शिमला: हिमाचल में औषधीय, केसर, हींग आदि फसलों के उत्पादन में वृद्धि की संभावनाओं पर एक प्रस्ताव तैयार करने के लिए मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने शोध एवं विकास संस्थानों को निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि प्रदेश में इनके माध्यम से किसानों की आर्थिकी स्थिति में बदलाव आ सकता है. उन्होंने उच्च उत्पादकता की क्षमता रखने वाली विभिन्न फसलों के उत्पादन पर भी प्राथमिकता देने को कहा है.
मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की ओर से जैव प्रौद्योगिकी विभाग से 4.32 करोड़ रुपये की ‘जैव प्रौद्योगिकी में कौशल विज्ञान कार्यक्रम’ परियोजना स्वीकृत की गई है. तीन वर्ष की अवधि वाली इस कौशल विकास परियोजना के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत विभिन्न उपकरणों एवं तकनीकों की जानकारी प्रदान की जाएगी. इसका लाभ जमा दो उत्तीर्ण विद्यार्थी व जैव प्रौद्योगिकी में स्नातक उठा सकेंगे.
मुख्य सचिव ने पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग द्वारा आयोजित राज्य जैव प्रौद्योगिकी टास्क फोर्स की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश देश के उन छह राज्यों में शामिल है, जहां इस परियोजना को कार्यान्वित किया जाएगा.
डॉ. बाल्दी ने कहा कि फसलों और पशुओं से जुड़े कृषकों के मुद्दों का जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से समाधान किया जाना चाहिए. उन्नत प्रजाति की फसलें समय की मांग हैं, इसलिए इन किस्मों के बीजों के विकास और किसानों तक उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने विभिन्न फसलों की मौजूदा किस्मों में सुधार पर भी बल दिया.
डॉ. बाल्दी ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग को एक उप-समूह गठित करने के निर्देश दिए. इसमें शोध एवं विकास संस्थान, फील्ड विस्तार कार्यालय और कृषकों को सम्मिलित किया जाए ताकि किसानों के उत्पादों सम्बन्धी मुद्दों को समुचित प्रकार से सामने लाकर शोध के जरिए उनका समाधान किया जा सके. उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी नीति-2014 में सुधार के लिए भी एक अन्य उप-समूह गठित करने के लिए कहा.
बैठक में जानकारी दी गई कि आईसीएआर-सीपीआरआई ने प्रदेश की जलवायु के अनुकूल आलू की नई किस्में तैयार की हैं, जिन्हें जल्द ही प्रदेश के किसानों के बीच प्रोत्साहित करने के प्रयास होने चाहिए.
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