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हिमाचल में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार, 21 दिनों से नहीं निकला कोई हल - Truck operators facing problems in himachal

हिमाचल प्रदेश में दाड़लाघाट की अंबुजा सीमेंट कंपनी और एसीसी बरमाणा सीमेंट कंपनी काफी समय से बंद पड़ी है. जिससे इस व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं और उन्हें अपनी गाड़ियों की किस्ते देना तो दूर घर खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
हिमाचल में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार.
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Published : Jan 5, 2023, 7:57 PM IST

शिमला: प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों अंबुजा दाड़लाघाट और एसीसी बरमाणा में ताले लटके हुए हैं. 14 दिसंबर को अदानी ग्रुप की ओर से अचानक एक लिखित आदेश अपने कर्मचारियों को जारी किया जाता है, जिसमें उनसे अगले कल से काम पर न आने को कहा जाता है. अदानी ग्रुप की ओर से कहा गया है कि हिमाचल के दोनों प्लांट घाटे में हैं. ऐसे में अनिश्चितकालीन तक इनको बंद कर दिया जाता है. साथ ही अदानी ग्रुप ट्रक ऑपरेटरों से मालभाड़ा कम करने के लिए भी कह रहा है. सीमेंट प्लांट बंद करना उसका ट्रक ऑपरेटरों पर दवाब बनाने के एक रणनीति के तहत देखा जा रहा है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)

फैक्ट्रियों को बंद हुए 21 दिन बीत गए हैं. फैक्ट्रियों के बार हजारों ट्रक खड़े हैं. ट्रक आपरटेरों के साथ-साथ इन प्लांट से अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार हासिल करने वाले हजारों लोगों का रोजगार एक ही झटके में चला गया. दोनों कंपनियों के प्रबंधनों और ट्रक ऑपरेटरों के बीच कई वार्ता हो चुकी है, मगर कोई भी हल नहीं निकला है. फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों ट्रक खड़े हो गए हैं. प्लांट के आसपास छोटा मोटा कारोबार कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले हजारों लोगों की रोजी रोटी का जरिया चला गया है. लोगों ने शायद ही कभी सोचा होगा कि ये दिन भी आएगा जब उनकी कमाई का साधन एकाएक खत्म या बंद हो जाएगा. (Closure of cement factories in Himachal)

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
हिमाचल में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार.

दोनों फैक्ट्रियों से सीधे जुड़े करीब 8 हजार परिवार - दोनों बड़े प्लाटों में करीब 8 हजार ट्रक सीधे रूप से काम से जुड़े हुए हैं. ये ट्रक क्लिंकर और सीमेंट ढुलाई करते हैं. काम बंद होने से इन 8 हजार परिवारों की कमाई खत्म हो गई है. इसके साथ ही आसपास में दुकानें, ढाबे, सहित छोटा मोटा काम चलने वालों के लिए भी मंदी आ गई है. दरअसल इन लोगों के ग्राहक सीमेंट के काम से जुड़े लोग हैं.

इसके अलावा करीब 2000 लोग सीधे इन फैक्ट्रियों से रोजगार हासिल कर रहे हैं. इनका भी रोजगार चला गया है. हालांकि सीमेंट प्लांट्स के 143 कर्मचारियों को अदानी सीमेंट के नजदीकी संयंत्रों में स्थानांतरित करने के आदेश दिए हैं. कर्मचारियों को नालागढ़, रोपड़ और बठिंडा सहित अन्य प्लांटस में शिफ्ट किया जा रहा है. मगर अधिकतर फैक्ट्रियों के बंद होने से अब घर पर बेरोजगार बैठे हैं.

दाड़लाघाट अंबुजा सीमेंट प्लांट बंद होने से रोजी रोटी का जरिया गया- दाड़लाघाट स्थित अंबुजा कंपनी हिमाचल में सबसे बड़ी क्लिंकर निकालने वाली कंपनी है. इसकी क्लिंकर की सालाना क्षमता 5.2 मीट्रिक टन की है. सीमेंट निर्माण के हिसाब से देखें तो यह हिमाचल के चार बड़े प्लाटों में से एक है. इस प्लांट की सीमेंट तैयार करने की क्षमता 3.1 मीट्रिक टन प्रति सालाना है, जिसका माइनिंग एरिया करीब 488.08 हेक्टेयर है. (Truck operators facing problems in himachal)

अंबुजा कंपनी में ट्रक ऑपरेटरों की आठ सोसायटियां काम कर रही हैं. जिनके तहत करीब 3500 ट्रक रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा करीब 700 कर्मचारी सीधे तौर पर कंपनी में कार्यरत हैं. प्लांट के लिए भूमि खो देने वाले लोगों यानी लैंड लूजर्स को ज्यादा रोजगार प्रत्यक्ष तौर पर नहीं मिला है. करीब 200 लैंड लूजर्स को ही इसमें सीधा रोजगार मिला है जबकि बाकी लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस फैक्ट्रियों पर निर्भर हैं.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों अंबुजा दाड़लाघाट और एसीसी बरमाणा में लटके ताले.

दाड़लाघाट से किरतपुर रूट पर सोयाटियों करीब 1000 ट्रक रोजाना चलते हैं, जिससे इस पूरे रूट पर ढाबे वालों, चाय वालों, वर्कशॉप और अन्य काम करने वालों को रोजगार मिला हुआ था जोकि अब बंद पड़ा है दाड़लाघाट से निकलने वाला अधितकर क्लिंकर अंबुजा के रोपड़, भंटिंडा, नालागढ़ और रूड़की के दूसरे प्लांट को ट्रकों से ले जाया जाता है, जहां इससे सीमेंट तैयार किया जाता है.

दाड़लाघाट से निकलने वाला 80 से 85 फीसदी क्लिंकर इन प्लांट को भेजा जा रहा है जहां इससे सीमेंट वहां तैयार होता है, जबकि 15 से 20 फीसदी क्लिंकर से दाड़लाघाट में सीमेंट बनाया जाता है. इस तरह बाहर के सीमेंट प्लाटों को क्लिंकर ले जाने और वापसी में रोपड़ से सीमेंट तैयार करने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल ट्रकों में लाया जाता है. ट्रक ऑपरेटरों के मुताबिक दाड़लाघाट से करीब 10 लाख मीट्रिक टन हर साल और 80 से 85 हजार मीट्रिक टन माल हर माह उनके ट्रक ढोते हैं, मगर अब यह काम ठप हो गया हैं.

ट्रकों की किश्तें, ड्राइवर-क्लीनर की सैलरी निकालना हुआ मुश्किल- दाड़लाघाट प्लांट से संबंधित ट्रक चलाने वाली सोसायटी एडीकेएम यानि अंबुजा-दाड़ला-कश्लोग-मांगू ट्रक को-आप्रेटिव सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष बालकराम शर्मा का कहते हैं कि ट्रक ऑपरेटरों के लिए प्लांट बंद होना किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. तीन सप्ताह से उनके ट्रक खड़े हुए हैं. उनके लिए ट्रकों की किश्तें निकालना मुश्किल हो गया है. उनकी मानें तो अंबुजा कंपनी में लगे करीब 90 फीसदी ट्रकों की बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को किश्तें जाती हैं जो कि अब नहीं जा रही. इसके अलावा घर परिवार भी ट्रक ऑपरेटरों का इससे चलता है, जाहिर है अब घर चलाना भी लोगों का मुश्किल हो गया है.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
हिमाचल में दोनों फैक्ट्रियों से सीधे जुड़े करीब 8 हजार परिवार.

पहाड़ी इलाका होने से ट्रकों की लाइफ भी हो जाती है कम- बालक राम शर्मा कहते हैं कि आमतौर पर ट्रकों की लाइफ 15 साल मानी जाती है, लेकिन पहाड़ी भौगोलिक स्थितियों के चलते यहां पर 10 साल ही ट्रकों की लाइफ रह जाती है. इसके चलते ट्रक ऑपरेटरों का प्रयास रहता है कि 7-8 साल में ही अपना पुराना ट्रक बेचकर नया खरीद ले, जब ट्रक खरीद लिया तो फिर इसकी किश्तें 7-8 साल चुकाते रहते हैं. वह कहते हैं कि अगर ट्रक को इसे ज्यादा चलाया तो तो इसको कबाड़ में बेचने की नौबत आ जाती है.

ऐसे में उन लोगों की पहले खरीदे गए ट्रकों को बेचकर नए खरीदने की मजबूरी होती है, जो कि लोन पर ही अधिकतर खरीदे जाते हैं. लोन की किश्तें लाखों की पड़ जाती हैं. इस तरह लाखों रूपए ट्रक अब खड़े हैं. दाड़लाघाट के ट्रकों का मालभाड़ा 10.58 पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर पहाड़ी इलाकों के लिए है जबकि मैदानी इलाकों के लिए ऑपरेटरों इसका 50 फीसदी मालभाड़ा लेते हैं. ऑपरेटरों का कहना है कि बड़ी गाडियों के माल भाड़े में वह 5 फीसदी तक दे रहे हैं, इसके बावजूद कंपनी ने अड़ियल रवैया अपनाया हुआ है.

एसीसी सीमेंट प्लांट बरमाणा के बंद होने से भी हजारों बेरोजगार- अल्ट्राटेक के बाद एसीसी हिमाचल का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट निर्माता है. इसका सीमेंट प्लांट बिलासपुर के बरमाणा में लगा हैं, इसके सीमेंट उत्पादन की कुल क्षमता 4.4 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है. इसका माइनिंग एरिया करीब 231.25 हेक्टेयर में फैला हुआ हैं. इसके अलावा यह 3.3 मीट्रिक टन क्लिंकर भी निकालता तैयार करता है. बरमाणा सीमेंट कंपनी से करीब 4500 ट्रक जुड़े हुए हैं.

इसके अलावा करीब 1000 कर्मचारी यहां पर प्लांट में कार्यरत है. लेकिन सीमेंट प्लांट बंद होने से ये सभी बेरोजगार हो गए हैं. हालांकि कंपनी ने कुछ कर्मचारियों को यहां से दूसरे प्लाटों में डेपुटेशन पर भेज दिया है, लेकिन अधिकतर कर्मचारी बेरोजगार पड़े हुए हैं. बरमाणा में एसीसी कंपनी सीमेंट ही तैयार करती है. यहां से सीमेंट पंजाब, चंडीगढ़, पंचकुला सहित हिमाचल में भेजा जाता है, रोजाना करीब 800 से 1000 गाड़ियां इसमें इस्तेमाल होती हैं. इसके अलावा कुछ क्लींकर भी यहां से कंपनी के नालागढ़ प्लांट को ले जाया जाता है.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
ट्रकों की किश्तें, ड्राइवर-क्लीनर की सैलरी निकालना हुआ मुश्किल.

3500 से अधिक गाड़ियों की किश्तें बंद ठप हो गई- बरमाणा सीमेंट में कार्यरत ट्रक ऑपरेटरों की सबसे बड़ी सोसायटी बिलासपुर डिस्ट्रिक्ट ट्रक ऑपरेटरों सोसायटी (बीडीटीएस) के अध्यक्ष राकेश ठाकुर कहते हैं कि बरमाणा प्लांट में लगी करीब 4500 गाड़ियों में से 3500 के करीब गाडियां लोन पर ली गई हैं, फैक्ट्री बंद होने से इन ट्रक ऑपरेटरों बैंकों में लोन की किश्तें भी दे पा रहे. ट्रकों के ड्राइवर, क्लीनर की तनख्वाह निकालना मुश्किल हो गया है.

राकेश ठाकुर कहते हैं कि पेट्रोल पंप, वर्कशाप, टायर पंक्चर के अलावा ढाबे और दुकान वालों का कारोबार ठप्प हो गया है. बरामणा से भी किरतपुर रूट पर ट्रक चलते हैं, इस पूरे रूट पर कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. पेट्रोल पंप पर काम नहीं रह गया. वर्कशॉप जो ट्रकों पर निर्भर होती थी वो नहीं चल रही. स्पेयर पार्ट वाले, टायर पंक्चर से लेकर मैकेनिक का काम करने वाला हर व्यक्ति बेरोजगार हो गया है. यह एक विकट स्थिति है.

कच्चे माल के भाड़े में कंपनी को दे रहे 50 फीसदी तक छूट- राकेश ठाकुर कहते हैं कि वह बड़ी गाड़ियों के सीमेंट मालभाड़े में 5 फीसदी छूट कंपनी को दे रहे हैं. यही नहीं उनकी सोसायटी किरतपुर से बरमाणा प्लांट के लिए फ्लाई एश, कोयला जैसे कच्चे माल को 40 फीसदी डिस्काउंट पर ला रही है. रोपड़ से लाए जाने वाले कच्चे माल पर वे 50 फीसदी छूट कंपनी को दे रहे हैं. कंपनी ने मालभाड़ा 11.41 रूपए प्रति टन प्रति किलोमीटर तय किया है. जबकि मैदानी इलाकों के लिए यह 5.29 रूपए हैं. (Closure of cement factories in Himachal)

कंपनी बंद होने से सारा कारोबार प्रभावित- व्यापार मंडल दाड़लाघाट के अध्यक्ष वेद प्रकाश कहते हैं कि दाड़लाघाट का सारा कारोबार सीमेंट कंपनी पर ही निर्भर है. चाहे दुकानदार हो या ढाबा वाला हो या पान वाला या चाय बेचने वाला क्यों न हो, सभी का इससे कारोबार जुड़ा हुआ है. मगर सीमेंट कंपनी के एकदम बंद होने से ढाबे, चाय वालों का काम तो खत्म हुआ ही है करियाना या दूसरी दुकानों का काम भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. पहले ट्रांसपोट्र चलता था तो ट्रक ऑपरेटरों सामान ले जाते थे और हप्ते बाद पेमेंट क्लीयर कर देते थे. मगर अब जब सीमेंट कंपनी ही बंद हो गई है तो कारोबार चौपट हो गया है.

कंपनी के फैसले से हजारों लोग हो चुके हैं बेरोजगारः किसान संघ- भारतीय किसान संघ ने इस विवाद के शीघ्र समाधान की सरकार से मांग की है. भारतीय किसान संघ के प्रदेश प्रचार प्रमुख जय ठाकुर कहते हैं कि अदानी के प्लांट बंद करने के फैसले से हजारों लोग रोजगार खो चुके हैं. उनकी मानें तो मालभाड़ा पहले ही कम है. कंपनी फिर भी अधिक बता रही है जो कि सही नहीं है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)

वह कहते हैं कि साल 2005 में जब अंबुजा और ट्रक ऑपरेटरों का विवाद पैदा हुआ था तो मालभाड़ा तय करने के लिए शुक्ला कमेटी बनाई गई थी. कमेटी ने तय किया था कि पेट्रोल व डीजल के दाम में जिस अनुपात में बढ़ौतरी होगी, उसी अनुपात में मालभाड़ा भी बढ़ेगा. लेकिन ऑपरेटरों कह रहे हैं कि कंपनी ने 1 अप्रैल 2019 से उनका मंहगाई के अनुरूप मालभाड़ा नहीं बढ़ाया है. कंपनी इस मंहगाई के अनुरूप मालभाड़ा बढ़ाए और साथ में अपने प्लांटस जल्द से सुचारू करें.

मालभाड़े को लेकर है विवाद- पहाड़ी इलाक़ों में माल ढुलाई के लिए दाड़वा कंपनी से ऑपरेटरों 10.58 रुपए और बरमाणा से 11.41 प्रति टन प्रति किलोमीटर और मैदानी इलाकों में 5.29 रुपए प्रति टन प्रति किलोमीटर की दर से क़ीमत ले रहे थे. अदानी ग्रुप इसे बहुत ज्यादा मान रहा है. अदानी ग्रुप का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में इस लागत को घटा कर छह रुपए प्रति टन प्रति किलोमीटर किया जाना चाहिए. (Cement Plants Closure In Himachal Pradesh)

इसके विपरीत ट्रक ऑपरेटरों का कहना है कि जो मालभाड़ा अदानी ग्रुप तय कर रहा है वो 2005 में तय किया गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक मंहगाई काफी बढ़ गई है. दोनों पक्षों में इसको लेकर काफी समय से विवाद चल रहा था और आखिर में अदानी ग्रुप ने घाटे में प्लांटस होने का हवाला देकर 14 दिसंबर को इनको बंद करने के फरमान जारी कर दिए. कर्मचारियों को अगले दिन यानी 15 तारीख से न आने को कहा गया. (cement factory dispute in himachal)

सरकार ने अदानी ग्रुप को दिया है नोटिस- सीमेंट फैक्ट्रियों के बंद होने के विवाद को नई सरकार ने गंभीरता से लिया है. बिना किसी पूर्व नोटिस के फैक्ट्रियां बंद करने पर सरकार ने अदानी ग्रुप को नोटिस दिया है. सरकार ने अधिकारियों को इसका हल करने के निर्देश तत्काल दिए. इसके बाद इस मसले को लेकर पहले एसडीएम लेवल पर बातचीत हुई. लेकिन कोई हल नहीं निकला. इसके बाद परिवहन विभाग के प्रधान सचिव आरडी नजीम की अध्यक्षता में एक भी 23 दिसंबर को कराई गई. इसके बाद फिर से एसडीएम लेवल पर बातचीत हुई है. (Darlaghat Ambuja Cement Plant closed)

2 जनवरी को सब कमेटी की एक बैठक सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन के एमडी केसी चमन की अध्यक्षता में हुई जिसमें अब मालभाड़े के निर्धारण का काम सरकारी एजेंसी हिमकॉन को दिया गया है. सीएम सुखविदंर सिंह सुक्खू कह चुके हैं कि सरकार इस मसले को लेकर गंभीर है और सरकार ने इस विवाद का हल निकालने के निर्देश दिए हैं. हालांकि उनका कहना है कि सरकार चाहती है कि हिमाचल के लोगों को सस्ता सीमेंट मिले.

ये भी पढ़ें: दालड़ाघाट सीमेंट प्लांट बंद विवाद के 22वें दिन ट्रांसपोर्टर्स का ऐलान- जल्द होगा महापंचायत का आयोजन

शिमला: प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों अंबुजा दाड़लाघाट और एसीसी बरमाणा में ताले लटके हुए हैं. 14 दिसंबर को अदानी ग्रुप की ओर से अचानक एक लिखित आदेश अपने कर्मचारियों को जारी किया जाता है, जिसमें उनसे अगले कल से काम पर न आने को कहा जाता है. अदानी ग्रुप की ओर से कहा गया है कि हिमाचल के दोनों प्लांट घाटे में हैं. ऐसे में अनिश्चितकालीन तक इनको बंद कर दिया जाता है. साथ ही अदानी ग्रुप ट्रक ऑपरेटरों से मालभाड़ा कम करने के लिए भी कह रहा है. सीमेंट प्लांट बंद करना उसका ट्रक ऑपरेटरों पर दवाब बनाने के एक रणनीति के तहत देखा जा रहा है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)

फैक्ट्रियों को बंद हुए 21 दिन बीत गए हैं. फैक्ट्रियों के बार हजारों ट्रक खड़े हैं. ट्रक आपरटेरों के साथ-साथ इन प्लांट से अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार हासिल करने वाले हजारों लोगों का रोजगार एक ही झटके में चला गया. दोनों कंपनियों के प्रबंधनों और ट्रक ऑपरेटरों के बीच कई वार्ता हो चुकी है, मगर कोई भी हल नहीं निकला है. फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों ट्रक खड़े हो गए हैं. प्लांट के आसपास छोटा मोटा कारोबार कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले हजारों लोगों की रोजी रोटी का जरिया चला गया है. लोगों ने शायद ही कभी सोचा होगा कि ये दिन भी आएगा जब उनकी कमाई का साधन एकाएक खत्म या बंद हो जाएगा. (Closure of cement factories in Himachal)

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
हिमाचल में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार.

दोनों फैक्ट्रियों से सीधे जुड़े करीब 8 हजार परिवार - दोनों बड़े प्लाटों में करीब 8 हजार ट्रक सीधे रूप से काम से जुड़े हुए हैं. ये ट्रक क्लिंकर और सीमेंट ढुलाई करते हैं. काम बंद होने से इन 8 हजार परिवारों की कमाई खत्म हो गई है. इसके साथ ही आसपास में दुकानें, ढाबे, सहित छोटा मोटा काम चलने वालों के लिए भी मंदी आ गई है. दरअसल इन लोगों के ग्राहक सीमेंट के काम से जुड़े लोग हैं.

इसके अलावा करीब 2000 लोग सीधे इन फैक्ट्रियों से रोजगार हासिल कर रहे हैं. इनका भी रोजगार चला गया है. हालांकि सीमेंट प्लांट्स के 143 कर्मचारियों को अदानी सीमेंट के नजदीकी संयंत्रों में स्थानांतरित करने के आदेश दिए हैं. कर्मचारियों को नालागढ़, रोपड़ और बठिंडा सहित अन्य प्लांटस में शिफ्ट किया जा रहा है. मगर अधिकतर फैक्ट्रियों के बंद होने से अब घर पर बेरोजगार बैठे हैं.

दाड़लाघाट अंबुजा सीमेंट प्लांट बंद होने से रोजी रोटी का जरिया गया- दाड़लाघाट स्थित अंबुजा कंपनी हिमाचल में सबसे बड़ी क्लिंकर निकालने वाली कंपनी है. इसकी क्लिंकर की सालाना क्षमता 5.2 मीट्रिक टन की है. सीमेंट निर्माण के हिसाब से देखें तो यह हिमाचल के चार बड़े प्लाटों में से एक है. इस प्लांट की सीमेंट तैयार करने की क्षमता 3.1 मीट्रिक टन प्रति सालाना है, जिसका माइनिंग एरिया करीब 488.08 हेक्टेयर है. (Truck operators facing problems in himachal)

अंबुजा कंपनी में ट्रक ऑपरेटरों की आठ सोसायटियां काम कर रही हैं. जिनके तहत करीब 3500 ट्रक रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा करीब 700 कर्मचारी सीधे तौर पर कंपनी में कार्यरत हैं. प्लांट के लिए भूमि खो देने वाले लोगों यानी लैंड लूजर्स को ज्यादा रोजगार प्रत्यक्ष तौर पर नहीं मिला है. करीब 200 लैंड लूजर्स को ही इसमें सीधा रोजगार मिला है जबकि बाकी लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस फैक्ट्रियों पर निर्भर हैं.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों अंबुजा दाड़लाघाट और एसीसी बरमाणा में लटके ताले.

दाड़लाघाट से किरतपुर रूट पर सोयाटियों करीब 1000 ट्रक रोजाना चलते हैं, जिससे इस पूरे रूट पर ढाबे वालों, चाय वालों, वर्कशॉप और अन्य काम करने वालों को रोजगार मिला हुआ था जोकि अब बंद पड़ा है दाड़लाघाट से निकलने वाला अधितकर क्लिंकर अंबुजा के रोपड़, भंटिंडा, नालागढ़ और रूड़की के दूसरे प्लांट को ट्रकों से ले जाया जाता है, जहां इससे सीमेंट तैयार किया जाता है.

दाड़लाघाट से निकलने वाला 80 से 85 फीसदी क्लिंकर इन प्लांट को भेजा जा रहा है जहां इससे सीमेंट वहां तैयार होता है, जबकि 15 से 20 फीसदी क्लिंकर से दाड़लाघाट में सीमेंट बनाया जाता है. इस तरह बाहर के सीमेंट प्लाटों को क्लिंकर ले जाने और वापसी में रोपड़ से सीमेंट तैयार करने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल ट्रकों में लाया जाता है. ट्रक ऑपरेटरों के मुताबिक दाड़लाघाट से करीब 10 लाख मीट्रिक टन हर साल और 80 से 85 हजार मीट्रिक टन माल हर माह उनके ट्रक ढोते हैं, मगर अब यह काम ठप हो गया हैं.

ट्रकों की किश्तें, ड्राइवर-क्लीनर की सैलरी निकालना हुआ मुश्किल- दाड़लाघाट प्लांट से संबंधित ट्रक चलाने वाली सोसायटी एडीकेएम यानि अंबुजा-दाड़ला-कश्लोग-मांगू ट्रक को-आप्रेटिव सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष बालकराम शर्मा का कहते हैं कि ट्रक ऑपरेटरों के लिए प्लांट बंद होना किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. तीन सप्ताह से उनके ट्रक खड़े हुए हैं. उनके लिए ट्रकों की किश्तें निकालना मुश्किल हो गया है. उनकी मानें तो अंबुजा कंपनी में लगे करीब 90 फीसदी ट्रकों की बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को किश्तें जाती हैं जो कि अब नहीं जा रही. इसके अलावा घर परिवार भी ट्रक ऑपरेटरों का इससे चलता है, जाहिर है अब घर चलाना भी लोगों का मुश्किल हो गया है.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
हिमाचल में दोनों फैक्ट्रियों से सीधे जुड़े करीब 8 हजार परिवार.

पहाड़ी इलाका होने से ट्रकों की लाइफ भी हो जाती है कम- बालक राम शर्मा कहते हैं कि आमतौर पर ट्रकों की लाइफ 15 साल मानी जाती है, लेकिन पहाड़ी भौगोलिक स्थितियों के चलते यहां पर 10 साल ही ट्रकों की लाइफ रह जाती है. इसके चलते ट्रक ऑपरेटरों का प्रयास रहता है कि 7-8 साल में ही अपना पुराना ट्रक बेचकर नया खरीद ले, जब ट्रक खरीद लिया तो फिर इसकी किश्तें 7-8 साल चुकाते रहते हैं. वह कहते हैं कि अगर ट्रक को इसे ज्यादा चलाया तो तो इसको कबाड़ में बेचने की नौबत आ जाती है.

ऐसे में उन लोगों की पहले खरीदे गए ट्रकों को बेचकर नए खरीदने की मजबूरी होती है, जो कि लोन पर ही अधिकतर खरीदे जाते हैं. लोन की किश्तें लाखों की पड़ जाती हैं. इस तरह लाखों रूपए ट्रक अब खड़े हैं. दाड़लाघाट के ट्रकों का मालभाड़ा 10.58 पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर पहाड़ी इलाकों के लिए है जबकि मैदानी इलाकों के लिए ऑपरेटरों इसका 50 फीसदी मालभाड़ा लेते हैं. ऑपरेटरों का कहना है कि बड़ी गाडियों के माल भाड़े में वह 5 फीसदी तक दे रहे हैं, इसके बावजूद कंपनी ने अड़ियल रवैया अपनाया हुआ है.

एसीसी सीमेंट प्लांट बरमाणा के बंद होने से भी हजारों बेरोजगार- अल्ट्राटेक के बाद एसीसी हिमाचल का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट निर्माता है. इसका सीमेंट प्लांट बिलासपुर के बरमाणा में लगा हैं, इसके सीमेंट उत्पादन की कुल क्षमता 4.4 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है. इसका माइनिंग एरिया करीब 231.25 हेक्टेयर में फैला हुआ हैं. इसके अलावा यह 3.3 मीट्रिक टन क्लिंकर भी निकालता तैयार करता है. बरमाणा सीमेंट कंपनी से करीब 4500 ट्रक जुड़े हुए हैं.

इसके अलावा करीब 1000 कर्मचारी यहां पर प्लांट में कार्यरत है. लेकिन सीमेंट प्लांट बंद होने से ये सभी बेरोजगार हो गए हैं. हालांकि कंपनी ने कुछ कर्मचारियों को यहां से दूसरे प्लाटों में डेपुटेशन पर भेज दिया है, लेकिन अधिकतर कर्मचारी बेरोजगार पड़े हुए हैं. बरमाणा में एसीसी कंपनी सीमेंट ही तैयार करती है. यहां से सीमेंट पंजाब, चंडीगढ़, पंचकुला सहित हिमाचल में भेजा जाता है, रोजाना करीब 800 से 1000 गाड़ियां इसमें इस्तेमाल होती हैं. इसके अलावा कुछ क्लींकर भी यहां से कंपनी के नालागढ़ प्लांट को ले जाया जाता है.

Ambuja cement plant closed controversy in Himachal.
ट्रकों की किश्तें, ड्राइवर-क्लीनर की सैलरी निकालना हुआ मुश्किल.

3500 से अधिक गाड़ियों की किश्तें बंद ठप हो गई- बरमाणा सीमेंट में कार्यरत ट्रक ऑपरेटरों की सबसे बड़ी सोसायटी बिलासपुर डिस्ट्रिक्ट ट्रक ऑपरेटरों सोसायटी (बीडीटीएस) के अध्यक्ष राकेश ठाकुर कहते हैं कि बरमाणा प्लांट में लगी करीब 4500 गाड़ियों में से 3500 के करीब गाडियां लोन पर ली गई हैं, फैक्ट्री बंद होने से इन ट्रक ऑपरेटरों बैंकों में लोन की किश्तें भी दे पा रहे. ट्रकों के ड्राइवर, क्लीनर की तनख्वाह निकालना मुश्किल हो गया है.

राकेश ठाकुर कहते हैं कि पेट्रोल पंप, वर्कशाप, टायर पंक्चर के अलावा ढाबे और दुकान वालों का कारोबार ठप्प हो गया है. बरामणा से भी किरतपुर रूट पर ट्रक चलते हैं, इस पूरे रूट पर कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. पेट्रोल पंप पर काम नहीं रह गया. वर्कशॉप जो ट्रकों पर निर्भर होती थी वो नहीं चल रही. स्पेयर पार्ट वाले, टायर पंक्चर से लेकर मैकेनिक का काम करने वाला हर व्यक्ति बेरोजगार हो गया है. यह एक विकट स्थिति है.

कच्चे माल के भाड़े में कंपनी को दे रहे 50 फीसदी तक छूट- राकेश ठाकुर कहते हैं कि वह बड़ी गाड़ियों के सीमेंट मालभाड़े में 5 फीसदी छूट कंपनी को दे रहे हैं. यही नहीं उनकी सोसायटी किरतपुर से बरमाणा प्लांट के लिए फ्लाई एश, कोयला जैसे कच्चे माल को 40 फीसदी डिस्काउंट पर ला रही है. रोपड़ से लाए जाने वाले कच्चे माल पर वे 50 फीसदी छूट कंपनी को दे रहे हैं. कंपनी ने मालभाड़ा 11.41 रूपए प्रति टन प्रति किलोमीटर तय किया है. जबकि मैदानी इलाकों के लिए यह 5.29 रूपए हैं. (Closure of cement factories in Himachal)

कंपनी बंद होने से सारा कारोबार प्रभावित- व्यापार मंडल दाड़लाघाट के अध्यक्ष वेद प्रकाश कहते हैं कि दाड़लाघाट का सारा कारोबार सीमेंट कंपनी पर ही निर्भर है. चाहे दुकानदार हो या ढाबा वाला हो या पान वाला या चाय बेचने वाला क्यों न हो, सभी का इससे कारोबार जुड़ा हुआ है. मगर सीमेंट कंपनी के एकदम बंद होने से ढाबे, चाय वालों का काम तो खत्म हुआ ही है करियाना या दूसरी दुकानों का काम भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. पहले ट्रांसपोट्र चलता था तो ट्रक ऑपरेटरों सामान ले जाते थे और हप्ते बाद पेमेंट क्लीयर कर देते थे. मगर अब जब सीमेंट कंपनी ही बंद हो गई है तो कारोबार चौपट हो गया है.

कंपनी के फैसले से हजारों लोग हो चुके हैं बेरोजगारः किसान संघ- भारतीय किसान संघ ने इस विवाद के शीघ्र समाधान की सरकार से मांग की है. भारतीय किसान संघ के प्रदेश प्रचार प्रमुख जय ठाकुर कहते हैं कि अदानी के प्लांट बंद करने के फैसले से हजारों लोग रोजगार खो चुके हैं. उनकी मानें तो मालभाड़ा पहले ही कम है. कंपनी फिर भी अधिक बता रही है जो कि सही नहीं है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)

वह कहते हैं कि साल 2005 में जब अंबुजा और ट्रक ऑपरेटरों का विवाद पैदा हुआ था तो मालभाड़ा तय करने के लिए शुक्ला कमेटी बनाई गई थी. कमेटी ने तय किया था कि पेट्रोल व डीजल के दाम में जिस अनुपात में बढ़ौतरी होगी, उसी अनुपात में मालभाड़ा भी बढ़ेगा. लेकिन ऑपरेटरों कह रहे हैं कि कंपनी ने 1 अप्रैल 2019 से उनका मंहगाई के अनुरूप मालभाड़ा नहीं बढ़ाया है. कंपनी इस मंहगाई के अनुरूप मालभाड़ा बढ़ाए और साथ में अपने प्लांटस जल्द से सुचारू करें.

मालभाड़े को लेकर है विवाद- पहाड़ी इलाक़ों में माल ढुलाई के लिए दाड़वा कंपनी से ऑपरेटरों 10.58 रुपए और बरमाणा से 11.41 प्रति टन प्रति किलोमीटर और मैदानी इलाकों में 5.29 रुपए प्रति टन प्रति किलोमीटर की दर से क़ीमत ले रहे थे. अदानी ग्रुप इसे बहुत ज्यादा मान रहा है. अदानी ग्रुप का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में इस लागत को घटा कर छह रुपए प्रति टन प्रति किलोमीटर किया जाना चाहिए. (Cement Plants Closure In Himachal Pradesh)

इसके विपरीत ट्रक ऑपरेटरों का कहना है कि जो मालभाड़ा अदानी ग्रुप तय कर रहा है वो 2005 में तय किया गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक मंहगाई काफी बढ़ गई है. दोनों पक्षों में इसको लेकर काफी समय से विवाद चल रहा था और आखिर में अदानी ग्रुप ने घाटे में प्लांटस होने का हवाला देकर 14 दिसंबर को इनको बंद करने के फरमान जारी कर दिए. कर्मचारियों को अगले दिन यानी 15 तारीख से न आने को कहा गया. (cement factory dispute in himachal)

सरकार ने अदानी ग्रुप को दिया है नोटिस- सीमेंट फैक्ट्रियों के बंद होने के विवाद को नई सरकार ने गंभीरता से लिया है. बिना किसी पूर्व नोटिस के फैक्ट्रियां बंद करने पर सरकार ने अदानी ग्रुप को नोटिस दिया है. सरकार ने अधिकारियों को इसका हल करने के निर्देश तत्काल दिए. इसके बाद इस मसले को लेकर पहले एसडीएम लेवल पर बातचीत हुई. लेकिन कोई हल नहीं निकला. इसके बाद परिवहन विभाग के प्रधान सचिव आरडी नजीम की अध्यक्षता में एक भी 23 दिसंबर को कराई गई. इसके बाद फिर से एसडीएम लेवल पर बातचीत हुई है. (Darlaghat Ambuja Cement Plant closed)

2 जनवरी को सब कमेटी की एक बैठक सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन के एमडी केसी चमन की अध्यक्षता में हुई जिसमें अब मालभाड़े के निर्धारण का काम सरकारी एजेंसी हिमकॉन को दिया गया है. सीएम सुखविदंर सिंह सुक्खू कह चुके हैं कि सरकार इस मसले को लेकर गंभीर है और सरकार ने इस विवाद का हल निकालने के निर्देश दिए हैं. हालांकि उनका कहना है कि सरकार चाहती है कि हिमाचल के लोगों को सस्ता सीमेंट मिले.

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