शिमला: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि हमने वह दिन भी देखे हैं जब हमें बसों में भरकर जंगलों में छोड़कर आए थे. उस वक्त भाजपा विपक्ष में थी और हमने केवल वैल में आकर प्रोटेस्ट किया था. इसलिए कांग्रेस बड़ा दिल दिखाने की बात ना करें, लेकिन विपक्ष ने जो कृत्य किया है उसके लिए उन्हें राज्यपाल से माफी मांगने ही चाहिए.
वीरभद्र सिंह द्वारा जयराम ठाकुर को बड़ा दिल दिखाकर निलंबन रद्द करने की बात पर पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वीरभद्र सिंह ने क्या कहा मैं इस पर नहीं जाना चाहूंगा. वीरभद्र सिंह इस सदन के सबसे वरिष्ठतम सदस्यों में से एक हैं. वह कई बार मुख्यमंत्री रहे इसलिए मैं उनका सम्मान भी करता हूं.
उनकी पार्टी उनका सम्मान करती है या नहीं करती है. यह प्रश्न का विषय है, लेकिन एक व्यवस्था के अनुसार यह बड़ा स्पष्ट है कि जिस बात के लिए हम दोषी है ही नहीं और जिस बात पर हमारी गलती है ही नहीं. उनको जबरदस्ती इस विषय को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
'सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है'
विपक्ष को स्वीकार करना चाहिए कि उनकी गलती है. बहुत बड़ी चूक हुई है. बहुत बड़ी भूल हुई है गलती आदमी से होती है. सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है. उनको हमेशा सुधार करना चाहिए. ऐसे में मैं उम्मीद करता हूं कि गलती हुई है. सुधार करना चाहिए राज्यपाल के पास जाकर इस बात के लिए माफी मांगनी चाहिए कि उनसे गलती हुई है.
उसके बाद अगले विषय के लिए सोचेंगे, लेकिन यह संभव नहीं है कि वह अपने काम करने का तरीका इस प्रकार अपना ले हर बार गलती करें बार-बार गलती करें और उस गलती को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना लें तो उसको ठीक करना बहुत जरूरी है.
'राज्यपाल महोदय का अपमान स्वीकार योग्य नहीं'
सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि हमने वह दौर देखा है जब उनकी सरकार के समय हमें यहां से मार्शल उठा कर जंगल में फेंक कर आए हैं, इसलिए मैं ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहता उस वक्त हम ने राज्यपाल महोदय के खिलाफ वैल में आकर प्रोटेस्ट ही किया था. हमको यहां से उठा कर लेकर गए थे रिज मैदान से हमें उठाकर बसों में भरकर कहां छोड़ कर आए थे. पार्टी व्यवस्था में यह सारी चीजें चलती रहती हैं, लेकिन राज्यपाल महोदय का जिस प्रकार अपमान किया है उसे स्वीकार नहीं करना यह स्वीकार्य नहीं है.
'विपक्ष की मानसिकता स्पष्ट दिखती है'
ऐसे में राज्यपाल ने अभी तक अपना अभिभाषण समाप्त नहीं किया था, जबकि विपक्ष की नेता खड़े होकर बोलना शुरु कर दिया था कि यह झूठ का पुलिंदा है. ऐसे में उन्होंने पहले ही तय कर दिया था कि उन्हें कुछ सुनना ही नहीं है जब अभिभाषण पढ़ा नहीं था अभी तक सुना नहीं था तो निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे विपक्ष की मानसिकता स्पष्ट दिखती है.
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