शिमला: आर्थिक संकट से जूझ रहे हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार वाटर सेस लागू कर रेवेन्यू जेनरेट करना चाहती है. इसके लिए बाकायदा विधानसभा में विधेयक पारित किया गया है, लेकिन सुखविंदर सिंह सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में अब कानूनी पेंच फंसा हुआ है. वाटर सेस के खिलाफ बिजली उत्पादन कंपनियां हाईकोर्ट पहुंची हैं. बुधवार 28 जून यानी आज इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. हाईकोर्ट के रुख के बाद ही सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार आगामी रणनीति तय करेगी.
पावर कंपनियों ने खड़काया अदालत का दरवाजा: सुक्खू सरकार ने बड़ी आस के साथ सालाना चार हजार करोड़ का रेवेन्यू जुटाने के लिए प्रदेश की नदियों के पानी पर बनी बिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का फैसला किया था. रातों-रात विधेयक तैयार कर उसे विधानसभा के बजट सत्र में पेश किया गया. इस बीच, पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा ने हिमाचल सरकार के इस विधेयक पर आपत्ति जताई और अपनी-अपनी विधानसभाओं में इसके खिलाफ संकल्प प्रस्ताव लाया. दोनों राज्यों की सरकारों का तर्क था कि इससे उनके यहां बिजली महंगी होगी. पंजाब व हरियाणा की आपत्तियों को दूर करने के लिए सीएम सुखविंदर सिंह ने वहां के मुख्यमंत्रियों से बैठकें भी कीं, लेकिन बात बनी नहीं. उसी दरमियान केंद्र सरकार के एक पत्र में राज्य सरकार को मुसीबत में डाल दिया. जिस पर बिजली उत्पादक कंपनियां भी हाईकोर्ट पहुंच गई और वाटर सेस के विरोध में याचिकाएं दाखिल कर दीं. अब उन याचिकाओं पर हिमाचल हाईकोर्ट में आज सुनवाई होनी है.
हाइड्रो पावर कंपनियां भी वाटर सेस देने के लिए तैयार नहीं: हिमाचल हाईकोर्ट के रुख के बाद ही राज्य सरकार आगे की रणनीति तैयार करेगी. इधर, जले पर नमक वाली बात ये है कि हाइड्रो पावर कंपनियां भी वाटर सेस देने के लिए तैयार नहीं हैं. हाल ही में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पावर कंपनियों के साथ मैराथन बैठक की. उसके बाद राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के अफसरों ने भी चर्चा की है. सुखविंदर सिंह सरकार ने राज्य के ऊर्जा सचिव राजीव शर्मा की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया है. कमेटी पावर कंपनियों के साथ चर्चा कर रही है. हाल ही में संपन्न मीटिंग में भी राज्य सरकार की कमेटी पावर कंपनियों को वाटर सेस के लिए राजी नहीं कर पाई. सरकार चाहती थी कि हाइड्रो पावर कंपनियां अपनी तरफ से वाटर सेस की दरें कम करने या युक्तिसंगत बनाने के लिए सुझाव दें, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ है.
शानन प्रोजेक्ट भी सुक्खू सरकार के लिए बना चुनौती: उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने वाटर सेस को लेकर जो विधेयक पारित किया है, उसके दायरे में 172 हाइड्रो पावर कंपनियां आती हैं. कमेटी ने इन सभी को मीटिंग के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन बात नहीं बनी. उधर, अगले साल शानन प्रोजेक्ट की लीज पूरी हो रही है. ये प्रोजेक्ट पंजाब सरकार के पास है. इस परियोजना को संभाल रही एजेंसी भी मीटिंग में आई थी. सार्वजनिक उपक्रम की कंपनियां जैसे एसजेवीएन, एनएचपीसी आदि ने मीटिंग में कहा कि वे केंद्र सरकार के पत्र में जारी निर्देश के अनुसार आगे कदम बढ़ाएंगी.
हाईकोर्ट के फैसले पर टिकीं सबकी निगाहें: वहीं, इंडिपेंडेंट रूप से हिमाचल में बड़े जलविद्युत प्रोजेक्ट चला रहे स्वतंत्र उत्पादकों ने भी कहा कि जब तक अदालत कोई संकेत और आदेश जारी नहीं करती, सेस भुगतान करना उनके लिए उचित नहीं है. छोटे प्रोजेक्ट लगाने वाले उत्पादकों का कहना था कि हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड उनसे जिस रेट पर पावर परचेज करता है, उस रकम से अधिक तो उनका वाटर सेस बन जाएगा. सुक्खू सरकार की एक समस्या ये भी है कि अभी कुछ कंपनियों ने तो वाटर सेस के लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन भी नहीं करवाई है. अभी कम से कम 38 पावर प्रोजेक्ट कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन नहीं करवाई है. अब सभी की नजरें आज हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिक गई हैं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू बार-बार दोहरा चुके हैं कि वाटर स्टेट सब्जेक्ट है और हिमाचल सरकार को अपने प्रदेश की नदियों के पानी पर बने प्रोजेक्ट्स पर वाटर सेस लगाने का अधिकार है. अब इस मामले में राज्य सरकार, केंद्र सरकार, दो पड़ोसी राज्य पंजाब व हरियाणा सहित 172 कंपनियों में खींचतान हो रही है. ऐसे में हाईकोर्ट से ही कोई राह निकलने तक इंतजार करना होगा.
ये भी पढ़ें: वाटर सेस हिमाचल का अधिकार, मजबूती से लड़ी जाएगी प्रदेश के हितों की लड़ाई: CM सुखविंदर