शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश एक बड़े कर्ज के बोझ तले दबा है. हिमाचल पर 63 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. हाल ही में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) की मांग को लेकर प्रदेश में बड़ा आंदोलन हुआ. ओपीएस (OPS in Himachal) के समर्थकों का कहना है कि जब विधायकों को भारी भरकम पेंशन मिल सकती है तो कर्मचारियों को इस हक से क्यों वंचित किया जा रहा है. उस समय हिमाचल के माननीयों के वेतन का मुद्दा भी खूब उछला था. यहां माननीयों के वेतन और भत्तों से अलग एक ऐसे विषय पर चर्चा जरूरी है, जिसका जिक्र अकसर खबरों के शोर में गुम हो जाता है.
हिमाचल प्रदेश में विभिन्न निगम और बोर्ड हैं. चुनाव हारने वाले नेताओं को बाद में निगम व बोर्ड में कुर्सी देकर एडजस्ट किया जाता है. हिमाचल प्रदेश में निगम और बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां अकसर आरोप-प्रत्यारोप के दौर से गुजरती हैं. प्रदेश में अधिकतर निगम और बोर्ड घाटे में चल रहे (Corporations and boards of Himachal) हैं. लेकिन उनके चेयरमैन तथा वाइस चेयरमैन के मानदेय पर लाखों का खर्च आता है. हालांकि इनका मानदेय भारी भरकम नहीं है, लेकिन आलीशान गाड़ी और अन्य सुविधाएं खूब मिलती हैं. तीन साल का हिसाब किताब जोड़ें तो हिमाचल के 19 निगम और बोर्ड के मुखियाओं पर 50 लाख रुपए से अधिक का खर्च हुआ है.
सबसे पहले निगम और बोर्ड के चेयरमैन तथा वाइस चेयरमैन के मानदेय पर हुए खर्च की बात करते हैं. तीन साल की अवधि में नागरिक आपूर्ति निगम के वाइस चेयरमैन बलदेव सिंह तोमर के टीए-डीए पर 2.09 लाख का खर्च आया. इसी तरह हिमफैड के चेयरमैन गणेश दत्त के टीए-डीए का खर्च 12.61 लाख से अधिक रहा. इसी कड़ी में जीआईसी के वाइस चेयरमैन मनोहर धीमान के टीए-डीए पर 1.44 लाख से अधिक, एसआईडीसी के वाइस चेयरमैन रामकुमार पर 1.61 लाख रुपए से अधिक का खर्च आया है.
इसके अलावा स्कूल शिक्षा बोर्ड (School education board Himachal) के चेयरमैन सुरेश कुमार सोनी पर 63,852 रुपए, एससी/एसटी निगम के वाइस चेयरमैन जयसिंह पर 1.33 लाख, खादी बोर्ड के चेयरमैन पुरुषोत्तम गुलेरिया पर 11 हजार 270 रुपए, हथकरघा निगम के वाइस चेयरमैन संजीव कटवाल पर 79 हजार रुपए, वन निगम के वाइस चेयरमैन सूरत नेगी पर 1.40 लाख, मिल्कफेड के चेयरमैन निहाल चंद शर्मा पर 15 लाख रुपए से अधिक, वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मो. राजबली पर 98 हजार से अधिक और वूल फेडरेशन के चेयरमैन त्रिलोक कपूर पर भी 10.18 लाख रुपए से अधिक का खर्च आया है.
इसी तरह गणेश दत्त के हाउस रेंट पर सरकार ने तीन साल में 25 हजार रुपए से अधिक का खर्च किया. मनोहर धीमान के हाउस रेंट पर 10 हजार, राम कुमार के हाउस रेंट पर 48 हजार, ओम प्रकाश चौधरी के हाउस रेंट पर 7200 रुपए और पुरुषोत्तम गुलेरिया के हाउस रेंट पर 1.22 लाख रुपए खर्च हुए हैं. वहीं राम सिंह खारा के हाउस रेंट पर 58 हजार, विजय अग्निहोत्री के हाउस रेंट पर 69 हजार, ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर के हाउस रेंट 3.60 लाख रुपए, राकेश शर्मा के हाउस रेंट पर 7.20 लाख, प्रवीण शर्मा 79 हजार और त्रिलोक कपूर के हाउस रेंट पर 1.61 लाख से अधिक की रकम खर्च हुई है.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में निगमों और बोर्डों के चेयरमैन हिमाचल प्रदेश में पूर्व की रिपोर्ट के अनुसार 13 निगम और बोर्ड घाटे में चल रहे हैं. बिजली बोर्ड का घाटा 2 हजार करोड़ से अधिक का है. इसी तरह एचआरटीसी का घाटा 1232 करोड़ रुपए है. हथकरघा निगम भी 15 करोड़ से अधिक के घाटे में है. 2021 की रिपोर्ट बताती है कि घाटे में चल रहे 11 निगम और एक बोर्ड के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्षों पर तीन साल में डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक की रकम खर्च की गई थी. यह समय अवधि 2017-18, 2018-19, 2020-21 की थी. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि बोर्ड और निगम में ये नियुक्तियां समय-समय पर जारी किए गए नियमों के अनुसार होती हैं.
वहीं कुछ निगमों में नियुक्तियों के लिए अलग से नोटिफिकेशन जारी की जाती हैं. उन्होंने का कि सभी सरकारें निगमों व बोर्डों को सुचारू रूप से चलाने के लिए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर नियुक्तियां करती हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने कांग्रेस के मुकाबले बहुत कम नियुक्तियां की हैं. वहीं माकपा नेता राकेश सिंघा का कहना है कि उन्होंने निगम और बोर्ड के चेयरमैन व वाइस चेयरमैन पर होने वाले खर्च का मुद्दा विधानसभा में भी उठाया था. माकपा नेता का कहना है कि कर्ज में डूबी सरकार को ऐसी राजनीतिक नियुक्तियों से परहेज करना चाहिए.
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