शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ का पैटर्न तर्कसंगत बनाए. अदालत ने राज्य को कहा कि वो केंद्र सरकार के वर्ष 2016 के दिशा-निर्देश के मुताबिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों यानी पीएचसी में स्टाफिंग पैटर्न को तर्कसंगत बनाने के लिए तत्काल कदम उठाए.
एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि राज्य में कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में, स्टाफ पैटर्न की गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए स्टाफ अपेक्षाकृत अधिक है. हाईकोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि इस तरह रेशनेलाइजेशन किया जाए कि सरप्लस होने के बाद बचे कर्मचारियों को अन्य पीएचसी में समायोजित किया जा सके.
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल. नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर उक्त आदेश दिए. याचिका में शिमला के समीप पीएचसी घनाहट्टी में डॉक्टर्स व पैरामेडिकल कर्मियों की कमी का आरोप लगाते हुए दिए यहां उचित स्टाफ नियुक्त करने के आदेश जारी करने का आग्रह किया गया है.
इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि राज्य की तरफ से दायर किए गए हलफनामे के अनुसार, 7 अप्रैल, 2016 की अधिसूचना के अनुसार स्टाफ तैनात करने के मानदंडों को अधिसूचित किया गया है. अधिसूचना के अनुसार, स्टाफिंग पैटर्न यह है कि प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट और एक चतुर्थ वर्ग का कर्मचारी होता है.
उधर, याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय के ध्यान में लाया गया था कि लगभग 98 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की पोस्टिंग को 2016 के दिशानिर्देशों के विपरीत बनाया गया है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अतिरिक्त स्टाफिंग पैटर्न से संबंधित आंकड़ों को गलत ठहराते हुए, कोर्ट ने देखा कि 77 डॉक्टर्स और 47 चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को तुरंत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां ये पद खाली पड़े हैं.
अदालत ने आगे कहा कि एक तरफ सरकार ने विभिन्न पीएचसी के लिए कर्मचारियों की पोस्टिंग के लिए 2016 के दिशानिर्देशों को स्वीकार कर लिया है, लेकिन दूसरी ओर दायर हलफनामे के विपरीत काम किया है.
न्यायालय ने आगे कहा कि पीएचसी के लिए डॉक्टरों और अन्य अधिकारियों की अपेक्षित ताकत आवश्यकताओं के आधार पर है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरप्लस लोगों को सार्वजनिक हित में पोस्ट नहीं किया गया है और केवल मृतक कर्मचारियों के परिजनों को समायोजित करने के लिए तैनात किया गया है. ये नीति के खिलाफ है और सरकारी खजाने पर एक बोझ है.
न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार को तत्काल आवश्यक कदम उठाने होंगे और उचित आदेश पारित करने होंगे कि कैसे सरकारी खजाने से इन लोगों को बिना किसी काम के वेतन दिया जा रहा है और यह कार्य तीन सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना है.
न्यायालय ने राज्य को इन लोगों को विशेष पीएचसी और सीएचसी को हस्तांतरित करने के व्यक्तिगत आदेश प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. साथ ही इस मामले में पहली दिसंबर तक अनुपालना रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.