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टाउन हॉल मामले में HC का फैसला, महापौर और उप-महापौर अपनी पुरानी जगह ही रहेंगे विराजमान - टाउन हॉल मामले में HC का फैसला

हाईकोर्ट ने महापौर और उप महापौर को टाउन हॉल शिमला की इमारत में बैठने के आदेश दिए हैं. जबकि निगम के दूसरे स्टाफ को यहां बैठने की अनुमति नहीं होगी.

HC decision on town hall
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Published : Sep 6, 2019, 4:42 PM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने नगर निगर शिमला के कार्यालय पर अपना फैसला सुना दिया है. हाईकोर्ट ने महापौर और उप महापौर को टाउन हॉल शिमला की इमारत में बैठने के आदेश दिए हैं. जबकि निगम के दूसरे स्टाफ को यहां बैठने की अनुमति नहीं होगी.

ये फैसला मुख्य न्यायाधीश वी रामासुब्रमन्यन और न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने सुनाया. खंडपीठ ने कहा कि सरकार के साथ विचार विमर्श करने के बाद बची हुई जगह को हाइ एंड कैफे के लिए भी इस्तेमाल किया जाए, जिसमें पढ़ने की सुविधा भी हो. इसके अलावा यहां पर सैलानियों को आकर्षित करने के लिए पारंपरिक हस्तकला और दस्तकारी की वस्तुओं को रखा जाए.

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने नगर निगर शिमला के कार्यालय पर अपना फैसला सुना दिया है. हाईकोर्ट ने महापौर और उप महापौर को टाउन हॉल शिमला की इमारत में बैठने के आदेश दिए हैं. जबकि निगम के दूसरे स्टाफ को यहां बैठने की अनुमति नहीं होगी.

ये फैसला मुख्य न्यायाधीश वी रामासुब्रमन्यन और न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने सुनाया. खंडपीठ ने कहा कि सरकार के साथ विचार विमर्श करने के बाद बची हुई जगह को हाइ एंड कैफे के लिए भी इस्तेमाल किया जाए, जिसमें पढ़ने की सुविधा भी हो. इसके अलावा यहां पर सैलानियों को आकर्षित करने के लिए पारंपरिक हस्तकला और दस्तकारी की वस्तुओं को रखा जाए.

राजेंद्र शर्मा, संवाददाता

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Intro:Body:शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने नगर निगर शिमला के कार्यालय टाउन हाल के मामले में अपना फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट ने महापौर और उप महापौर को धरोहर इमारत टाउन हाल में बैठने की इजाजत दे दी है जबकि निगमायुक्त व अन्य बाबूओं को बाहर कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश वी रामासुब्रम्नयन और न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने आज ये फैसला सुनाया।
खंडपीठ ने कहा कि सरकार के साथ सलाह मशविरा करके बाकी जगह को हाइ एंड कैफे जिसमें पढ़ने की सुविधा भी हो के लिए इस्तेमाल किया जाए।

इसके अलावा यहां पर सूचना कें द्र व सैलानियों को आकर्षित करने के लिए पारंपरिक हस्तकला व दस्तकारी की वस्तुओं को रखा जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि इसके लिए बाकायदा फीस रखी जाए ताकि नगर निगम को अच्छी आय हो।
अदालत ने कहा कि चूंकि यह संपति नगर निगम कि है ऐसे में अदालत इस बावत कोई निर्देश नहीं दे सकती। Conclusion:
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