शिमला: हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी रजनी पाटिल ने कहा कि महामारी व आर्थिक संकट की दोहरी मार झेल रहे प्रदेश के बेरोजगारों व कामगारों की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. लॉकडाउन के दौरान देश के करोड़ों व लोखों लोग नौकरी गंवाकर गांव लौट चुके हैं. इस वर्ग को रोजगार देने के लिए संकट के इस दौर में मनरेगा योजना सबसे कारगर साबित हो रही है, लेकिन प्रदेश सरकार अभी तक मजबूरी में गांव में पहुंचे बेरोजगारों व कामगारों को मनरेगा जैसी कारगर योजना के माध्यम से पूरी राहत नहीं दे पा रही है.
हिमाचल प्रदेश में मनरेगा में सबसे कम 198 रुपये दिहाड़ी दी जा रही है, जबकि कुछ पड़ोसी राज्यों व बीजेपी शासित राज्य हरियाणा में 309, गुजरात में 224, यूपी में 201, उत्तराखंड में 201, पंजाब में 263, जेएंडके में 204, लद्दाख में 204 रुपये दिहाड़ी दी जा रही है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी शासित प्रदेशों में ही मनरेगा की दिहाड़ी में भेदभाव किया जा रहा है.
रजनी पाटिल ने कहा कि यह स्थिति बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं और देश के वित्त को संभाल रहे सांसद अनुराग ठाकुर जैसे दोनों नेताओं का संबंध सीधे तौर पर हिमाचल से है. उन्होंने कहा कि यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि नौकरी गंवा चुके बेरोजगारों की सही ढंग से पैरवी देश की राजनीति में बैठे यह दोनों नेता नहीं कर पा रहे हैं या करना नहीं चाहते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व कांग्रेस पार्टी लगातार मनरेगा के माध्यम से कोरोना के दौर में गांवों में पहुंचे बेरोजगारों को राहत पहुंचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी माकूल राहत नहीं पहुंच पा रही है.
रजनी पाटिल ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि मनरेगा की सीमाओं का सरकार विस्तार करे. इस योजना की 3 बड़ी सीमाओं के विस्तार की अब बेहद जरूरत है, जिनमें एक मजदूर की दिहाड़ी बढ़ाई जाए. अभी तक परिवार के सिर्फ एक ही सदस्य को मजदूरी देने का प्रावधान है. पूरे साल में 200 दिन काम देने का प्रावधान किया जाए और सबसे अहम यह होगा कि खेत में काम करने वाले हर किसान को रबी और खरीफ की फसल के सीजन में 60-60 दिन की दिहाड़ी मिलने की शर्त को भी अनिवार्य किया जाए. अब कृषि व गांवों के विकास के लिए हर परिवार के हर सदस्य को खेत व बाग में काम करने पर दिहाड़ी मिलना समय की मांग व जरूरत है, जबकि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए.
लाखों नौजवानों को मनरेगा के माध्यम से भी राहत देना जरूरी है. जब तक स्थितियां सही नहीं होती हैं, तब तक उन्हें मनरेगा के माध्यम से जीवन यापन का साधन मिलेगा अन्यथा प्रदेश के लाखों बेरोजगार नौजवान आर्थिक संकट के कारण तनाव की स्थिति में हैं.