शिमला: हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षित परिचालकों की सेवाएं को जारी रखने का आग्रह करने से संबंधित अलग-अलग 185 याचिकाओं को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस बारे में अपना फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट के समक्ष सतीश कुमार और अन्यों ने अलग-अलग 185 याचिकाएं दाखिल की थीं. याचिकाओं के माध्यम से अदालत से आग्रह किया गया था कि उनकी यानी प्रशिक्षित परिचालकों की सेवाएं जारी रखने को लेकर आदेश जारी किए जाएं.
HC ने खारिज की 185 याचिकाएं: याचिकाओं में अदालत के समक्ष तथ्य रखा गया था कि संबंधित याचिकाकर्ताओं ने यात्री सेवा वितरण कौशल विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण लिया था. ट्रेनिंग पूरा होने के बाद उन्हें कंडक्टर की पोस्ट पर तैनात किया गया था. 3 साल बाद उनकी सेवाओं को बिना किसी नोटिस के समाप्त कर दिया गया. याचिका में बताया गया था कि कुछ प्रशिक्षुओं ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल से अंतरिम आदेश हासिल कर लिए और वे अभी भी कंडक्टर के पद पर तैनात हैं. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपने निर्णय में कहा कि एचआरटीसी एक सार्वजनिक उपक्रम है और सभी संवर्गों का रोजगार आवश्यक रूप से सार्वजनिक रोजगार में आता है. सार्वजनिक क्षेत्र में सभी पात्र लोगों को समान अवसर दिए बिना ही किसी को भी नियुक्ति देना संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है.
याचिकाकर्ताओं को HC की फटकार: मामले से जुड़े रिकॉर्ड के बाद अदालत ने पाया कि एचआरटीसी ने याचिकाकर्ताओं को किसी भी रोजगार या पद की पेशकश नहीं की थी. याचिकाकर्ताओं के पास न तो कोई अपॉइंटमेंट लेटर है और न ही अपॉइंटमेंट से जुड़ी किसी तरह की शर्तें हैं. याचिकाकर्ताओं को केवल स्टॉप-गैप अरेंजमेंट प्रक्रिया के तहत नियुक्त किया गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को इसका कोई अधिकार नहीं है कि शर्तों के मुताबिक वे यह कहें कि उनकी सेवाओं को जारी रखा जाए. अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने बैक डोर एंट्री की है. इस आधार पर संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत वे समानता का अधिकार पाने के हकदार नहीं हैं.
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