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स्लो पॉइजन है कर्ज का मर्ज, क्या सुखविंदर सरकार के श्वेत पत्र से निकलेगा कर्ज के जाल को काटने का फार्मूला ?

हिमाचल प्रदेश का कर्ज का बोझ साल दर साल बढ़ रहा है. आलम ये है कि 75 लाख की आबादी वाले प्रदेश में कर्ज का बोझ 75 हजार करोड़ के पार पहुंच चुका है. हर हिमाचली आने वाले वक्त में एक लाख का कर्जदार होगा. कर्ज लेने की यही रफ्तार रही तो जल्द ही हिमाचल पर एक लाख करोड़ का कर्ज होगा. हिमाचल प्रदेश में कर्ज के इस जाल को लेकर क्या है हिमाचल का हाल, जानने के लिए पढ़ें पूरी ख़बर

हिमाचल पर बढ़ता कर्ज का बोझ
हिमाचल पर बढ़ता कर्ज का बोझ
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Published : May 12, 2023, 1:55 PM IST

शिमला: हिमाचल सरकार भयावह रूप से कर्ज के जाल में फंस चुकी है. कर्ज एक ऐसा स्लो पॉइजन है, जिससे कोई भी राज्य धीरे-धीरे आर्थिक मौत की तरफ बढ़ता जाता है. हिमाचल भी कर्ज के जाल में उलझ चुका है. सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह का एक बयान खूब चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिमाचल के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं. बेशक ये चेतावनी थी, लेकिन हकीकत में हिमाचल की स्थितियां आर्थिक इमरजेंसी जैसी है. राज्य पर 76 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज है. हिमाचल की आबादी 75 लाख है.

पहली बार आएगा श्वेत पत्र- बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया था कि प्रत्येक हिमाचली पर 92 हजार रुपए से अधिक का कर्ज है. चूंकि हिमाचल के पास आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं और राज्य केंद्र की मदद पर निर्भर है, लिहाजा प्रदेश अकेले अपने बूते इस कठिन दौर से नहीं निकल सकता. इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार ने राज्य की आर्थिक हालत पर श्वेत पत्र लाने का ऐलान किया है. इसके लिए सरकार ने डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई है. हिमाचल के इतिहास में पहली बार प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र लाया जा रहा है. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या सुखविंदर सरकार के श्वेत पत्र में हिमाचल के कर्ज का जाल काटने का कोई उपाय निकलेगा? इससे पहले कि उपायों की चर्चा करें, ये देखना जरूरी है कि हिमाचल का कर्ज पहाड़ जैसा क्यों हो गया ? क्या कारण है कि लिए गए लोन का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है ?

हिमाचल और कर्ज का मर्ज
हिमाचल और कर्ज का मर्ज

कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी सरकार लेती है कर्ज- हिमाचल पर वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल 45,297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23,333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी पांच साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का दस प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले दो से पांच साल की अवधि में कुल लोन का चालीस फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले पांच साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.

बजट के 100 रुपये किस-किस पर खर्च होते हैं ?
बजट के 100 रुपये किस-किस पर खर्च होते हैं ?

एक दशक में ढाई गुणा बढ़ा कर्ज- हिमाचल प्रदेश में दस साल के अंतराल में ही कर्ज का बोझ ढाई गुणा से अधिक हो गया है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के समय जब 2012 में भाजपा सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. अब कर्ज का बोझ 76 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, अन्य वित्तीय लाभ और पेंशनर्स की पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है. वर्ष 2017-18 में वेतन और मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए का व्यय हुआ था. तब पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए चुकाए. फिर 2018-19 में वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. वित्तीय वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च 12192.52 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.

3 साल में कितना ऋण लिया
3 साल में कितना ऋण लिया

एक-दूसरे पर फोड़ते हैं कर्ज का ठीकरा- हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बारी-बारी से सत्ता में आती हैं. दोनों ही दल कर्ज का ठीकरा एक-दूजे पर फोड़ते हैं. पहले बीजेपी सरकार विपक्षी दल कांग्रेस के सिर पर कर्ज का ठीकरा फोड़ती थी और अब जब बीजेपी विपक्ष में है तो कांग्रेस सरकार प्रदेश को कर्ज के दलदल में डुबोने का आरोप बीजेपी पर लगाती है.

कर्ज के ब्याज की अदायगी भी मुसीबत- हिमाचल में हर साल बजट पेश करने के बाद ये तथ्य सामने आता है कि सरकार को लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए सौ रुपए के मानक में दस रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अमूमन राज्य ससरकार एक समय में एक तिमाही में डेढ़ हजार रुपए से ढाई हजार रुपए कर्ज लेती है। सुखविंदर सिंह सरकार के पहले बजट के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार वित्त वर्ष 2023-24 में 11068 करोड़ का कर्ज चुकाएगी. इसमें से 5562 करोड़ रुपए तो सिर्फ लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर खर्च होगा. कर्ज की किश्तों के रूप में 5506 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. वित्त वर्ष 2023-24 के अंत में राज्य पर 87 हजार करोड़ का लोन हो जाएगा और इसी प्रकार 2024-25 तक हिमाचल का कर्ज एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा.

वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च होता है बजट का बड़ा हिस्सा
वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च होता है बजट का बड़ा हिस्सा

श्वेत पत्र लाएगी हिमाचल सरकार- श्वेत पत्र में सुखविंदर सिंह सरकार से किसी जादू की उम्मीद कम है. व्हाइट पेपर में सरकार कर्ज के कारण तो गिनाएगी, लेकिन इस जाल में से कैसे निकलें, इसका रोड मैप कठिन है. पूर्व में रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी ने सरकारी खर्च कम करने की सलाह दी थी, लेकिन सुखविंदर सिंह सरकार ने सीपीएस की नियुक्ति के साथ कई कैबिनेट रैंक भी बांटे हैं. राज्य के खर्च बेलगाम हो रहे हैं. पूर्व वित्त सचिव केआर भारती के अनुसार आबकारी विभाग सबसे बड़ा राजस्व का जरिया है. हिमाचल सरकार को पर्यटन, हाइड्रो पावर पर और अधिक फोकस करना होगा. वहीं, कैग ने भी हिमाचल को कृषि सेक्टर व सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव दिया है. कैग के अनुसार कृषि सेक्टर को मजबूत कर आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है. कृषि सेक्टर को मजबूत करने से पहले राज्य को सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह का कहना है कि आने वाले समय में हिमाचल की आर्थिक स्थितियां बेहतर होंगी. अभी जो उपाय किए जा रहे हैं, एक दशक में उनके बेहतर परिणाम आएंगे.

ये भी पढ़ें: हर हिमाचली पर है 95,374 रुपये का कर्ज, सरकार ने बताया 3 साल में कितना बढ़ा कर्ज का बोझ ?

शिमला: हिमाचल सरकार भयावह रूप से कर्ज के जाल में फंस चुकी है. कर्ज एक ऐसा स्लो पॉइजन है, जिससे कोई भी राज्य धीरे-धीरे आर्थिक मौत की तरफ बढ़ता जाता है. हिमाचल भी कर्ज के जाल में उलझ चुका है. सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह का एक बयान खूब चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिमाचल के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं. बेशक ये चेतावनी थी, लेकिन हकीकत में हिमाचल की स्थितियां आर्थिक इमरजेंसी जैसी है. राज्य पर 76 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज है. हिमाचल की आबादी 75 लाख है.

पहली बार आएगा श्वेत पत्र- बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया था कि प्रत्येक हिमाचली पर 92 हजार रुपए से अधिक का कर्ज है. चूंकि हिमाचल के पास आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं और राज्य केंद्र की मदद पर निर्भर है, लिहाजा प्रदेश अकेले अपने बूते इस कठिन दौर से नहीं निकल सकता. इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार ने राज्य की आर्थिक हालत पर श्वेत पत्र लाने का ऐलान किया है. इसके लिए सरकार ने डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई है. हिमाचल के इतिहास में पहली बार प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र लाया जा रहा है. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या सुखविंदर सरकार के श्वेत पत्र में हिमाचल के कर्ज का जाल काटने का कोई उपाय निकलेगा? इससे पहले कि उपायों की चर्चा करें, ये देखना जरूरी है कि हिमाचल का कर्ज पहाड़ जैसा क्यों हो गया ? क्या कारण है कि लिए गए लोन का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है ?

हिमाचल और कर्ज का मर्ज
हिमाचल और कर्ज का मर्ज

कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी सरकार लेती है कर्ज- हिमाचल पर वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल 45,297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23,333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी पांच साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का दस प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले दो से पांच साल की अवधि में कुल लोन का चालीस फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले पांच साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.

बजट के 100 रुपये किस-किस पर खर्च होते हैं ?
बजट के 100 रुपये किस-किस पर खर्च होते हैं ?

एक दशक में ढाई गुणा बढ़ा कर्ज- हिमाचल प्रदेश में दस साल के अंतराल में ही कर्ज का बोझ ढाई गुणा से अधिक हो गया है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के समय जब 2012 में भाजपा सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. अब कर्ज का बोझ 76 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, अन्य वित्तीय लाभ और पेंशनर्स की पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है. वर्ष 2017-18 में वेतन और मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए का व्यय हुआ था. तब पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए चुकाए. फिर 2018-19 में वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. वित्तीय वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च 12192.52 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.

3 साल में कितना ऋण लिया
3 साल में कितना ऋण लिया

एक-दूसरे पर फोड़ते हैं कर्ज का ठीकरा- हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बारी-बारी से सत्ता में आती हैं. दोनों ही दल कर्ज का ठीकरा एक-दूजे पर फोड़ते हैं. पहले बीजेपी सरकार विपक्षी दल कांग्रेस के सिर पर कर्ज का ठीकरा फोड़ती थी और अब जब बीजेपी विपक्ष में है तो कांग्रेस सरकार प्रदेश को कर्ज के दलदल में डुबोने का आरोप बीजेपी पर लगाती है.

कर्ज के ब्याज की अदायगी भी मुसीबत- हिमाचल में हर साल बजट पेश करने के बाद ये तथ्य सामने आता है कि सरकार को लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए सौ रुपए के मानक में दस रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अमूमन राज्य ससरकार एक समय में एक तिमाही में डेढ़ हजार रुपए से ढाई हजार रुपए कर्ज लेती है। सुखविंदर सिंह सरकार के पहले बजट के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार वित्त वर्ष 2023-24 में 11068 करोड़ का कर्ज चुकाएगी. इसमें से 5562 करोड़ रुपए तो सिर्फ लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर खर्च होगा. कर्ज की किश्तों के रूप में 5506 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. वित्त वर्ष 2023-24 के अंत में राज्य पर 87 हजार करोड़ का लोन हो जाएगा और इसी प्रकार 2024-25 तक हिमाचल का कर्ज एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा.

वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च होता है बजट का बड़ा हिस्सा
वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च होता है बजट का बड़ा हिस्सा

श्वेत पत्र लाएगी हिमाचल सरकार- श्वेत पत्र में सुखविंदर सिंह सरकार से किसी जादू की उम्मीद कम है. व्हाइट पेपर में सरकार कर्ज के कारण तो गिनाएगी, लेकिन इस जाल में से कैसे निकलें, इसका रोड मैप कठिन है. पूर्व में रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी ने सरकारी खर्च कम करने की सलाह दी थी, लेकिन सुखविंदर सिंह सरकार ने सीपीएस की नियुक्ति के साथ कई कैबिनेट रैंक भी बांटे हैं. राज्य के खर्च बेलगाम हो रहे हैं. पूर्व वित्त सचिव केआर भारती के अनुसार आबकारी विभाग सबसे बड़ा राजस्व का जरिया है. हिमाचल सरकार को पर्यटन, हाइड्रो पावर पर और अधिक फोकस करना होगा. वहीं, कैग ने भी हिमाचल को कृषि सेक्टर व सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव दिया है. कैग के अनुसार कृषि सेक्टर को मजबूत कर आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है. कृषि सेक्टर को मजबूत करने से पहले राज्य को सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह का कहना है कि आने वाले समय में हिमाचल की आर्थिक स्थितियां बेहतर होंगी. अभी जो उपाय किए जा रहे हैं, एक दशक में उनके बेहतर परिणाम आएंगे.

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