शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण फैसले किए हैं. नशा तस्करों को मृत्युदंड का प्रावधान करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने के साथ-साथ गौवंश की हत्या रोकने को लेकर कानून बनाने की पहल करने के आदेश जारी करने वाले हिमाचल हाईकोर्ट के सारे फैसले ऑनलाइन हैं. मौके पर ही फैसले ऑनलाइन करने वाला हिमाचल हाईकोर्ट देश का पहला उच्च न्यायालय है.
अगर हम 2019 की बात करें तो सबसे अहम फैसले के तौर पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी किया कि बिना शर्त माफी मांग कर अदालत की अवमानना से नहीं बचा जा सकता. एक मामले की सुनवाई के दौरान इसी साल अक्टूबर महीने में आदेश आया. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल अदालत के समक्ष बिना शर्त माफी मांगने पर न्यायालय के आदेशों की अनुपालना न करने के दोष से नहीं बच सकते. बिना शर्त माफी को अवमानना याचिका में बचाव के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. हिमाचल सरकार के सीनियर आईएएस अफसर अनिल खाची उस समय राज्य सरकार में सहकारिता सचिव थे, जब ये मामला सामने आया था. हाईकोर्ट ने अनिल खाची और एक अन्य अफसर बीर सिंह ठाकुर के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई चलाई जाए.
न्यायाधीश संदीप शर्मा ने एक अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान ये पाया कि प्रथम दृष्टया इनके खिलाफ अवमानना का मामला बनता है और कानून के सिद्धांतों के मुताबिक उन्हें दंडित किए जाने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना जरूरी है, ताकि ये अपने बचाव में न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रख सके. मामले के अनुसार प्रार्थियों ने पंजाब पैटर्न के आधार पर उन्हें इंस्पेक्टर ग्रेड टू से इंस्पेक्टर ग्रेड वन में तब्दील किए जाने और वरिष्ठता का लाभ दिए जाने को लेकर अदालत की शरण ली थी. उसी मामले में हाईकोर्ट ने ये सख्त आदेश जारी किए थे. इसी मामले में अदालती आदेश की अवहेलना हुई और हाईकोर्ट ने कहा कि बिना शर्त माफी मांगकर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट से नहीं बचा जा सकता.
शिक्षकों के भर्ती और प्रमोशन को लेकर राज्य सरकार को फटकार
इसी तरह अक्टूबर 19 को एक मामले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भरी अदालत में फटकार लगाई. हाईकोर्ट ने भरी अदालत में प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर बेहद नेगेटिव टिप्पणी की. अदालत ने सख्त शब्दों में कहा कि क्या राज्य सरकार शिक्षकों के भर्ती और प्रमोशन नियमों (आरएंडपी रूल्स) में संशोधन को संविधान संशोधन जैसा जटिल और मुश्किल काम समझती है? मामला प्रदेश भर के स्कूलों में शिक्षकों के खाली पड़े हजारों पदों से जुड़ा है. इसी साल 26 जून को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश जारी किए थे कि शिक्षकों से जुड़े भर्ती एवं पदोन्नति नियमों (आरएंडपी रूल्स) में आठ हफ्ते के भीतर संशोधन करें और संशोधित नियमों के अनुसार शिक्षकों की भर्ती की जाए.
शिक्षकों से जुड़े भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में संशोधन के लिए राज्य सरकार ने इस बार फिर से तीन महीने का समय मांगा. इसी पर हाईकोर्ट ने भरी अदालत में टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या राज्य सरकार भर्ती एवं प्रमोशन नियमों में संशोधन करने के लिए संविधान में संशोधन करने जितना जटिल काम कर रही है? हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश धर्म चंद चौधरी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए है कि वे स्कूलों में खाली पड़े पदों को इसी शैक्षणिक सत्र में भरे और अगले शैक्षणिक सत्र का इंतजार न किया जाए.
नवंबर महीने में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फिर से फटकार लगाई. प्रदेश में लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग के फंक्शनल न होने पर अदालत ने राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में तुरंत एक्शन लिया जाए. उसके बाद राज्य सरकार ने पदों को विज्ञापित करने की प्रक्रिया शुरू की है.
नवंबर महीने में ही हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बेहद अहम व्यवस्था दी . अदालत ने इस व्यवस्था के तहत कहा कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले को मानसिक रोगी माना जाए और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज न किया जाए. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव को आदेश जारी किए हैं कि इस बारे में पुलिस अथॉरिटी को तुरंत प्रभाव से दिशा-निर्देश दिए जाएं. अदालत ने मुख्य सचिव को कहा कि वो पुलिस अथॉरिटी से कहें कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन करे. इस प्रावधान के अनुसार आत्महत्या की कोशिश करने वाले को गंभीर तनाव से पीड़ित रोगी माना जाएगा और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के पद भरने के लिए नीति में संशोधन
इसके साथ ही मंडी जिला में बुजुर्ग महिला से आस्था के नाम पर अभद्र व्यवहार करने पर हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और राज्य सरकार को दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए. इसी तरह मंडी जिला के किलिंग स्कूल में दलित छात्रों से मिड डे मील परोसने को लेकर भेदभाव पर भी हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया. ये मामले अभी भी चल रहे हैं. एक अन्य मामले में हाईकोर्ट की सख्ती के बाद राज्य सरकार की नींद टूटी. प्रदेश सरकार ने अदालत के आदेश की अनुपालना करते हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के पद भरने के लिए नीति में आवश्यक संशोधन किया. न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के पद भरने के लिए राज्य सरकार के मुख्य सचिव को सभी संबंधित अधिकारियों से मीटिंग करने और नई पॉलिसी तैयार करने की संभावना तलाश करने के आदेश दिए थे.
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर हिमाचल HC का केंद्र को निर्देश
एक मामले में दिसंबर महीने में हिमाचल हाईकोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स लागू करने पर स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल की जाए. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाईकोर्ट ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 को लागू करने में केंद्र सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की स्टेट्स रिपोर्ट भी तलब की है. साथ ही राज्य सरकार को भी इस बारे में रिपोर्ट दाखिल करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट समय-समय पर प्रदेश में जनहित के मसलों पर खुद संज्ञान भी लेता है. ऐसे मामलों में प्रदेश के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान आईजीएमसी अस्पताल में एमआरआई मशीन की खराबी, शिमला के झंझीड़ी में स्कूल बस हादसे सहित कई अन्य मामले शामिल हैं.
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