ठियोग: हिमाचल प्रदेश की मुख्य आर्थिकी का साधन सेब है और अब कोरोना संकट के बीच प्रदेश में सेब सीजन भी शुरू हो गया है. लगभग 400 करोड़ की आर्थिकी को मजबूत करने वाले सेब की दस्तक मंडियों में शुरू हो गई है, लेकिन इसके साथ ही सरकार की ओर से बागवानों को दिए जाने वाले आश्वासन पर लोगों का भरोसा भी डगमगाने लगा है.
शिमला की पराला मंडी में आए बागवानों से जब ईटीवी ने बात की तो उन्होंने कहा कि मंडियों में कोरोना माहामारी के दौर में भी सोशल डिस्टेंसिंग की पालना नहीं हो रही है. कई लोग मंडियों में बिना मास्क के ही घूम रहे हैं. यहां तक की मंडियों से लोड किए जा रहे सेब तक को सेनिटाइज करने की व्यवस्था नहीं है.
मंडियों में अर्ली वैरायटी के सेब टाइडमैन ओर इसके अलावा नाशपती और प्लम जैसे फलों को लेकर बागवान पहुंच रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से बागवानों के हितों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. कोटखाई के एक बागवान का कहना है कि इस साल सेब सहित अन्य फलों के दाम अच्छे नहीं मिल रहे.
पिछली बार प्लम 200 रुपये बॉक्स तक बिका था, लेकिन इस सीजन के शुरुआती में प्लम को 100 रुपये दाम मिल रहा है. उन्होंने कहा कि सेब और नाशपती पिछले साल इस समय तीन हजार तक बिकी, लेकिन इस बार दो हजार के आसपास बिक रही है.
सेब सीजन में मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए सरकार के प्रयासों पर सवाल उठाते हुए बागवानों ने कहा कि नेपाल से मजदूरों को लाने में सरकार अभी तक विफल रही है. जो मजदूर बिहार से लाने के बात सरकार कर रही है उसका कोई फायदा बागवानों को नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि बिहार के मजदूरों ने सेब का काम किया ही नहीं तो कैसे उन्हें बागीचों में काम करने दिया जाए. बिहार से लाए जाने वाले मजदूरों को सेब सीजन का कोई अनुभव नहीं होगा. यहां तक कि ये मजदूर सेब को सही तरीके से ढो भी नहीं सकते.
बागवानों का कहना है कि मंडियों में आढ़ती तो हैं, लेकिन कोई भी आढ़ती उनके पैसे देने को हामी नहीं भर रहा. पिछले साल के पैसे भी अभी तक नही मिले हैं तो कैसे इस साल बगवान सेब बेच दे. सरकार की ओर से भी कोई गारंटी नहीं मिली है. सभी बागवान अपनी फसल को लेकर चिंतित हैं.
बागवानों का कहना है कि अगर कोरोना महामारी की बात की जाए तो बागवानों को डर है कि मंडियों में भीड़ बढ़ने से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाएगा. सरकार ने शुरुआत में ही कह दिया था कि सेब सीजन शुरू होने पर मंडियों को सेनिटाइज किया जाएगा, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिख रही.
मंडी पहुंच रहे बागवानों में कोरोना को लेकर डर बना हुआ है. अगर किसी को मंडी में किसी को कोरोना हो गया तो ये गभीर हो सकता है, ऐसे में सरकार को अभी से एहतियात बरतने चाहिए.
बागवान मजदूरों की समस्या से तो जूझ ही रहे हैं वहीं, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से भी महंगाई का बोढ बागवानों पर पड़ने वाला है. ऐसे में देखना ये होगा कि सरकार आने वाले दिनों में बागवानों की इस समस्या का कैसे समाधान करती है.