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हिमाचल में चेरी की खेती की ओर बढ़ रहे बागवान, सेब के साथ आय का एक बड़ा जरिया बन रही है Cherry - Himachal Cherry Farming

हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती के बाद चेरी की खेती से किसानों-बागवानों को काफी लाभ हो रहा है. वहीं, इसकी लागत सेब से कम है. पढ़ें पूरी खबर... (cherry cultivation in Himachal) (Himachal Cherry Farming).

Himachal Cherry Farming
हिमाचल में चेरी का उत्पादन.
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Published : May 22, 2023, 8:57 PM IST

Updated : May 22, 2023, 9:36 PM IST

शिमला: हिमाचल में बागवान अब चेरी की बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं. सेब के साथ-साथ अब चेरी भी बागवान के बागीचों को तैयार कर रहे हैं. चेरी आय का एक अतिरिक्त साधन के रूप में बागवानों के लिए उभकर कर आया है. सेब की तुलना में चेरी की खेती की लागत कम है और इसकी फसल जल्द तैयार हो जाती है. इससे बागवानों को कमाई की मौका मिलता है. हिमाचल प्रदेश फलों के उत्पादन के लिए जाना जाता है.

सेब राज्य के तौर पर हिमाचल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. सेब की करीब 5000 करोड़ की आर्थिकी हिमाचल में मानी जाती है, लेकिन अब बागवान दूसरे फलों की खेती की ओर भी रूख कर रहे हैं. इनमें चेरी एक महत्वपूर्ण फल है. चेरी की ओर बागवानों का रूझान इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि सेब के साथ यह आय का एक अतिरिक्त जरिया बागवानों के लिए बन रहा है. वहीं, चेरी सेब से पहले तैयार होती है और ऐसे में इसकी डिमांड भी रहती है. यही वजह है कि हिमाचल में अब बागवान चेरी के बागीचे तैयार कर रहे है और इसकी खेती भी लगातार बढ़ रही है.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

हिमाचल में करीब 500 हेक्येटर में होता है चेरी का उत्पादन: प्रदेश में करीब 500 हेक्येटर पर चेरी की खेती जा रही है. हालांकि चेरी को 4000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर ही लगाया जा सकता है लेकिन इसके लिए 6000 से 8000 फीट की उंचाई आदर्श मानी जाती है. प्रदेश में शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, लाहौल स्पीति और किन्नौर जिला में होता है. लेकिन इन सभी में करीब 90 फीसदी चेरी का उत्पादन अकेले शिमला जिला करता है. शिमला जिला में नारकंडा, कोटगढ़, थानाधार, कुमारसैन, बागी और नारकंडा चेरी उत्पादन के लिए जाना जाते है, जहां सेब के बागीचों के साथ-साथ चेरी के बागीचे भी तैयार हो रहे हैं.

Himachal Cherry Farming
हिमाचल में चेरी का उत्पादन.

इस साल तीस फीसदी उत्पादन की संभावना: हिमाचल में औसतन करीब 800 मीट्रिक टन का पैदावार हर साल हो रहा है लेकिन इस बार इसमें गिरावट आ सकती है. इस साल पहले खुश्की और फिर फल तैयार होने पर बारिश होने से चेरी की फसल खराब हो गई. कलर आने के समय जब चेरी पर बारिश होती है तो इसमें क्रेक्स पड़ने लगते हैं और इस बार भी यही हुआ. ऐसे में इस बार चेरी का उत्पादन पिछले साल की तुलना में करीब 30 फीसदी होने का अनुमान है.

रंगों के आधार पर दो तरह की होती है चेरी: चेरी की बात करें तो रंगों के आधार पर मुख्यतः दो तरह की चेरी होती है इनमें एक लाल रंग सी होती है तो दूसरी काले लाल रंग की चेरी होती है. आकार के हिसाब से देखें तो एक छोटी किस्म की चेरी लाल व काले रंग की अधिक हिमाचल में लगाई गई है. राज्य में स्टेला किस्म की चेरी सबसे अधिक है. इसके अलावा हिमाचल में ड्यूरो नेरा, मर्चेंट और सेल्सियस जैसी उन्नत किस्म की चेरी का भी उत्पादन प्रदेश में बागवान करने लगे हैं, जिसकी बागवानों को अच्छा रेट मिलता है. अगर रेट की बात करें तो छोटी चेरी की तुलना में बड़ी चेरी के रेट अच्छे मार्केट में मिलते हैं. एक ओर छोटी किस्म की चेरी 100 से 200 रुपए प्रति किलो की दर से बिकती है, जबकि बड़ी किस्म की मर्चेंट चेरी औसतन 500 रुपए तक बिकती है. इस साल दिल्ली में 1.4 किलो चेरी का पैकेट 2000 में बिका है.

Himachal Cherry Farming
हिमाचल में चेरी का उत्पादन.

85 फीसदी चेरी बाहर भेजते हैं बागवान: हिमाचल में तैयार होने वाली करीब 85 फीसदी चेरी बाहर भेजी जा रही है. सबसे ज्यादा चेरी दिल्ली ही भेजी जाती है. वहां से अन्य राज्यों के खरीदार इसको दूसरे राज्यों को ले जाते हैं. इसके अलावा बाहर भी देश से इसका निर्यात किया जाता है.

पुराने बगीचों में चेरी लगाना बेहतर: स्टोन फ्रूट की खेती पर काम कर रहे प्रोग्रेसिव बागवान एवं हिमाचल प्रदेश स्टोन फ्रूट एसोसिएशन के संस्थापक एवं संयोजक दीपक सिंघा कहते हैं कि पुराने बागीचों में सेब के पौधों के खराब होने पर इनकी जगह चेरी जैसी स्ट्रोन फ्रूट लगाना ज्यादा बेहतर है. बागवानों की यह सबसे बड़ी समस्या है कि पुराने सेब के बागीचों में नए सेब के पौधे तैयार नहीं हो पाते. ऐसे में क्रॉप रोटेशन के तौर पर इन बागीचों में चेरी या अन्य स्टोन फ्रूट लगाना बेहतर है. यही बागवान अब करने भी लगे हैं.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

चेरी तैयार करने की लागत सेब की तुलना में कम: दीपक सिंघा कहते हैं कि चेरी की उत्पादन लागत सेब की तुलना में कम है. सेब की तुलना में करीब 15 फीसदी ही इसकी लागत है. इसलिए भी किसानों के लिए यह फायदेमंद है. हालांकि इसकी हार्वेस्टिंग मेनेजमेंट आसान नहीं है इसका तुड़ान भी सेलेक्टिव तरीके से करना होता है और तुड़ान के बाद चेरी को तुरंत मार्केट पहुंचना पड़ता है अन्यथा इसके खराब होने की संभावना रहती है. सेब को आम तौर पर तीन चार दिन में भी गोदाम में रखा जा सकता है, लेकिन चेरी की शेल्फ लाइफ कम होती है, अगर तुरंत इसको मार्केट में न पहुंचाया जाए तो यह खराब हो जाती है.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

फ्रेश चेरी के रेट भी बागवानों को अच्छे मिलते हैं. दीपक सिंघा अन्य प्रोग्रेसिव बागवानों के साथ चेरी के रूट स्टॉक भी अपने स्तर पर तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं और इसमें उनको सफलता भी मिली है. दीपक सिंघा कहते हैं कि स्टोन फ्रूट का मौजूदा समय में करीब 500 करोड़ का है, वह अन्य प्रोग्रेसिव बागवानों के साथ मिलकर स्टोन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर काम कर रहे हैं. उम्मीद है कि 2025 तक हिमाचल में स्टोन फ्रूट का कारोबार 1000 करोड़ हो जाएगा, इससे बागवानों की आय में इजाफा होगा.

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Read Also- टार्ट चेरी जूस के सेवन से बढ़ती है व्यायाम करने की क्षमता

शिमला: हिमाचल में बागवान अब चेरी की बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं. सेब के साथ-साथ अब चेरी भी बागवान के बागीचों को तैयार कर रहे हैं. चेरी आय का एक अतिरिक्त साधन के रूप में बागवानों के लिए उभकर कर आया है. सेब की तुलना में चेरी की खेती की लागत कम है और इसकी फसल जल्द तैयार हो जाती है. इससे बागवानों को कमाई की मौका मिलता है. हिमाचल प्रदेश फलों के उत्पादन के लिए जाना जाता है.

सेब राज्य के तौर पर हिमाचल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. सेब की करीब 5000 करोड़ की आर्थिकी हिमाचल में मानी जाती है, लेकिन अब बागवान दूसरे फलों की खेती की ओर भी रूख कर रहे हैं. इनमें चेरी एक महत्वपूर्ण फल है. चेरी की ओर बागवानों का रूझान इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि सेब के साथ यह आय का एक अतिरिक्त जरिया बागवानों के लिए बन रहा है. वहीं, चेरी सेब से पहले तैयार होती है और ऐसे में इसकी डिमांड भी रहती है. यही वजह है कि हिमाचल में अब बागवान चेरी के बागीचे तैयार कर रहे है और इसकी खेती भी लगातार बढ़ रही है.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

हिमाचल में करीब 500 हेक्येटर में होता है चेरी का उत्पादन: प्रदेश में करीब 500 हेक्येटर पर चेरी की खेती जा रही है. हालांकि चेरी को 4000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर ही लगाया जा सकता है लेकिन इसके लिए 6000 से 8000 फीट की उंचाई आदर्श मानी जाती है. प्रदेश में शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, लाहौल स्पीति और किन्नौर जिला में होता है. लेकिन इन सभी में करीब 90 फीसदी चेरी का उत्पादन अकेले शिमला जिला करता है. शिमला जिला में नारकंडा, कोटगढ़, थानाधार, कुमारसैन, बागी और नारकंडा चेरी उत्पादन के लिए जाना जाते है, जहां सेब के बागीचों के साथ-साथ चेरी के बागीचे भी तैयार हो रहे हैं.

Himachal Cherry Farming
हिमाचल में चेरी का उत्पादन.

इस साल तीस फीसदी उत्पादन की संभावना: हिमाचल में औसतन करीब 800 मीट्रिक टन का पैदावार हर साल हो रहा है लेकिन इस बार इसमें गिरावट आ सकती है. इस साल पहले खुश्की और फिर फल तैयार होने पर बारिश होने से चेरी की फसल खराब हो गई. कलर आने के समय जब चेरी पर बारिश होती है तो इसमें क्रेक्स पड़ने लगते हैं और इस बार भी यही हुआ. ऐसे में इस बार चेरी का उत्पादन पिछले साल की तुलना में करीब 30 फीसदी होने का अनुमान है.

रंगों के आधार पर दो तरह की होती है चेरी: चेरी की बात करें तो रंगों के आधार पर मुख्यतः दो तरह की चेरी होती है इनमें एक लाल रंग सी होती है तो दूसरी काले लाल रंग की चेरी होती है. आकार के हिसाब से देखें तो एक छोटी किस्म की चेरी लाल व काले रंग की अधिक हिमाचल में लगाई गई है. राज्य में स्टेला किस्म की चेरी सबसे अधिक है. इसके अलावा हिमाचल में ड्यूरो नेरा, मर्चेंट और सेल्सियस जैसी उन्नत किस्म की चेरी का भी उत्पादन प्रदेश में बागवान करने लगे हैं, जिसकी बागवानों को अच्छा रेट मिलता है. अगर रेट की बात करें तो छोटी चेरी की तुलना में बड़ी चेरी के रेट अच्छे मार्केट में मिलते हैं. एक ओर छोटी किस्म की चेरी 100 से 200 रुपए प्रति किलो की दर से बिकती है, जबकि बड़ी किस्म की मर्चेंट चेरी औसतन 500 रुपए तक बिकती है. इस साल दिल्ली में 1.4 किलो चेरी का पैकेट 2000 में बिका है.

Himachal Cherry Farming
हिमाचल में चेरी का उत्पादन.

85 फीसदी चेरी बाहर भेजते हैं बागवान: हिमाचल में तैयार होने वाली करीब 85 फीसदी चेरी बाहर भेजी जा रही है. सबसे ज्यादा चेरी दिल्ली ही भेजी जाती है. वहां से अन्य राज्यों के खरीदार इसको दूसरे राज्यों को ले जाते हैं. इसके अलावा बाहर भी देश से इसका निर्यात किया जाता है.

पुराने बगीचों में चेरी लगाना बेहतर: स्टोन फ्रूट की खेती पर काम कर रहे प्रोग्रेसिव बागवान एवं हिमाचल प्रदेश स्टोन फ्रूट एसोसिएशन के संस्थापक एवं संयोजक दीपक सिंघा कहते हैं कि पुराने बागीचों में सेब के पौधों के खराब होने पर इनकी जगह चेरी जैसी स्ट्रोन फ्रूट लगाना ज्यादा बेहतर है. बागवानों की यह सबसे बड़ी समस्या है कि पुराने सेब के बागीचों में नए सेब के पौधे तैयार नहीं हो पाते. ऐसे में क्रॉप रोटेशन के तौर पर इन बागीचों में चेरी या अन्य स्टोन फ्रूट लगाना बेहतर है. यही बागवान अब करने भी लगे हैं.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

चेरी तैयार करने की लागत सेब की तुलना में कम: दीपक सिंघा कहते हैं कि चेरी की उत्पादन लागत सेब की तुलना में कम है. सेब की तुलना में करीब 15 फीसदी ही इसकी लागत है. इसलिए भी किसानों के लिए यह फायदेमंद है. हालांकि इसकी हार्वेस्टिंग मेनेजमेंट आसान नहीं है इसका तुड़ान भी सेलेक्टिव तरीके से करना होता है और तुड़ान के बाद चेरी को तुरंत मार्केट पहुंचना पड़ता है अन्यथा इसके खराब होने की संभावना रहती है. सेब को आम तौर पर तीन चार दिन में भी गोदाम में रखा जा सकता है, लेकिन चेरी की शेल्फ लाइफ कम होती है, अगर तुरंत इसको मार्केट में न पहुंचाया जाए तो यह खराब हो जाती है.

cherry cultivation in Himachal
चेरी (फाइल फोटो).

फ्रेश चेरी के रेट भी बागवानों को अच्छे मिलते हैं. दीपक सिंघा अन्य प्रोग्रेसिव बागवानों के साथ चेरी के रूट स्टॉक भी अपने स्तर पर तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं और इसमें उनको सफलता भी मिली है. दीपक सिंघा कहते हैं कि स्टोन फ्रूट का मौजूदा समय में करीब 500 करोड़ का है, वह अन्य प्रोग्रेसिव बागवानों के साथ मिलकर स्टोन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर काम कर रहे हैं. उम्मीद है कि 2025 तक हिमाचल में स्टोन फ्रूट का कारोबार 1000 करोड़ हो जाएगा, इससे बागवानों की आय में इजाफा होगा.

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Last Updated : May 22, 2023, 9:36 PM IST
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