शिमला: हिमाचल में लागू की गई बागवानी विकास परियोजना में सरकार ने तेजी लाई है. हालांकि यह परियोजना छह साल पहले शुरू हो गई थी, लेकिन शुरूआत में इसकी गति बेहद धीमी रही. चार सालों तक इसमें मात्र 146 करोड़ का ही काम हो पाया, लेकिन अंतिम अढाई साल में इस परियोजना में तेजी लाई गई और करीब 609 करोड़ के कार्य किए गए.
इस साल जून माह में खत्म हो रही 1066 करोड़ की इस परियोजना के तहत अब तक करीब 756 करोड़ का कार्य ही हो पाया है. बाकी बचे हुए कार्य के लिए सरकार ने विश्व बैंक से एक साल की एक्सटेंशन मांगी है. विश्व बैंक की यह परियोजना जून 2016 में वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में मंजूर की गई थी. सेब और स्टोन फ्रूट के लिए लाई गई इस परियोजना पर काफी समय तक काम नहीं हो पाया. जिस कराण यह प्रोजेक्ट पटरी से उतर गया था.
बागवानी विभाग के अफसरों और सरकार में तालमेल न होने की वजह से शुरू में ही इस परियोजना पर संकट के बादल मंडराने लगे थे. यही नहीं विश्व बैंक ने भी हिमाचल से इस परियोजना को वापस लेने की बात कही था. हालांकि इसके बाद सरकार ने इस परियोजना को बेहतर तरीके से लागू करने का भरोसा विश्व बैंक को दिया और इसमें तेजी से काम शुरू किया. परियोजना में काम करने वालों को टारगेट दिया गए, जिसके बाद अब यह परियोजना पटरी पर दौड़ने लगी है.
चार साल में मात्र 146 करोड़ के हुए कार्य: बागवानी परियोजना किस तरीके से लागू की गई. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शुरू के चार सालों में इस परियोजना में नाम मात्र का काम हुआ. 2016-17 में इसके तहत 13.41 करोड़ का काम हुआ. इसके बाद तीन साल भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. परियोजना के तहत 2017-18 में मात्र 25 करोड़ रुपए के ही कार्य हुए. इसी तरह 2018-19 करोड़ में इससे कुछ ज्यादा यानी 53.32 करोड़ के ही काम हुए. साल 2019-20 में भी इस परियोजना के तहत मात्र 55 करोड़ के काम हुए. इस तरह चार सालों में इस परियोजना के तहत 146 करोड़ ही खर्च किए गए.
अंतिम अढाई साल में 609 करोड़ के हुए कार्य: बागवानी विकास परियोचजना का कुल परिव्यय 1066 करोड़ रुपए है. जिसको जून 2023 तक पूरा किया जाना है. शुरूआती चार सालों में ढीली रफ्तार के बाद अब इस परियोजना के कार्यों में तेजी आई है. साल 2020-21 से अब तक इस परियोजना पर करीब 756.48 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं, जो कि कुल परिव्यय का करीब 70.96 फीसदी है.
साल 2020-21 में इस परिजना ने गति पकड़ी और इस साल 225.77 करोड़ के कार्य इसके तहत किए गए. इसके बाद साल 2021-22 में 255 करोड़ और इस साल के छह माह यानी दिसंबर तक 128.48 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं. बागवानी विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अभी जून माह तक और करीब 150 करोड़ रुपए के कार्य पूरे होने की संभावना है.
परियोजना के तहत किया जा रहे ये कार्य: हिमाचल की बागवानी विकास परियोजना के तहत अधिकतर सेब की खेती पर फोकस किया जा रहा है. इसके लिए सेब बहुल इलाकों में क्लस्टर बनाए गए हैं, जिनमें सेब की हाई डेंसिटी प्लांटेशन के अलावा सोलर फेंसिंग, ड्रिप-इरिगेशन, उन्नत किस्म का प्लाटिंग मटेरियल बागवानों को दिया जा रहा है. इसके अलावा सीए स्टोर और ग्रेडिंग एंड पैकेजिंग हाउस का निर्माण और अपग्रेडेशन भी इसके तहत किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट का मकसद सेब उत्पादन को दोगुना कर बागवानों की आय को दोगुना करना है.
अब तक 29.50 लाख पौधे किए जा चुके आयात: इस परियोजना के तहत विदेशों से सेब और स्टोन फ्रूट के पौधे आयात किए जा रहे हैं. अब तक बागवानी विभाग 25.50 लाख पौधे, जिनमें अधिकतर सेब के पौधे हैं, आयात कर चुका है. इस बार भी बागवानी विभाग ने लगभग 20 लाख पौधे और रूट स्टॉक बागवानों को देने का लक्ष्य रखा है.
सरकार ने विश्व बैंक से मांगी एक साल की एक्सटेंशन: हिमाचल में लागू की गई बागवानी विकास परियोजना को लिए सरकार ने एक साल की एक्सटेंशन मांगी है. सरकार ने केंद्र के माध्यम से विश्व बैंक को पत्र लिखा है, जिसमें राज्य सरकार ने इस परियोजना का पूरा बजट खर्च नहीं होने का तर्क दिया है. इस परियोजना की अवधि जून 2023 में पूरी हो रही है. लेकिन, अभी भी करीब 30 फीसदी बजट बचा हुआ है.
बताया जा रहा है कि एक्सटेंशन मांगने से पहले विश्व बैंक की टीम भी हिमाचल आकर परियोजना की समीक्षा कर चुकी है. विश्व बैंक ने इस परियोजना को लेकर सकारात्मक रूख अपनाया है. यही वजह है कि राज्य सरकार इसमें एक्सटेंशन को लेकर आश्वस्त है. उधर हिमाचल बागवानी विभाग परियोजना के निदेशक सुदेश मोक्टा ने कहा कि परियोजना के तहत करीब 70 फीसदी कार्य पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि परियोजना के एक्सटेंशन को लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया है.
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