शिमला: यूं तो हिमाचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरी दुनिया में पहचान रखता है, लेकिन देवभूमि में कई जनजातियां ऐसी हैं जो इसे अद्भुत बनाती हैं. इस छोटे पहाड़ी राज्य में एक ऐसा समुदाय भी है जो आज भी अपने सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों का पालन कर रहा है.
दम तोड़ती संस्कृतियों और लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी परंपराओं को फिर से जीवित करने को लेकर हो रही जद्दोजहद के बीच ये समुदाय अपनी कला और संस्कृति को भूला नहीं है.
ईटीवी भारत हिमाचल आपको अपने खास प्रोग्राम में हिमाचल में विद्यमान ऐसी अद्भुत जनजातियों से रूबरू करवाएगा. आज बात करेंगे हिमाचल में बसे गद्दी समुदाय की...देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट...
देश में एक तरफ पश्चिमी सभ्यता का रंग हर किसी पर चढ़ा हुआ है. वहीं, हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक रूप से निवास करने वाली जनजातियों में से गद्दी जनजाति की एक बड़ी जनसंख्या है. गद्दी जनजाति की विशिष्ट भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाज और पहनावे के कारण अपनी अलग-पहचान है. गद्दी समुदाय ने अपनी पुरानी संस्कृति और विरासत को आज भी संजो कर रखा है.
ये भी पढ़ें-इस गांव में है दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, यहां चलता है देवता का राज!
समुदाय की सबसे बड़ी रोचक बात ये है कि इससे जुड़े लोग देश-विदेश में कहीं भी रह रहे हो, लेकिन वे अपनी कला और संस्कृति को नहीं भूले हैं.
गद्दी जनजाति भारत की सांस्कृतिक रूप से सबसे समृद्ध जनजातियों में से एक है. पशुपालन करने वाले ये लोग शुरू में ऊंचे पर्वतीय भागों में बसे रहे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इन लोगों ने धौलाधार की निचली धारों, घाटियों और समतल हिस्सों में भी ठिकाने बनाए. मौजूदा समय में ये जनजाति हिमाचल प्रदेश के चंबा और कांगड़ा जिले में बसे हुए हैं. कई गद्दी आज पालमपुर और धर्मशाला समेत कई कस्बों में भी अपने परिवारों के साथ रहते हैं.
तो आइए जानते हैं गद्दी समुदाय के बारे में:
गद्दियों की जीवन शैली
गद्दी अपनी साधारण जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं. वे स्नेही और नर्म स्वभाव के होते हैं. गद्दी ज्यादातर से स्थानीय बोलियों में बात करते हैं.
शादी के लिए लिखित समझौते की है परंपरा
गद्दी समुदाय में शादी से पहले वर-वधु के परिवारों के बीच एक लिखित समझौता होता है, जिसे स्थानीय भाषा में लखणौतरी कहा जाता है. समझौता होने के बाद शादी समारोह को कोई नहीं टाल सकता है. मान्यता है कि अगर समझौते के बाद शादी को किसी भी कारण रोका जाता है तो परिवारों को भगवान भोले नाथ के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है.
नुआला की सदियों से चली आ रही परंपरा
गद्दी समुदाय के लोगों में छोटी-बड़ी खुशी के मौके पर नुआला आयोजन की परंपरा संदियों से चली आ रही है. नुआला को शिव पूजन की एक अनूठी परंपरा माना जाता है. इसे परंपरागत गद्दी सांस्कृतिक उत्सव का एक प्रतीक भी माना जाता है. समुदाय में नुआले का आयोजन खासतौर पर बेटे की शादी के समय में आयोजित किया जाता है. शादी के समय दूल्हे को भगवान शिव का रूप दिया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में जोगणू कहा जाता है.
अपनी वेशभूषा और परंपराओं की बदौलत ये समुदाय देशभर में अपनी सबसे अलग पहचान बनाए हुए है. खासकर विवाह-शादी और स्थानीय आयोजनों में समुदाय की कला और संस्कृति की झलक नजदीक से निहारने का मौका मिलता है.
ये भी पढ़ें-हिमाचल के किले: वर्तमान पीढ़ी को बिना अपनी पहचान बताये जमींदोज हो रहा ऊना का सोलह सिंगी धार किला
जड़ से जुड़े हैं गद्दी
बात चाहे पहनावे की हो या खानपान की या फिर धर्म-कर्म, सब में गद्दी लोग आज भी अपने इतिहास से जुड़े हुए हैं. गद्दी समूह के पुरुष और महिलाएं दोनों कान में बालियां और भेड़ की ऊन और बकरी के बाल से बने कपड़े पहनते हैं. पुरुष गद्दी सिर पर पगड़ी पहनते हैं, जिसे वे साफा कहते हैं और डोरा के साथ एक प्रकार का चोला पहनते हैं. गद्दी स्त्रियां लुआंचड़ी पहनती हैं और नाक में नथ, माथे पर टीका और सिर पर दुपट्टा ओढ़ती हैं.
गद्दियों के आराध्य देव हैं महादेव शिव
गद्दी समुदाय के लोगों को भगवान भोले नाथ का अनुयायी माना जाता है. समुदाय का हर शुभ कार्य भगवान शिव के साथ जोड़कर किया जाता है. लोकल भाषा में चंबा भरमौर के गद्दी शिव को धूड़ू के नाम से पुकारते हैं. भरमौरी कैलाश मणिमहेश गद्दियों का सबसे पवित्र स्थान है.
कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी जीवन यापन में हैं माहिर
गद्दी समुदाय का मुख्य व्यवसाय भेड़पालन है. इन लोगों का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण होता है. गर्मियों में ये लोग पहाड़ों की ओर निकल जाते हैं. बरसात के मौसम में भी ये भेड़पालक पहाड़ों पर ही रहते हैं. सर्दियों के आते ही ये लोग अपने पशुओं के साथ मैदानी इलाकों की ओर रुख कर लेते हैं.
डंडारस-डंगी है गद्दी समुदाय का नृत्य
समुदाय में होने वाले विवाह, जातर-मेलों व अन्य समारोह के दौरान ये नृत्य किया जाता है, जिसमें पुरूष चोलू-डोरा व महिलाएं लुआंचडी-डोरा के साथ आभूषण पहनकर एक घेरे में नाचते हैं.
ये भी पढ़ें-श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है देवभूमि का पीरनिगाह मंदिर, इस उपाय से मिलती है कुष्ठ रोग से मुक्ति