शिमला: तुंगल के शेर और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा क्या अगला चुनाव कांग्रेस से लड़ेंगे? ये सवाल अब मंडी की सियासी फिजा में तैर रहा है. कारण ये है कि अनिल शर्मा ने ताजा बयान देते हुए कहा कि वे अगला चुनाव भी लड़ेंगे और जीत भी हासिल करेंगे. उनके बेटे आश्रय शर्मा पहले से ही कांग्रेस में हैं. वे कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. जिस तरह की परिस्थितियां बनी हैं, उससे ये साफ है कि अनिल शर्मा व भाजपा का अगले चुनाव तक राजनीतिक तलाक हो जाएगा.
अनिल शर्मा को अगले चुनाव में मंडी सदर से टिकट नहीं देगी
भाजपा किसी भी कीमत पर अनिल शर्मा को अगले चुनाव में मंडी सदर से टिकट नहीं देगी. ऐसे में वे चुनाव लड़ेंगे तो उनके लिए कांग्रेस का ही दरवाजा बचता है. यही कारण है कि अनिल शर्मा अब फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहे हैं. ऐसे में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा सरकार अपने ही घर में घिर गई है.
सीएम जयराम ठाकुर अपने ही गृह जिला मंडी में पार्टी में मची गृहकलह झेल रहे हैं. पंडित सुखराम के विधायक बेटे अनिल शर्मा सरकार के लिए फांस बन गए हैं. न तो अनिल शर्मा भाजपा से जा रहे हैं और न ही सीएम सहित सरकार को चैन से रहने दे रहे हैं. सीएम जयराम को घर में ही घेर रहे अनिल शर्मा, भाजपा के लिए न निगलते बन रहे हैं और न ही उगलते. इधर, नगर निगम चुनाव में जयराम सरकार की साख दांव पर लगी है और उधर, अनिल शर्मा सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पर ही हमला बोल रहे हैं.
अनिल शर्मा ने अपने बयानों से सरकार की नाक में दम कर रखा है
आलम ये है कि मंडी सदर के विधायक अनिल शर्मा ने अपने बयानों से सरकार की नाक में दम कर रखा है. अनिल शर्मा सीधे-सीधे सरकार से मोर्चा ले रहे हैं. अचरज की बात है कि अनिल शर्मा तीखा बयान देते हुए कह रहे हैं कि वे न तो सीएम से डरते हैं और न ही महेंद्र सिंह से. इतना तीखा बयान देने के बावजूद सरकार की प्रतिक्रिया सहमी हुई सी है. वैसे दोनों ही पक्षों को पता है कि आगामी विधानसभा चुनाव तक ये तीर यूं ही चलते रहेंगे.
डेढ़ दशक से इस परिवार ने कई बार करवट बदली है
कारण ये है कि न तो अनिल शर्मा विधायकी छोड़ेंगे और न ही भाजपा उन्हें पार्टी से निकालेगी. अब ये लगभग तय माना जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव तक अनिल शर्मा भाजपा का हिस्सा नहीं होंगे. सीएम ने उन्हें विधायक पद छोड़कर अपनी लोकप्रियता साबित करने की चुनौती दी तो अनिल शर्मा ने इसे भी स्वीकार कर लिया. वैसे पंडित सुखराम व उनके परिवार की राजनीति की बात करें तो पिछले डेढ़ दशक से इस परिवार ने कई बार करवट बदली है. कांग्रेस में पंडित सुखराम का वीरभद्र सिंह से हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा.
ये बात अलग है कि वीरभद्र सिंह की राजनीतिक चतुराई के आगे पंडित सुखराम उन्नीस ही रहे. दूरसंचार घोटाले में घिरने के बाद पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस नामक दल बनाया. हिविकां के सहयोग से ही प्रेम कुमार धूमल की सरकार सत्ता में आई. बाद में सुखराम ने हिविकां का कांग्रेस में विलय कर दिया.
ऐसे अनिल शर्मा व भाजपा के रिश्ते तल्ख होते चले गए
पिछले चुनाव में पंडित का परिवार कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में आ गया. अनिल शर्मा को मंडी सदर से टिकट दिया गया और वे जीत गए. जयराम सरकार में उन्हें उर्जा मंत्री बनाया गया. बाद में लोकसभा चुनाव के दौरान अनिल के बेटे आश्रय शर्मा ने टिकट मांगा. जब भाजपा से इनकार हो गया तो आश्रय कांग्रेस में चले गए. इससे अनिल शर्मा को मंत्री पद गंवाना पड़ा, लेकिन वे पार्टी के विधायक बने रहे. बाद में अनिल शर्मा व भाजपा के रिश्ते तल्ख होते चले गए.
अनिल शर्मा का आरोप है कि बेटे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बारे में उन्होंने हाईकमान को कई बार बताया, परंतु भाजपा ने उन्हें उपेक्षित करना शुरू कर दिया. न तो किसी आयोजन में उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है और न ही विकास कार्यों को लेकर सहयोग किया जा रहा है.
अगले चुनाव में अनिल शर्मा फिर से कांग्रेस में घर वापिसी करेंगे?
खुलकर फ्रंट फुट पर खेलते हुए अनिल शर्मा अब जयराम सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह पर भी निशाना साध रहे हैं. और तो और वे महेंद्र सिंह पर तीखे शब्दों में तंज कस रहे हैं. अचरज की बात है कि अनिल शर्मा से जुड़ी हर खबर उनके बेटे आश्रय शर्मा अपने सोशल मीडिया पेज पर चिपका रहे हैं. इससे ये संकेत तो मिल ही रहे हैं कि अगले चुनाव में अनिल शर्मा फिर से कांग्रेस में घर वापसी करेंगे.
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