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हिमाचल में ओपीएस लागू होने पर कर्मचारी नहीं देंगे पेंशन के लिए कंट्रीब्यूशन, आधी सैलरी के बराबर मिलेगी पेंशन - ops himachal news

हिमाचल में ओल्ड पेंशन लागू करने का फैसला सरकार ने लिया है. जल्द ही इसकी अधिसूचना भी सरकार जारी कर देगी. ओल्ड पेंशन के क्या लाभ हैं इस बारे में आपको बताएंगे. साथ ही बताएंगे कि आखिर क्यों घाटे का सौदा है एनपीएस? पढे़ं पूरी खबर...(OPS is implemented in Himachal) (OPS in Himachal) (benefits of old pension)

OPS in Himachal
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Published : Jan 21, 2023, 6:56 PM IST

शिमला: सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार हिमाचल में ओल्ड पेंशन लागू करने का फैसला ले चुकी है. कैबिनेट में फैसला लेने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन देने का ऐलान कर चुके हैं. जल्द ही इसकी अधिसूचना भी सरकार जारी कर देगी. आखिर क्यों कर्मचारी ओल्ड पेंशन मांग रहा है, यह सवाल सबके जहन में है. साधारण सी भाषा में ओपीएस लागू होने पर किसी भी कर्मचारी को पेंशन के लिए अपनी ओर से कंट्रीब्यूशन नहीं देना पड़ेगा, जबकि सरकार रियारमेंट के बाद कर्मचारी को उसके आधे वेतन के बराबर पेंशन देगी.

ओल्ड पेंशन के हैं ये लाभ: हिमाचल के कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस की बड़ी लड़ाई लड़ी है, इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ओपीएस बाद में लागू की गई न्यू पेंशन स्कीम या एनपीएस से हर मायने में बेहतर है. ओल्ड पेंशन स्कीम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके तहत कर्मचारियों को अपनी पेंशन के लिए सीपीएफ यानी कंट्रीब्यूटरी पेंशन फंड में पैसा जमा नहीं कराना पड़ेगा. ओल्ड पेंशन में कर्मचारियों का जीपीएफ यानि जनरल प्रोविडेंट फंड का खाता खुलेगा जिसमें कर्मचारी अपनी हैसियत के अनुसार पैसा जमा करवाएगा और इस पैसे को कर्मचारी वापस ले सकता है और सरकार ब्याज भी कर्मचारी को देगी.

कर्मचारी पीएफ के तौर पर राशि जमा करवाते हैं जिसको वह कभी भी ले सकेगा. अपनी सर्विस के दौरान इसका 75 फीसदी हिस्सा कर्मचारी निकाल सकेगा, हालांकि इसमें 25 फीसदी हिस्सा पीएफ अकाउंट में रखना है. रिटायरमेंट के बाद यह सारा पैसा कर्मचारी निकाल सकता है, जिस पर ब्याज भी मिलेगा. यही नहीं रिटायरमेंट के बाद आखिरी समय का जो वेतन है उसके आधे के बराबर पेंशन कर्मचारी को मिलेगी. बड़ी बात यह है कि पेंशन की इस राशि का भुगतान सरकार खुद करेगी. यानी कर्मचारी को इसके लिए कंट्रीब्यूट नहीं करना पड़ेगा. यही नहीं कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन के साथ महंगाई भत्ता भी मिलेगा.

इसलिए घाटे का सौदा है एनपीएस: कर्मचारी एनपीएस को घाटे का सौदा मानते हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि यह एक अंशदायी पेंशन स्कीम है, यानी कर्मचारी अपनी सर्विस के दौरान हर माह अपने वेतन का 10 फीसदी हिस्सा कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड सीपीएफ के तहत देना होता है. इसके साथ ही राज्य सरकार अपनी ओर से कर्मचारी के वेतन का 14 फीसदी योगदान करती है. मौजूदा समय में यह राशि पीएफआरडीए यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी के पास जमा हो रही है, जहां इस राशि का निवेश किया जा रहा है.

नई पेंशन स्कीम के तहत रिटायरमेंट के बाद कंट्रीब्यूशन के तौर पर जमा राशि का 60 फीसदी कर्मचारी ले सकता है जबकि बाकी 40 फीसदी पैसा निवेश के लिए रहता है. यह पोर्टफोलियो में निवेश की जाती है, जिसके रिटर्न के तौर पर मिली राशि को पेंशन के तौर पर रिटायर्ड कर्मचारी को दिया जा रहा है. यही नहीं एनपीएस में सीपीएफ के तहत जमा राशि का केवल 25 फीसदी हिस्सा कर्मचारी कुछ जरूरी काम के लिए ले सकते हैं. जिसको बाद में ब्याज सहित जमा करवाना होता है. एनपीएस में पेंशन की राशि पोर्टफोलियो में निवेश के प्रॉफिट पर निर्भर करती है. यही वजह है कि कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं.

हिमाचल सहित चार राज्य लागू कर चुके हैं ओल्ड पेंशन: अपने कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन देने का फैसला चार राज्य कर चुके हैं. इनमें छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब के बाद अब हिमाचल भी शामिल हो गया है. हिमाचल में कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन की बड़ी लड़ाई लड़ी है. हिमाचल में एनपीएस 2003 में लागू की गई थी. हालांकि आरंभ में कर्मचारी इसके नफा नुकसान को भांफ नहीं पाए, लेकिन जैसे जैसे कर्मचारी रिटायरमेंट की ओर बढ़ने लगे तो उनको इसके घाटे का अहसास होने लगा. कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद नाम मात्र की राशि पेंशन के तौर पर मिलने लगी. एनपीएस का घाटा सबसे ज्यादा उन कर्मचारियों को है जो कि अधिक आयु में नौकरी पर लगते हैं. हिमाचल में अधिकतर कर्मचारी अब अधिक आयु में ही लग रहे हैं ऐसे में रिटायरमेंट के बाद उनको नाम मात्र की पेंशन मिल रही है. हिमाचल में मौजूदा समय में 13200 कर्मचारी एनपीएस के रिटायर हो चुके हैं, जिनमें अधिकतर को बहुत ही कम पेंशन मिल रही है.

1.36 लाख कर्मचारियों को मिलेगा ओपीएस का फायदा: हिमाचल में एनपीएस के तहत लगे करीब 1.36 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलेगा. पहले से रिटायर हो चुके करीब 13200 कर्मचारियों को भी इसका फायदा मिलेगा. ओपीएस बहाल करने के लिए गठित पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के हिमाचल महामंत्री एलडी चौहान का कहना है कि कर्मचारी 2015 तक पूरी तरह से समझ गए थे कि एनपीएस घाटे का सौदा है. यही वजह है उन लोगों ने ओपीएस बहाली को लेकर 2015 में आंदोलन शुरू किया था, जिसके बाद हिमाचल सरकार ने डीसीआरजी यानी डेथ कम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी बहाल की. इसके बाद सरकार पर दबाव बनाया गया और सरकार ने अपंगता और मृत्यु होने की स्थिति में कर्मचारियों के लिए पेंशन की सुविधा भी. लेकिन कई अन्य लाभ ओपीएस के ही थे. चार पांच साल में यह एक बड़ी लड़ाई बनी और आखिर में सरकार बनने पर ओपीएस बहाल कर दी गई है.

एलडी चौहान कहते हैं कि कर्मचारियों को ओपीएस के कई लाभ मिलेंगे जो कि एनपीएस में नहीं थे. कर्मचारियों को एक सम्मानजनक पेंशन ओपीएस में मिलने लगेगी. कर्मचारियों को इसके लिए कोई कंट्रीब्यूशन नहीं देना पड़ेगा. वहीं ओपीएस में जीपीएफ के तहत जमा राशि पर ब्याज मिलेगा और कर्मचारी इसको वापस ले सकेंगे. कर्मचारियों और उनका परिवार को सामाजिक सुरक्षा ओल्ड पेंशन से मिलने लगेगी. यही वजह है कि हर कर्मचारी आज सुखविंदर सिंह सरकार के इस ऐतिहासिक फैसला का स्वागत कर रहा है. इसके लिए कर्मचारी सरकार के आभारी हैं.

ये भी पढे़ं: राजस्व विभाग में सुधार की जरूरत, रजिस्ट्रेशन के समय लोगों को आ रही समस्याएं: जगत सिंह नेगी

शिमला: सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार हिमाचल में ओल्ड पेंशन लागू करने का फैसला ले चुकी है. कैबिनेट में फैसला लेने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन देने का ऐलान कर चुके हैं. जल्द ही इसकी अधिसूचना भी सरकार जारी कर देगी. आखिर क्यों कर्मचारी ओल्ड पेंशन मांग रहा है, यह सवाल सबके जहन में है. साधारण सी भाषा में ओपीएस लागू होने पर किसी भी कर्मचारी को पेंशन के लिए अपनी ओर से कंट्रीब्यूशन नहीं देना पड़ेगा, जबकि सरकार रियारमेंट के बाद कर्मचारी को उसके आधे वेतन के बराबर पेंशन देगी.

ओल्ड पेंशन के हैं ये लाभ: हिमाचल के कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस की बड़ी लड़ाई लड़ी है, इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ओपीएस बाद में लागू की गई न्यू पेंशन स्कीम या एनपीएस से हर मायने में बेहतर है. ओल्ड पेंशन स्कीम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके तहत कर्मचारियों को अपनी पेंशन के लिए सीपीएफ यानी कंट्रीब्यूटरी पेंशन फंड में पैसा जमा नहीं कराना पड़ेगा. ओल्ड पेंशन में कर्मचारियों का जीपीएफ यानि जनरल प्रोविडेंट फंड का खाता खुलेगा जिसमें कर्मचारी अपनी हैसियत के अनुसार पैसा जमा करवाएगा और इस पैसे को कर्मचारी वापस ले सकता है और सरकार ब्याज भी कर्मचारी को देगी.

कर्मचारी पीएफ के तौर पर राशि जमा करवाते हैं जिसको वह कभी भी ले सकेगा. अपनी सर्विस के दौरान इसका 75 फीसदी हिस्सा कर्मचारी निकाल सकेगा, हालांकि इसमें 25 फीसदी हिस्सा पीएफ अकाउंट में रखना है. रिटायरमेंट के बाद यह सारा पैसा कर्मचारी निकाल सकता है, जिस पर ब्याज भी मिलेगा. यही नहीं रिटायरमेंट के बाद आखिरी समय का जो वेतन है उसके आधे के बराबर पेंशन कर्मचारी को मिलेगी. बड़ी बात यह है कि पेंशन की इस राशि का भुगतान सरकार खुद करेगी. यानी कर्मचारी को इसके लिए कंट्रीब्यूट नहीं करना पड़ेगा. यही नहीं कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन के साथ महंगाई भत्ता भी मिलेगा.

इसलिए घाटे का सौदा है एनपीएस: कर्मचारी एनपीएस को घाटे का सौदा मानते हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि यह एक अंशदायी पेंशन स्कीम है, यानी कर्मचारी अपनी सर्विस के दौरान हर माह अपने वेतन का 10 फीसदी हिस्सा कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड सीपीएफ के तहत देना होता है. इसके साथ ही राज्य सरकार अपनी ओर से कर्मचारी के वेतन का 14 फीसदी योगदान करती है. मौजूदा समय में यह राशि पीएफआरडीए यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी के पास जमा हो रही है, जहां इस राशि का निवेश किया जा रहा है.

नई पेंशन स्कीम के तहत रिटायरमेंट के बाद कंट्रीब्यूशन के तौर पर जमा राशि का 60 फीसदी कर्मचारी ले सकता है जबकि बाकी 40 फीसदी पैसा निवेश के लिए रहता है. यह पोर्टफोलियो में निवेश की जाती है, जिसके रिटर्न के तौर पर मिली राशि को पेंशन के तौर पर रिटायर्ड कर्मचारी को दिया जा रहा है. यही नहीं एनपीएस में सीपीएफ के तहत जमा राशि का केवल 25 फीसदी हिस्सा कर्मचारी कुछ जरूरी काम के लिए ले सकते हैं. जिसको बाद में ब्याज सहित जमा करवाना होता है. एनपीएस में पेंशन की राशि पोर्टफोलियो में निवेश के प्रॉफिट पर निर्भर करती है. यही वजह है कि कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं.

हिमाचल सहित चार राज्य लागू कर चुके हैं ओल्ड पेंशन: अपने कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन देने का फैसला चार राज्य कर चुके हैं. इनमें छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब के बाद अब हिमाचल भी शामिल हो गया है. हिमाचल में कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन की बड़ी लड़ाई लड़ी है. हिमाचल में एनपीएस 2003 में लागू की गई थी. हालांकि आरंभ में कर्मचारी इसके नफा नुकसान को भांफ नहीं पाए, लेकिन जैसे जैसे कर्मचारी रिटायरमेंट की ओर बढ़ने लगे तो उनको इसके घाटे का अहसास होने लगा. कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद नाम मात्र की राशि पेंशन के तौर पर मिलने लगी. एनपीएस का घाटा सबसे ज्यादा उन कर्मचारियों को है जो कि अधिक आयु में नौकरी पर लगते हैं. हिमाचल में अधिकतर कर्मचारी अब अधिक आयु में ही लग रहे हैं ऐसे में रिटायरमेंट के बाद उनको नाम मात्र की पेंशन मिल रही है. हिमाचल में मौजूदा समय में 13200 कर्मचारी एनपीएस के रिटायर हो चुके हैं, जिनमें अधिकतर को बहुत ही कम पेंशन मिल रही है.

1.36 लाख कर्मचारियों को मिलेगा ओपीएस का फायदा: हिमाचल में एनपीएस के तहत लगे करीब 1.36 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलेगा. पहले से रिटायर हो चुके करीब 13200 कर्मचारियों को भी इसका फायदा मिलेगा. ओपीएस बहाल करने के लिए गठित पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के हिमाचल महामंत्री एलडी चौहान का कहना है कि कर्मचारी 2015 तक पूरी तरह से समझ गए थे कि एनपीएस घाटे का सौदा है. यही वजह है उन लोगों ने ओपीएस बहाली को लेकर 2015 में आंदोलन शुरू किया था, जिसके बाद हिमाचल सरकार ने डीसीआरजी यानी डेथ कम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी बहाल की. इसके बाद सरकार पर दबाव बनाया गया और सरकार ने अपंगता और मृत्यु होने की स्थिति में कर्मचारियों के लिए पेंशन की सुविधा भी. लेकिन कई अन्य लाभ ओपीएस के ही थे. चार पांच साल में यह एक बड़ी लड़ाई बनी और आखिर में सरकार बनने पर ओपीएस बहाल कर दी गई है.

एलडी चौहान कहते हैं कि कर्मचारियों को ओपीएस के कई लाभ मिलेंगे जो कि एनपीएस में नहीं थे. कर्मचारियों को एक सम्मानजनक पेंशन ओपीएस में मिलने लगेगी. कर्मचारियों को इसके लिए कोई कंट्रीब्यूशन नहीं देना पड़ेगा. वहीं ओपीएस में जीपीएफ के तहत जमा राशि पर ब्याज मिलेगा और कर्मचारी इसको वापस ले सकेंगे. कर्मचारियों और उनका परिवार को सामाजिक सुरक्षा ओल्ड पेंशन से मिलने लगेगी. यही वजह है कि हर कर्मचारी आज सुखविंदर सिंह सरकार के इस ऐतिहासिक फैसला का स्वागत कर रहा है. इसके लिए कर्मचारी सरकार के आभारी हैं.

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