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HPU में पीएचडी कोर्स में करवाया जा रहा फर्जी तरीके से प्रवेश, रिसर्च स्कॉलर इकाई ने पेश किए सबूत!

फर्जीवाड़ों को लेकर रिसर्च स्कॉलर इकाई ने सबूत भी पेश किए है और मांग की है कि इस मामले की न्यायिक जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए.

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Published : May 21, 2019, 5:18 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में नियमों के बाहर जा कर फर्जी तरीके से छात्रों को प्रवेश दिया जा रहा है. प्रवेश के लिए एचपीयू प्रशासन एचपीयू के ऑर्डिनेंस के साथ ही यूजीसी के नियमों तक को नजरअंदाज कर रहा है. एचपीयू रिसर्च स्कॉलर इकाई ने इस बात का खुलासा किया है कि एचपीयू एमसीए विभाग में ही अकेले पांच पीएचडी की डिग्रियां फर्जी तरीके से करवाई जा रही हैं.


इस मामले में एचपीयू के डीएस प्रो.अरविंद कालिया पर आरोप है कि जिन पांच छात्रों की एमसीए डिपार्टमेंट में पीएचडी में प्रवेश मिला है वो उन्हीं के अंडर पीएचडी कर रहे हैं. छात्र इकाई का आरोप है कि उन्होंने पहले भी एचपीयू प्रशासन के समक्ष वाणिज्य विभाग में एचपीयू के पूर्व कुलपति के बेटे कर्ण गुप्ता को दर्शन निष्पात में फर्जी प्रवेश दे कर उसकी पीएचडी की थीसिस 11 महीने में जमा करवा दी गई, जबकी एचपीयू के ऑर्डिनेंस 16.13(a), के मुताबिक पीएचडी की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए, लेकिन ऑर्डिनेंस को दरकिनार कर प्रवेश दिया गया. उन्होंने विवि के अधिष्ठाता अध्ययन अरविंद कालिया पर भी नियमों को ताक पर रख कर अपने चहेते को पीएचडी में प्रवेश देने के आरोप लगाए.

रिसर्च स्कॉलर इकाई ने लगाए फर्जीवाड़े के आरोप


रिसर्च स्कॉलर इकाई के सचिव नोवल ठाकुर ने कहा कि शिक्षकों के पीएचडी में प्रवेश के लिए नियम तय हैं और पीएचडी की शिक्षकों के लिए निर्धारित सीट पर प्रवेश के लिए पहले उसे विज्ञापित किया जाता है, लेकिन एचपीयू ने ऐसा नहीं किया. डीएस ने एक निजी महाविद्यालय में पढ़ा रही एक शिक्षिका को एमसीए विभाग में पीएचडी में प्रवेश दिया और इसी तरह का एक और मामला जिसमें एक अन्य निजी कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक को पोस्ट प्रैक्टिस के आधार पर एमसीए विभाग पीएचडी में पीएचडी में प्रवेश दिया.


एक अन्य मामले में डीएस ने एमसीए में एक ऐसे छात्र को प्रवेश दिया जिसने ग्रेजुएशन में ना तो गणित पड़ा ना साइंस ऐसे छात्र को प्रवेश दिया. एचपीयू में ही आईटी इंचार्ज के रूप ने तैनात एक अन्य व्यक्ति को भी डीएस ने ही नियमों को ताक में रख कर पीएचडी में प्रवेश दिया है. इस व्यक्ति में वर्ष 2005 में पीएचडी प्रवेश के लिए फॉर्म भरा, लेकिन 6 अक्टूबर 2008 को इनकी एमसीए की डिग्री पूरी हुई और इन्होंने 18-4-2007 ने पीएचडी में भी एचपीयू में प्रवेश भी ले लिया.


इन सभी फर्जीवाड़ों को लेकर रिसर्च स्कॉलर इकाई ने सबूत भी पेश किए है और मांग की है कि इस मामले की न्यायिक जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए. एचपीयू डीएस जिनपर यह सब आरोप लगे हैं उन्होंने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि जो भी पीएचडी पर प्रवेश उनके आदेशों पर दिए गए हैं वो सभी नियमों के तहत हैं. किसी भी तरह का फर्जीवाड़ा पीएचडी में प्रवेश को लेकर नहीं हुआ है बाकी वो सभी तथ्यों को जांचने के बाद ही अपनी बात विस्तार से रखेगें.

ये भी पढ़ें- 10th और 12वीं में फेल हुए छात्रों के लिए सुनहरा मौका, 1 जून से एग्जाम लेगा बोर्ड

शिमला: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में नियमों के बाहर जा कर फर्जी तरीके से छात्रों को प्रवेश दिया जा रहा है. प्रवेश के लिए एचपीयू प्रशासन एचपीयू के ऑर्डिनेंस के साथ ही यूजीसी के नियमों तक को नजरअंदाज कर रहा है. एचपीयू रिसर्च स्कॉलर इकाई ने इस बात का खुलासा किया है कि एचपीयू एमसीए विभाग में ही अकेले पांच पीएचडी की डिग्रियां फर्जी तरीके से करवाई जा रही हैं.


इस मामले में एचपीयू के डीएस प्रो.अरविंद कालिया पर आरोप है कि जिन पांच छात्रों की एमसीए डिपार्टमेंट में पीएचडी में प्रवेश मिला है वो उन्हीं के अंडर पीएचडी कर रहे हैं. छात्र इकाई का आरोप है कि उन्होंने पहले भी एचपीयू प्रशासन के समक्ष वाणिज्य विभाग में एचपीयू के पूर्व कुलपति के बेटे कर्ण गुप्ता को दर्शन निष्पात में फर्जी प्रवेश दे कर उसकी पीएचडी की थीसिस 11 महीने में जमा करवा दी गई, जबकी एचपीयू के ऑर्डिनेंस 16.13(a), के मुताबिक पीएचडी की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए, लेकिन ऑर्डिनेंस को दरकिनार कर प्रवेश दिया गया. उन्होंने विवि के अधिष्ठाता अध्ययन अरविंद कालिया पर भी नियमों को ताक पर रख कर अपने चहेते को पीएचडी में प्रवेश देने के आरोप लगाए.

रिसर्च स्कॉलर इकाई ने लगाए फर्जीवाड़े के आरोप


रिसर्च स्कॉलर इकाई के सचिव नोवल ठाकुर ने कहा कि शिक्षकों के पीएचडी में प्रवेश के लिए नियम तय हैं और पीएचडी की शिक्षकों के लिए निर्धारित सीट पर प्रवेश के लिए पहले उसे विज्ञापित किया जाता है, लेकिन एचपीयू ने ऐसा नहीं किया. डीएस ने एक निजी महाविद्यालय में पढ़ा रही एक शिक्षिका को एमसीए विभाग में पीएचडी में प्रवेश दिया और इसी तरह का एक और मामला जिसमें एक अन्य निजी कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक को पोस्ट प्रैक्टिस के आधार पर एमसीए विभाग पीएचडी में पीएचडी में प्रवेश दिया.


एक अन्य मामले में डीएस ने एमसीए में एक ऐसे छात्र को प्रवेश दिया जिसने ग्रेजुएशन में ना तो गणित पड़ा ना साइंस ऐसे छात्र को प्रवेश दिया. एचपीयू में ही आईटी इंचार्ज के रूप ने तैनात एक अन्य व्यक्ति को भी डीएस ने ही नियमों को ताक में रख कर पीएचडी में प्रवेश दिया है. इस व्यक्ति में वर्ष 2005 में पीएचडी प्रवेश के लिए फॉर्म भरा, लेकिन 6 अक्टूबर 2008 को इनकी एमसीए की डिग्री पूरी हुई और इन्होंने 18-4-2007 ने पीएचडी में भी एचपीयू में प्रवेश भी ले लिया.


इन सभी फर्जीवाड़ों को लेकर रिसर्च स्कॉलर इकाई ने सबूत भी पेश किए है और मांग की है कि इस मामले की न्यायिक जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए. एचपीयू डीएस जिनपर यह सब आरोप लगे हैं उन्होंने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि जो भी पीएचडी पर प्रवेश उनके आदेशों पर दिए गए हैं वो सभी नियमों के तहत हैं. किसी भी तरह का फर्जीवाड़ा पीएचडी में प्रवेश को लेकर नहीं हुआ है बाकी वो सभी तथ्यों को जांचने के बाद ही अपनी बात विस्तार से रखेगें.

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Intro:हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में नियमों के बाहर जा कर फर्जी तरिके से प्रवेश छात्रों को दिया जा रहा है। प्रवेश के लिए एचपीयू प्रशासन एचपीयू के ऑर्डिनेंस के साथ ही यूजीसी के नियमों तक को नजरअंदाज कर रहा है। एचपीयू रिसर्च स्कॉलर इकाई ने इस बात का ख़ुलासा किया है कि एचपीयू एमसीए विभाग में ही अकेले पांच पीएचडी की डिग्रियां फर्जी तरीके से करवाई जा रही है। इस मामले में एचपीयू के डीएस प्रो.अरविंद कालिया पर आरोप है कि जिन पांच छात्रों की एमसीए डिपार्टमेंट में पीएचडी में प्रवेश मिला है वो उन्ही के अंडर पीएचडी कर रहे है।।


Body:इकाई का आरोप है कि उन्होंने पहले भी एचपीयू प्रशासन के समक्ष वाणिज्य विभाग में एचपीयू के पूर्व कुलपति के बेटे कर्ण गुप्ता को दर्शन निष्पात में फर्जी प्रवेश दे कर उसकी पीएचडी की थीसिस 11 महीने में जमा करवा दी गई जबकी एचपीयू के ऑर्डिनेंस 16.13(a),के मुताबिक पीएचडी की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए, लेकिन ऑर्डिनेंस को दरकिनार कर प्रवेश दिया गया। उन्होंने विवि के अधिष्ठाता अध्ययन अरविंद कालिया पर भी नियमों को ताक पर रख कर अपने चहेते को पीएचडी में प्रवेश देने के आरोप लगाए। रिसर्च स्कॉलर इकाई के सचिव नोवल ठाकुर ने कहा कि शिक्षकों के पीएचडी में प्रवेश के लिए नियम तय है और पीएचडी की शिक्षकों के लिए निर्धारित सीट पर प्रवेश के लिए पहले उसे विज्ञापित किया जाता है लेकिन एचपीयू ने ऐसा नहीं किया। डीएस ने एक निजी महाविद्यालय में पढ़ा रही एक शिक्षका को एमसीए विभाग में पीएचडी में प्रवेश दिया ओर इसी तरह का एक ओर मामला जिसमें एक अन्य निजी कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक को पास्ट प्रैक्टिस के आधार पर एमसीए विभाग पीएचडी में पीएचडी में प्रवेश दिया। एक अन्य मामले में डीएस ने एमसीए में एक ऐसे छात्र को प्रवेश दिया जिसने ग्रेजुएशन में ना तो गणित पड़ा ना साइंस ऐसे छात्र को प्रवेश दिया। वहीं एचपीयू में ही आईटी इंचार्ज के रूप ने तैनात एक अन्य व्यक्ति को भी डीएस ने ही नियमों को ताक में रख कर पीएचडी में प्रवेश दिया है । इस व्यक्ति में वर्ष 2005 में पीएचडी प्रवेश के लिए फॉर्म भरा लेकिन 6 अक्टूबर 2008 को इनकी एमसीए की डिग्री पूरी हुई और इन्होंने 18-4-2007 ने पीएचडी में भी एचपीयू में प्रवेश भी ले लिया।


Conclusion:इन सभी फर्जीवाड़ों को लेकर रिसर्च स्कॉलर इकाई ने सबूत भी पेश किए है और मांग की है कि इस मामले की न्यायिक जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए। वहीं एचपीयू डीएस जिनपर यह सब आरोप लगे है उन्होंने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि जो भी पीएचडी पर प्रवेश उनके आदेशों पर दिए गए है वो सभी नियमों के तहत है। किसी भी तरह का फर्जीवाड़ा पीएचडी में प्रवेश को लेकर नहीं हुआ है बाकी वो सभी तथ्यों को जांचने के बाद ही अपनी बात विस्तार से रखेगें।
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