे समान स्तर की जवाबदेही और जिम्मेदारी के साथ एक समान कार्य करते हैं. हाईकोर्ट ने पाया कि पीटीए शिक्षकों का वर्गीकरण भेदभावपूर्ण है. ये वर्गीकरण राज्य सरकार की तरफ से बनाई और अपनाई गई शोषणकारी नीतियों का एक और उदाहरण है.