शिमला: हिमाचल में सेब सीजन खत्म हो चुका है लेकिन पिछले साल के मुकाबले इस साल सेब का उत्पादन कम हुआ है. आंकड़ों के हिसाब से इस साल हिमाचल में सेब का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले करीब 30% कम रहा है.
एक करोड़ सेब की पेटियां हुई कम
सेब हिमाचल की पहचान से जुड़ा है. हिमाचल के कई जिलों में सेब का उत्पादन होता है और देशभर में जम्मू-कश्मीर के बाद सेब उत्पादन में हिमाचल का दूसरा स्थान है. हिमाचल में सेब की आर्थिकी करीब 4000 करोड़ की है और हिमाचल की जीडीपी में सेब की करीब 4 फीसदी की हिस्सेदारी है.
पिछले साल हिमाचल में 3 करोड़ 75 लाख सेब की पेटियों का उत्पादन हुआ था जबकि इस बार ये उत्पादन 2 करोड़ 70 लाख पेटियों पर सिमट गया. इस लिहाज से इस बार हिमाचल में करीब एक करोड़ पेटियों का उत्पादन कम हुआ है.
सेब पर पड़ी बीमारी की मार
हिमाचल में 1 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सेब उगाए जाते हैं. राज्य में सेब उत्पादन से करीब 4 लाख बागवान परिवार जुड़े हैं. प्रदेश में होने वाले सेब उत्पादन का 80 फीसदी अकेले शिमला जिले में होता है. हिमाचल प्रदेश में 50 से अधिक विदेशी किस्म के सेब उगाए जाते हैं.
इस बार सेब पर मौसम और स्कैब बीमारी की मार पड़ी जिसके नुकसान सेब बागवानों को उठाना पड़ा. सेब के पौधे पर फ्लावरिंग के वक्त मौसम की मार पड़ी और जब पेड़ पर फल लगा तो स्कैब रोग ने फसल को नुकसान पहुंचाया. आखिर में जब सेब मंडियों में पहुंचा तो बागवानों को अच्छी कीमत नहीं मिली. फसल कम होने के बाद सही कीमत ना मिलने से बागवानों को नुकसान उठाना पड़ा.
स्कैब ने निकाला दिवाला
चार दशक बाद स्कैब ने हिमाचल में सेब को इतने व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचाया है. राज्य बागवानी विभाग के अनुसार लगभग चार दशक पहले साल 1984 में स्कैब का प्रकोप सेब ने झेला था. इस बार स्कैब से सेब उगाने वाले जिलों में 4 हजार हैक्टेयर से अधिका का क्षेत्र इस बीमारी की चपेट में आया.
विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक किन्नौर जिले में सेब की फसल को स्कैब ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. सेब का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले शिमला जिले से लेकर मंडी, कुल्लू, चंबा और सिरमौर तक इस बीमारी ने सेब की फसल को बर्बाद किया. किन्नौर में सबसे ज्यादा 1800 हेक्टेयर, शिमला जिले में 1160 हेक्टेयर और मंडी जिले में 960 हेक्टेयर सेब की फसल स्कैब की चपेट में आई.
विभिन्न जिलों में स्कैब से प्रभावित क्षेत्र
ब्लॉक | नुकसान प्रति हेक्टेयर |
कल्पा | 992 |
सिराज | 783 |
निचार | 750 |
रोहड़ू | 540 |
बागवानों की दोहरी मार
इस बार एक तो सेब का उत्पादन कम हुआ और फिर बागवानों को मंडियों में अच्छी कीमत नहीं मिली. दरअसल इस साल सेब सीजन की शुरुआत से ही बागवानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जो फ्लावरिंग से लेकर मंडी पहुंचने तक बनी रही.
सेब के पौधे पर फूल आने के बाद मौसम की मार पड़ी और कई ऊंचाई वाले इलाकों में नुकसान हुआ. बची खुची कसर ओलावृष्टि ने पूरी कर दी. फिर जहां फसल अच्छी हुई वहां पर स्कैब रोग के हमले से नुकसान हो गया. आखिर में बागवान अपनी फसल को लेकर बाजार पहुंचे तो उम्मीद के मुताबिक दाम नहीं मिले.
क्या होता है स्कैब रोग ?
स्कैब रोग सेब के लिए कैंसर की तरह है. ये जेनेटिक होता है. इससे पहले ये रोग हिमाचल में साल 1984 में आया था. इस रोग की पहली मार पत्तियों पर पड़ती है. ये इतना खतरनाक है कि एक बार सेब का फल इससे प्रभावित हो जाये तो उस फल को जानवर भी नहीं खाते. स्कैब एक फंगस रोग है और इस साल हिमाचल में फिर से इसका कोप देखने को मिला.
हिमाचल में सेब उत्पादन
साल कितना उत्पादन
- 2007 2.96 करोड़ पेटी
- 2008 2.55 करोड़ पेटी
- 2009 1.40 करोड़ पेटी
- 2010 4.46 करोड़ पेटी
- 2011 1.38 करोड़ पेटी
- 2012 1.84 करोड़ पेटी
- 2013 3.69 करोड़ पेटी
- 2014 2.80 करोड़ पेटी
- 2015 3.88 करोड़ पेटी
- 2016 2.40 करोड़ पेटी
- 2017 2.08 करोड़ पेटी
- 2018 1.65 करोड़ पेटी
- 2019 3.75 करोड़ पेटी
- 2020 2.70 करोड़ पेटी